महाकाल की नगरी हुई कावड़मय, जानिए कैसे हुई कावड़ यात्रा की शुरुआत
सावन मास के दूसरे दिन महाकाल की नगरी में हुआ कावड़ यात्रियों का आगमन हुआ. यहां उनका जोरदार स्वागत सत्कार हुआ. इस दौरान महाकाल की नगरी हर हर महादेव, जय श्री महाकाल के जयकारों से गूंज उठी. कलेक्ट और एसपी ने कहां कि शिव भक्तों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम हुआ है.
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: सावन का महीना शुरू हो चुका है विश्व भर के शिवालयों में महादेव के भक्तों का तांता लगा हुआ है. सावन महोत्सव खास तौर पर कावड़ यात्रियों के लिए भी मनाया जाता है और कावड़ यात्री व भक्त बड़ी संख्या में मनोकामना लिए बाबा का आशीर्वाद लेने उन्हें जल चढ़ाने पहुचते हैं. महाकाल मंदिर एक मात्र दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग जहां सावन के दूसरे दिन कावड़ यात्रियों का आगमन हुआ और शहर के हर गली चौराहे पर नगर वासियों ने स्वागत सत्कार किया.
महाकाल की नगरी में आज पहला जत्था 1008 महामंडलेश्वर ईश्वर आनंद स्वामी उत्तम स्वामी महाराज का पहुंचा, यात्रा के दौरान महाराज बग्गी में सवार थे तो यात्री डीजे, ढोल बाजे की थाप पर भगवा लिए शिव भक्ति में डूबे हुए थें वहीं एसएसपी सत्येंद्र कुमार शुक्ल का कहना है यात्रियों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए ड्रोन, cctv से नजर रखी जा रही हैं. डीएम आशीष सिंह ने कहा यात्रियों को किसी प्रकार से असुविधा न हो इंतजाम किए है, मार्ग में चिकित्सा व्यवस्था, पीने का पानी व अन्य सुविधा जुटाई है.
महाकाल मंदिर में क्या है कावड़ यात्रियों के लिए व्यवस्था
डीएम आशीष सिंह व मन्दिर समिति के अध्यक्ष आशीष सिंह के अनुसार मंदिर में कावड़ यात्रियों को चारधाम मंदिर के निकट हरसिद्धि माता मंदिर चौराहे पर बने प्रवेश द्वार से प्रवेश दिया जा रहा है और यात्री जल गर्भ गृह से नहीं चढ़ा पायंगे, क्योंकि सामान्य दर्शनार्थियों के लिए भी व्यवस्था है. इसलिए कार्तिक मंडपम से कावड़िये बाबा को जल पात्र के माध्यम से जल चढ़ाएंगे.
जानिए कैसे हुई कावड़ यात्रा की शुरुआत
आपको बता दें कि यात्रा कोरोना काल के 2 साल बाद नगरी में पहुंची है, वहीं बात सावन में कांवड़ यात्रा को लेकर करें तो कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार अपने माता पिता की इच्छा पूरी करने के लिए कांवड़ यात्रा की थी. वे माता पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार ले गए थे और वहां जाकर उन्होंने माता पिता को गंगा में स्नान करवाया और वापस लौटते समय श्रवण कुमार गंगाजल लेकर आए और उन्होंने व उनके माता पिता ने इस जल को शिवलिंग पर चढ़ाया. तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.
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