सवालों के घेरे में कुत्तों की नसबंदी; ऑपरेशन के बाद भी क्यूं बढ़ रही संख्या!
Ratlam News: डॉग बाइट और कुत्तों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए प्रशासन काम कर रहा है, लेकिन रतलाम में कुत्तों की नसबंदी सवालों के घेरे में आने लगी है. यहां 2 बार नसबंदी अभियान चलाए जाने के बाद भी कुत्तों का संख्या बढ़ रही है. जानिये कितना हुआ अबतक का खर्च और क्या हैं परिणाम?
Ratlam News: चंद्रशेखर सोलंकी/रतलाम: प्रदेश में डॉग बाइट और आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ रही है. कुत्तों के हमले से लोगों के घायल होने के मामले सामने आते रहते हैं. हालांकि, सरकार इन्हें रोकने के लिए लगातार प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश और बजट दे रही है. इसके बाद भी लापरवाहियों के कारण न सिर्फ जनता के पैसों की बर्बादी हो रही है. ऐसा ही मामला सामने आया है रतलाम में जहां कुत्तों की नसबंदी के बाद भी उनकी संख्या और डॉग बाइट के मामले बढ़ रहे हैं.
नहीं दिख रहा नसबंदी का असर
रतलाम शहर में सडकों पर ज्यादाकर बच्चे महिलाएं डॉग बाईट ( कुत्तों के काटने ) का शिकार हो रहे हैं. जिला अस्पताल में पुराने नए मरीज मिलाकर रोज लगभग 40 से 50 लोगों को रेबीज के इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं. इस समस्या से बचने के लिए प्रशासन की ओर से कार्य किया गया, लेकिन उसका असर नजर नहीं आ रहा है.
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2 साल में 2 बार चलाया गया अभियान
साल 2020 में निगम द्वारा शहर के बाहरी इलाके ट्रेचिंग ग्राउंड के पास एक डॉग स्ट्रेलाईजेशन (नसबंदी) हॉस्पिटल बनाया गया. इसमे 2 साल में 2 बार कुत्तों की नसबंदी की गई. इसी साल जनवरी माह में ही 6 हजार कुत्तों की नसबंदी की गई थी. बाबजूद इसके दोबारा कुत्तों की संख्या बढ़ गई. अब दोबारा इस काम के लिए टेंडर निकाले गए हैं.
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सवालों के घेर में कुत्तों की नसबंदी
कुत्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए निगम भले ही दोबारा नशबंदी का प्लान कर रहा है, लेकिन बढ़ती समस्या के कारण पहले हुई कुत्तों की नसबंदी सवालों के घेरे में आ रही है. कि 2 साल से कुत्तों की नसबंदी का कार्य निगम कर रही है. अलग-अलग एजेंसी को कार्य दे रही है. इसके बाद भी डॉग बाइट के मामलों में कमी आने के बजाए बढ़ोत्तरी क्यों हो रही है?
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एक कुत्ते पर खर्च हुआ 907 रुपये
हर कुत्ते को लेकर 907 रुपये का खर्च एजेंसी को दिया गया था. लाखों का खर्च करने के कुछ बाद अब 9 माह में ही एक बार फिर 4 हजार कुत्तों की नसबंदी का ठेका निगम देने जा रही है. इस बार कुत्तों की नसबंदी पर कितना खर्च होगा. यह तय होना बाकी है, लेकिन 4 से 6 माह बाद कुत्तों के काटने के मामले बढ़ना और संख्या बढ़ना निगम के अभियान को सवालों के घेरे में ला रहा है.
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अस्पताल भी दुर्दशा का शिकार
कुत्तों के नसबंदी असप्ताल को 2020 में ही बनाया गया. ये भी लापरवाही के कारण दुर्दशा का शिकार हो गया है. पूरे कंपस में जंगली घास उग गई है. प्लास्टर उखाड़ने लगा है. मलबा फ्लोर पर पड़ा है और परिसर में गंदगी पसरी पड़ी है. इन दिनों यहां किसी की पोस्टिंग नहीं है यानी अस्पताल पूरी तरह से लावारिस पड़ी हुई है. निगम की अनदेखी के कारण दुर्दशा का शिकार हो गया है.
अस्पताल में जानवरों के काटने के मामले
इधर जिला अस्पताल में 1 माह में 450 मामले जानवरों के काटने के पहुंचे हैं. इसमें से इसमें 4 से 5 मामले अन्य जानवरों जैसे सियार, सांप, चूहे आदि के काटने के हैं. बाकी मामले कुत्तों के शिकार के हैं. इस कारण अस्पताल में भी कई बार आव्यवस्था हो जाती है.