बिलासपुरः ZEE MPCG के न्यायधानी गौरव सम्मान कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने भी शिरकत की. इस दौरान सीएम भूपेश बघेल ने असम चुनाव, शराबबंदी, धान खरीदी, गोधन न्याय योजना और भाजपा को लेकर बातचीत की. पेश हैं उस बातचीत के प्रमुख अंश-


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छत्तीसगढ़ का आम कार्यकर्ता और सोशल टीम आपके वीडियो ट्वीट कर रही, वायरल कर रही है और यह बताने की कोशिश कर रही है कि एक वो वर्ग है जी23 का, जो पार्टी आलाकमान की बातों पर भरोसा नहीं जता रहा और दूसरी तरफ भूपेश बघेल जैसा नेता राष्ट्रीय परिपेक्ष में उभर रहा है. ऐसे में जी23 नेताओं को आपसे सीखने की जरूरत है. क्या वाकई में जी23 को आपसे सीख लेने की जरूरत है?


बिल्कुल नहीं. वो लोग जिन्हें भी आप तथाकथित रूप से जी23 कह रहे हैं. उनमें से दो नेता असम में काम कर रहे हैं. एक मुकुल वासनिक और दूसरे चव्हाण जी हैं. इसलिए जी 23 से जी 21 हो गया है. पता नहीं ये जी 23 कहां से आया है. साथ ही जिन लोगों ने जिंदगी भर राजनीति की है, मुझे नहीं लगता कि उन्हें मुझसे सीखने की जरूरत है. उन नेताओं को पूरे देश में प्रांतों में काम करने का अनुभव है. लेकिन आज के परिपेक्ष में जिन चीजों की आवश्यकता है, वो हमें करना चाहिए. आज मतदाता चाहता है कि मेरे पास प्रत्याशी आए, वर्कर आए, नेता आए. सोशल मीडिया का जमाना है लेकिन व्यक्तिगत रूप से मिलने का कोई मुकाबला नहीं है. 


 माउथ पब्लिसिटी की सोच बीजेपी की सोच के विपरीत है, जो सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए अपना प्रचार करती है और वो इस मामले में बहुत आगे है. लेकिन आप जो परंपरागत रूप से प्रचार कर रहे हैं और छोटी-छोटी सभाएं कर रहे हैं. ऐसे में आज सोशल मीडिया के जमाने में ये अभी भी कारगर हैं?


 तुलना तो ठीक नहीं है लेकिन जितने भी आंदोलन हुए हैं, चाहे सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक आंदोलन हो. उनमें माउथ पब्लिसिटी का सबसे बड़ा योगदान रहा है. आजादी के समय सोशल मीडिया नहीं था. प्रिंट मीडिया भी उतना नहीं था लेकिन माउथ पब्लिसिटी इतनी ज्यादा थी कि गांधी जी कोई बात चंपारण में कह दें तो वो पूरे देश में पहुंच जाती थी. आज देखें तो गणेश जी को दूध पिलाने की बात हुई थी उसमें ये किसी मीडिया में नहीं आया था लेकिन माउथ पब्लिसिटी से पूरे देश में यह बात फैल गई थी. 


छत्तीसगढ़ के मॉडल को आप असम में पेश कर रहे हैं. तो वहां के लोग छत्तीसगढ़ की किन चीजों को पसंद कर रहे हैं?


मैं वहां ये बताने की कोशिश कर रहा हूं कि गुजरात मॉडल पिछले 7 सालों से देश ने देखा है, असम ने भी देखा है. हमारे छत्तीसगढ़ मॉडल को भी देखें. किसानों, मजदूरों और आदिवासियों को इसका लाभ मिला है. हमने ऋण माफी, 2500 रुपए कुंतल में धान खरीदी की, गोधन योजना, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, खेतिहर श्रमिक योजना भी लाए और जनता को ये बात अपील कर रही है. 


यहां 15 साल की रमन सरकार को हराना या फिर असम की सर्वानंद सोनोवाल सरकार को हराना, क्या ज्यादा मुश्किल रहा?


