विश्व का एकमात्र मंदिर जहां हाथी पर विराजमान मां लक्ष्मी, जानिए पौराणिक मान्यता
दुनिया भर में दीपोत्सव का पर्व देर शाम बड़े हर्ष उल्लास के साथ मां लक्ष्मी का पूजन कर मनाया जाना है.
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: दुनिया भर में दीपोत्सव का पर्व देर शाम बड़े हर्ष उल्लास के साथ मां लक्ष्मी का पूजन कर मनाया जाना है. इस दिन मां लक्ष्मी ही नहीं भगवान गणेश, नारायण, सरस्वती मां के पूजन की भी आज के दिन ख़ास मान्यता है लेकिन बात धार्मिक नगरी उज्जैन की करें तो हम आपको मां लक्ष्मी के एक ऐसे रूप के दर्शन करवाने वाले हैं, जिनकी प्रतिमा को लेकर कहा जाता है कि वे सिर्फ उज्जैन नगरी में ही स्थापित है और राजा विक्रमादित्य की राज लक्ष्मी के रूप में 2000 वर्ष पहले विक्रमादित्य के काल में ही प्रतिमा की स्थापना की गई.
मां लक्ष्मी की ये अद्भुत प्रतिमा अष्ठ लक्ष्मियों में से एक मानी गई है. जो कि गज पर यानी "ऐरावत हाथी पर" पद्मासन मुद्रा में सवार है. दीपावली पर्व पर 5 दिनों तक 24 घंटे मंदिर के द्वार खुले रहते हैं, मंदिर में बरकत लेने श्रद्धालु पहुंचते है व्यापारी भी मंदिर से ही बही खाते की शुरुआत करते हैं. मंदिर में सुहाग पड़वा पर महिलाओं का ताता लगता है, तो वहीं मंदिर में मां लक्ष्मी का हजारों लीटर दूध से दुग्ध अभिषेक व देर शाम महानेवेद्य का भोग लगाया जाता है.
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मंदिर में अतिप्राचीन भगवान विष्णु नारायण की दशावतार प्रतिमा भी है तो वहीं मां गजलक्ष्मी के मंदिर की कई पौराणिक मान्यता है. जिसको लेकर कहा जाता है कि जब पांडव अपना सब कुछ हार गए थे. तब मां कुंती ने मां गजलक्ष्मी का पूजन किया था.
जानिए मंदिर की क्या है खासियत!
दरअसल अष्ठ लक्ष्मी में से एक गजलक्ष्मी मां की अद्भुत व अतिप्राचीन स्थापित प्रतिमा वाला यह मंदिर उज्जैन में पुराने शहर के सराफा व लखेरवाडी बाजार समीप नई पैठ क्षेत्र की गलियों में है. जहां के पुजारी अनिमेष शर्मा बताते हैं कि 2000 वर्ष पूर्व से प्रतिमा स्थापित होना बताई जाती है. राजा विक्रमादित्य उनके शासनकाल में मां गजलक्ष्मी को अपनी राजलक्ष्मी मान पूजन अभिषेक किया करते थे. मंदिर में मां गजलक्ष्मी की प्रतिमा एरावत हाथी पर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए की है. मंदिर का समय समय पर भक्तों ने जीर्णोद्धार करवाया वहीं मंदिर में दीपावली पर्व के दूसरे दीन सुहाग पड़वा पर्व पर बड़ी संख्या में महिलाएं पहुंचती है और साल भर मां गज लक्ष्मी को जो सिंदूर, बिंदी दान रूप में चढ़ती है. इसके साथ ही मंदिर में बरकत लेने श्रद्धालु पहुंचते है. यहां नारियल, ब्लाउज पीस, सिक्का, कोड़ी व श्री यंत्र बरकत रूप में बांटे जाते है.
कहते हैं बरकत रूप में इन्हें घर में रखने से सुख समृद्धि व हर्ष धन वैभव की प्राप्ति होती है. मंदिर में भगवन विष्णु नारायण की दशावतार प्रतिमा भी है. इसको लेकर भी कहा जाता है कि काले पाषाण से निर्मित यह अद्भुत प्रतिभा सिर्फ बाबा महाकाल की नगरी में ही स्थापित है.
व्यापारी करते हैं बही खाते की मंदिर में दीपावली से शुरुआत
दीपावली पर्व पर मां गजलक्ष्मी के मंदिर में व्यापारियों का भी हुजूम दर्शन को लगा रहता है. ऐसी मान्यता है कि व्यापारी अपने बही खाते को सुचारू रूप से चलाने के लिए मां लक्ष्मी से प्रार्थना करते हैं और साल भर बही खाते खाली नहीं रहने के लिए कामना करते हैं. इसके साथ ही मंदिर में दीपावली पर्व पर सुबह 8:00 से 11:00 तक भगवान का करीब 5000 लीटर से अधिक दूध से दुग्ध अभिषेक किया जाता है वहीं शाम को महानेवेद्य के भोग लगाए जाने की परंपरा है.
क्या है पौराणिक मान्यता
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि स्कंद पुराण के अनुसार जब जुए में पांडव अपना सारा राजपाट हार कर जंगल जंगल भटक रहे थे, तब मां कुंती भी परेशान थी और मां लक्ष्मी को गज पर सवार रूप में पूजने के लिए ढूंढ रही थी क्योंकि इधर कौरव धनसंपदा से संपन्न था और उसने मिट्टी के हाथी को बना लिया था. पांडवों ने मां कुंती को परेशान होते देखा तो इंद्र देव को प्रसन्न करने की पांडवों ने कोशिश की इंद्रदेव का आह्वान करने पर इंद्रदेव प्रसन्न हुए और अर्जुन ने बाण के जरिए इंद्रदेव को संदेश भेजा. जिस पर इंद्र ने एरावत हाथी को जमीन पर उतारा जिस पर स्वयं मा लक्ष्मी विराजमान थी. कुंती ने प्रसन्न होकर गज पर सवार मां लक्ष्मी का पूजन किया तो वहीं इंद्र ने हस्तिनापुर क्षेत्र में तेज बारिश शुरू कर दी. जिससे कौरव के द्वारा बनाया गया मिट्टी का हाथी मिट्टी में मिल गया ऐसी मान्यता है कि पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य मां गज लक्ष्मी के आशीर्वाद से ही प्राप्त हुआ था