Netaji Subhas Chandra Bose Spent 214 days in Jabalpur Central Jail: भारत के इतिहास में 18 अगस्त 1945 की तारीख कभी नहीं भुलाई जा सकती. ये वह तारीख है जब स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का प्लेन लापता हो गया था. पूरा देश आज उनकी पुण्यतिथि पर नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित क रहा है. इस मौके पर जानते हैं सुभाष चंद्र बोस के मध्य प्रदेश से उस गहरे नाते के बारे में. 


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जबलपुर से गहरा नाता
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मध्य प्रदेश की 'संस्कारधानी' जबलपुर से गहरा नाता है. साल 1931 और तारीख 22 दिसंबर को उन्हें  जबलपुर की सेंट्रल जेल में पहली बार लाया गया था. वे इस जेल में दो बार आए और 214 दिनों तक रहे. यहां रहते हुए उन्होंने आजादी के लिए कई योजनाएं बनाईं. साथ ही जबलपुर में ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर ऐतिहासिक जीत हासिल की. इसके अलावा उनकी कई यादों को आज भी यहां संजोकर रखा गया है. नेताजी के नाम पर इस सेंट्रल जेल का नाम हो गया है. साथ ही  म्यूजियम भी बनाया गया है. 


नेताजी के वो 214 दिन...
नेताजी सुभाष चंद्र बोस दो बार जबलपुर सेंट्रल जेल लाए गए. पहली बार 22 दिसंबर 1931 को उन्हें पहली बार  जबलपुर की सेंट्रल जेल लाया गया. यहां उन्हें 209 दिनों तक जेल में रखा गया. इसके बाद 16 जुलाई 1932 को उन्हें दूसरी बार यहां लाया गया, जब वे 5 दिन जेल में रहे. यानी कुल 214 दिन उन्होंने जबलपुर सेंट्रल जेल में बिताए. बता दें कि उस समय  स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को रखने के लिए अंग्रेजों की पसंदीदा जेल जबलपुर की सेंट्रल जेल मानी जाती थी. 


आजादी के लिए बनाई योजनाएं
214 दिनों तक जबलपुर सेंट्रल जेल में रहने के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए कई अहम योजनाएं बनाईं. बाद में इन योजनाओं ने आंदोलन का रूप लिया. साथ ही नेताजी ने जबलपुर में ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी.


सेंट्रल जेल को दिया गया उनका नाम
जबलपुर सेंट्रल जेल से नेताजी की इतनी यादें जुड़ गईं कि उनकी यादों को संजोते हुए बलपुर सेंट्रल जेल का नाम बदलकर उनके नाम पर रख दिया गया. इसके अलावा  नेताजी के नाम पर पहले म्यूजियम को जनता के लिए खोल दिया गया. जेल की जिस बैरक में नेताजी रहते थे, वहां आज भी जेल प्रहरियों की वर्दी, बेल्ट, तिजोरी, ब्रिटिश शासन काल की घड़ी और जंजीरें रखी हुई है. इसके अलावा नेताजी के हस्ताक्षर वाला जेल रजिस्टर और उनके नाम का वारंट भी जेल में सुरक्षित है.


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हाथों से बनाए पोस्टर
खास बात ये है कि बैरक की दीवारों में नेताजी की तस्वीर जो लगी हुई है, वो जेल के बंदियों ने अपने हाथों से बनाई है. साथ ही यहां  1905 के नेताजी की बचपन की तस्वीर सबके आकर्षण का केंद्र है.


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