देखिए यहां भाजपा ने 15 साल शासन किया, उसमें सबसे बड़ा योगदान हमारा रहा. वो जीते नहीं थे बल्कि हम हारे थे. पहले 2003 में नकली आदिवासी के नाम पर वोट मांगा और कानून व्यवस्था दो बातें थी. उसमें हम मात खाए. उसके बाद दो और चुनाव में वो पहले जोगी जी को नकली आदिवासी बनाकर वोट मांगे. लेकिन उसका लाभ दो चुनाव में ये लोग लिए. पहले सामने लड़कर लिए और तीसरी बार सहयोग लेकर लड़े. लेकिन तीसरी बार इन सारी चीजों को अलग करके जब हम मिलकर लड़े उसका असर दिखा भी. चाय ठेलों पर बात भी होती थी कि जोगी जी को कांग्रेस से निकाल दो पार्टी अपने आप सत्ता में आ जाएगी और जनता ने दिखा भी दिया और हम 68 सीट जीते. 


अभी बीजेपी उसी पैटर्न में आपकी सरकार की निशाने पर ले रही है. भटेना का मामला हो, कोई हत्या हो जाए तो चीजें बदली हैं या वैसी ही हैं?


काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. वो एक राजनीतिक हत्या थी. एक राजनीतिक हत्या झीरम घाटी में घटी. वह राजनीतिक षडयंत्र था. लेकिन हम उसका लाभ नहीं ले पाए. छत्तीसगढ़ में राजनीतिक अपराध की घटनाएं नहीं होनी चाहिए और इनका मैं पुरजोर विरोध करता हूं. जितनी मेरी क्षमता है मैं होने भी नहीं दूंगा. छत्तीसगढ़ जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में राजनीतिक हिंसा की घटना कतई बर्दाश्त नहीं है. अब पारिवारिक कारण से या रंजिश की वजह से हत्या हो जाए वो राजनीतिक हत्या की श्रेणी में नहीं आती.


भटेना और खुलमुड़ा में अपने ही दोषी मिले. कानून व्यवस्था बिगड़ रही है या सीएम का इलाका होने से इन मामलों पर राजनीति हुई?


हत्या या आत्महत्या की घटना का कोई भी व्यक्ति समर्थन नहीं करेगा. लेकिन घटनाएं घटी और उनका राजनीतिकरण हुआ. खुड़मुड़ा की घटना में परिवार के लोगों ने ही हत्या की और बता दिया कि कोई आया और हत्या करके चले गए. बाद में जांच में पता कि अपने ही लोगों ने हत्या की. हालांकि इन मामलों में खूब राजनीति हुई. उसमें राजनीतिक और कानून व्यवस्था की कोई बात नहीं है.


गोधन न्याय योजना इस समय काफी चर्चा में हैं. संसद की स्थायी समिति भी तारीफ कर रही है. बीजेपी का लॉ वाला संगठन भी तारीफ कर रहा है. हालांकि बीजेपी का आरोप है कि क्रियान्वयन ठीक नहीं हो रहा है. तो ऐसी स्थिति क्यों बन रही है कि केंद्र की बीजेपी तारीफ कर रही है और राज्य की बीजेपी निंदा कर रही है?


आरएसएस के लोग सबसे पहले सीएम हाउस में आकर सबसे पहले मिले और मेरा सम्मान किया. हम लोग 15 साल कहते रहे और इन्होंने नहीं किया. लेकिन भावनात्मक या धार्मिक रूप से कोई बात कह देना एक अलग विषय है लेकिन ग्रामीण परिवेश को समझे बिना उसे आर्थिक रूप से जोड़ना संभव नहीं है. क्योंकि पशुपालन और कृषि एक दूसरे से जुड़े हैं. लेकिन कालांतर में पशुपालन बोझ की तरह हो गया था. ऐसे में बहुत सोच-विचारकर यह निर्णय लिया गया कि जो उत्पादक पशु हैं उनके साथ ही अनुत्पादक पशुओं का भी ख्याल रखा जाएगा. ऐसे में गोधन न्याय योजना बहुत कारगर साबित हुआ. 


लोग अब गोबर बेचकर स्कूटी लेने लगे हैं. उस पर बीजेपी नेता तंज भी कसते हैं. अजय चंद्राकर ने ये भी कहा था कि गोबर को राज्य का चिन्ह क्यों नहीं बना देना चाहिए. बीजेपी ने योजना में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उठाया है. पंजीकरण भी समस्या है तो क्या ये इतना मुश्किल है?


