यहां बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को अर्पित की जाती है स्याही, जानिए इस प्राचीन मंदिर की मान्यता
Basant Panchami Ujjain: बाबा महाकाल की नगरी में ऐसा तीर्थ स्थल जहां बसंत पंचमी के दिन देवी मां सरस्वती को स्याही अर्पित की जाती है. आज के दिन बड़ी संख्या में विद्यार्थी मां सरस्वती का आशीर्वाद लेने इस मंदिर में आते हैं.
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: धार्मिक नगरी अवंतिका उज्जैनी में हर एक पर्व का अपना अलग महत्व है. हर एक पर्व को बाबा महाकाल के आंगन से मनाए जाने की खास परंपरा है. लेकिन उज्जैन के सिंह पूरी की गलियों में एक ऐसा तीर्थ स्थल है, जिसे स्याही माता के नाम से जाना जाता है. जहां खास कर बसंत पंचमी पर्व पर के दिन स्कूली व कॉलेज के छात्र छात्राओं का तांता दर्शन हेतु लगा रहता हैं.
इस मंदिर में आज के दिन बड़ी संख्या में आम जन भी पहुंचते है. हालांकि मंदिर मां सरस्वती का है. गुरुवार को भी भक्त पहुंचे और सरस्वती मां (स्याही मां) का आशीर्वाद लिया. मां को स्याही अर्पित कर आशीर्वाद लिया. मंदिर में मां सरस्वती की लगभग 300 वर्ष पुरानी पाषाण की मूर्ति है.
जानिए क्या है मान्यता
दरअसल इस मंदिर को विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर माना गया है जंहा पर बसंत पंचमी पर्व पर छात्र छात्राएं अपने भविष्य (कॅरियर) को संवारने की मनोकामना लिए सरस्वती माता को स्याही और पेन चढ़ाते है. गुरुवार को बंसत पंचमी पर सुबह से ही बड़ी संख्या में विध्यार्थी शहर के सिंहपुरी क्षेत्र अंतर्गत चौरसिया समाज की धर्मशाला के समीप माता सरस्वती के मंदिर पहुंचे. आगमी परीक्षा के लिए भी मन्नते मांगते नजर आए. परीक्षा में सफलता प्राप्ति के लिए देवी को कलम, दवात भी चढ़ाई जाती है. माता सरस्वती को पिले पुष्प अर्पित कर पूजा अर्चना की जाती है.
मंदिर में है पाषाण कालीन मूर्ति
पंडित अनिल मोदी ने बताया की 300 वर्ष प्राचीन कालीन इस मंदिर में पाषाण की कालीन मूर्ति है. छात्र अच्छे नम्बरों से पास हो, उनका कॅरियर बन जाए. ऐसी कामना लेकर स्याही चढ़ाते हैं. परीक्षा के दिनों में भी छात्र छात्राओं का तांता मंदिर में लगता है. पीले पुष्प का भी महत्व इस मंदिर में स्याही और कलम के साथ साथ है. सरसों के फूल का खास महत्व है. सरस्वती का ये मंदिर सिहंपुरी के सकरे मार्ग में है. बेशकीमती पाषाण की मूर्ति बहुत छोटे से मंदिर में विराजीत है.
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