हमने तो ऐसे लोगों को भी पंजीकरण किया है जिसके पास जमीन भी नहीं है और मवेशी भी नहीं हैं. छत्तीसगढ़ में ये परंपरा रही है कि लोग पशुओं को ऐसे ही छोड़ देते हैं. ऐसे में गांव में लोग अगर घूम लें तो एक-दो किलो गोबर तो वैसे ही मिल जाता है. तो इसमें किसी को रजिस्ट्रेशन की मनाही नहीं है. इसमें किसी के पास समय है और आपसी समझ है. अब सभी अपनी सुविधा के हिसाब से अन्य लोगों का गोबर भी पहुंचा देते हैं. 


शराब का जिक्र बार-बार आता है. आपने भी शराबबंदी की बात कही थी लेकिन सिर्फ कमेटियां बनाई जा रही है. बीजेपी ने धान से बीयर बनाने की बात कही थी. आपने भी कमेटी बनाई है. ऐसे में राज्य में शराबबंदी क्यों नहीं हो पा रही है?


सभी राजनीतिक दलों को कहा गया है कि आप अपने मेंबर दे दीजिए. शराब एक ऐसा विषय है जिसको सभी के सहयोग से ही बंद किया जा सकता है. बिहार में इतना कड़ा कानून है और हजारों लोग जेल में हैं. हमारे यहां नियम रहा है कि अनुसूचित ब्लॉक में लोग पांच लीटर तक की महुआ की शराब रख सकते हैं. साथ ही ऐसा कानून भी है, जहां ग्राम सभा की सहमति से ही इसे बंद किया जा सकता है. लेकिन इस साल कोरोना के कारण सरकार का अटेंशन डायवर्ट हो गया. लेकिन कोरोना काल में भी लॉकडाउन की स्थिति में हरियाणा से, यूपी से, ओडिशा से शराब की गाड़ियां छत्तीसगढ़ पहुंची. कई जिलों में कच्ची शराब भी पकड़ी गई. हमने कहा है और हम संकल्पित भी हैं लेकिन जब तक समाज के लोग सामने नहीं आएंगे और जनजागरण नहीं चलेगा, तब तक बात बनेगी नहीं. 


शराब पर लगे सेस को लेकर बीजेपी का आरोप है कि पैसे को दूसरी जगह पर डायवर्ट किया गया है. इसमें शिकायत भी हुई है. 


सेस लगाने की जरूरत क्या है? यदि केंद्र सरकार ने जीएसटी का 18 हजार करोड़ रुपए मिल जाता तो हमे सेस लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. केंद्र सरकार ने जीएसटी लगाया और अब पैसा नहीं दे रहे हैं. सेंट्रल टैक्स भी नहीं दे रहे हैं. केंद्र सरकार से 22 हजार करोड़ मिलने हैं. अगर वो मिल जाएं तो हमें सेस लगाने की जरूरत ही नहीं है. 


 बिलासपुर में 27 साल बाद एयरपोर्ट शुरू हुआ. यहां के नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री ने दमदारी से हरदीप पुरी के सामने बात रखी. लेकिन पीयूष गोयल के सामने दमदारी से बात क्यों नहीं रख पा रहे हैं. 60 की बात करके 24 से आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहे हैं? 


हरदीप पुरी जी से कई दौर की बातचीत हुई. बिलासपुर के नेताओं ने पुरजोर तरीके से विधानसभा में अपनी बात रखी. हरदीप पुरी जी नेक इंसान हैं लेकिन पीयूष गोयल ने जो व्यवहार किया है, उससे मुझे पीड़ा हुई है. आप केंद्र सरकार में है और चावल जमा नहीं करना चाहते तो मत कीजिए लेकिन डांटने फटकारने वाली बात गलत है. जो बेहद पीड़ादायक हैं. अभी रमन सिंह जी कल मिलकर आए हैं. छत्तीसगढ़ के विकास की बात करने की बात की है. जिस दिन 60 लाख मीट्रिक टन चावल एफसीआई जमा कर लेगा. लेकिन अब 24 लाख मीट्रिक टन में अटका हुआ है. अगर 60 लाख मीट्रिक टन चावल जमा करने की अनुमति मिल जाए तो मैं रमन सिंह को भी धन्यवाद दूंगा. 


बीजेपी के नेता कह रहे हैं कि आपने धान 2500 रुपए पर लेने का वादा किया था. जिस पर पीयूष गोयल से बात नहीं बन पा रही है. तो क्या आपने केंद्र सरकार से बात करके वादा किया था? अब कहां समस्या आ रही है?


भाजपा के नेता क्या पूछे थे केंद्र सरकार से कि 2100 रुपए में देंगे या सहमत है या नहीं हैं. चुनाव के चलते 2017-18 में बोनस दिए थे. जबकि अगस्त 2014 में केंद्र ने कहा था कि जो भी राज्य बोनस देगा उसका चावल एफसीआई नहीं लेगा. फिर 2017-18 में किस आधार पर बोनस दिया और जब 2019 में हमने दिया तो उन्हें क्या आपत्ति है. किसानों के हित में हर स्तर पर लड़ाई लड़ेंगे. जब केंद्र में हमारी सरकार थी तब राज्य भी और केंद्र सरकार भी बोनस देते थे. लेकिन इस सरकार में ना खुद बोनस दे रही है ना राज्य सरकारों को देने दे रही है. 


जब राज्य बना पहले सीएम अजीत जोगी बने उस वक्त लगा बिलासपुर तेजी से विकास करेगा. लेकिन फिर पावर सेंटर राजनांदगांव चला गया और फिर भिलाई दूर और रायपुर. ऐसे में बिलासपुर के लोगों को लग रहा है कि उनके विकास पर ध्यान नहीं दिया गया.


बिलासपुर राजनीतिक रूप से कमजोर कभी नहीं रहा. मध्य प्रदेश के समय में भी कई मंत्री रहे. यहां से 5-5 मंत्री रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष भी रहे और ताकतवर मंत्री भी रहे. इस समय बिलासपुर संभाग से विधानसभा अध्यक्ष दिया है. अभी जीतकर आए विधायक नए हैं. हमारी पार्टी में सीनियर नेताओं को तरजीह दी जा रही है. 


बिलासपुर के लिए आपकी क्या योजना है? विकास के लिए जो राशि चाहिए क्या आप सक्षम हैं उस देने में?


बिलासपुर से मेरे बहुत आत्मीय संबंध रहे हैं. मुख्यमंत्री के बाद सबसे ज्यादा दौरा भी बिलासपुर का ही किया है. अरपा को टेम्स तो नहीं अरपा ही रहने देना चाहते हैं. अरपा महोत्सव भी हो रहा है. नगर निगम और जिला पंचायत के चुनाव के बाद कोरोना आ गया. केंद्र ने जीएसटी और टैक्स के पैसे नहीं दिए हैं लेकिन अभी सीमित संसाधन के बावजूद भी बिलासपुर के विकास में कमी नहीं आने देंगे. 


देश में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं. कई राज्यों में कोरोना के मामले काफी बढ़ गए हैं. अब फिर लॉकडाउन की चर्चा है तो आपका क्या कहना है?


लॉकडाउन के समर्थन में हम नहीं है. इससे मजदूरों की रोजी-रोटी छिन जाती है. हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा. बचाव के नियमों का पालन करना चाहिए, जिससे हम इस महामारी से बचाव कर सकते हैं. अब वैक्सीन भी आ गई है. 


ढाई साल के कार्यकाल की सुगबुगाहट है. आपका इस पर क्या कहना है? 


मुझे कुर्सी का कोई मोह नहीं है. मेरे पास अब फोन आ जाए तो मैं अब राजभवन जाकर इस्तीफा दे दूंगा. मैंने कोई लॉबिंग नहीं की. हाईकमान ने मुझ पर विश्वास जताया अगर वो कहेंगे तो मैं इस्तीफा दे दूंगा. 


बस्तर में नक्सलियों की चिट्ठी वायरल हो रही है. तो शांति वार्ता किस शर्त पर होगी?


नक्सली पहले भारत के संविधान को मानने की घोषणा करें. हथियार छोड़ें, हिंसा से बात नहीं होगी. नक्सली, जल जंगल जमीन की बात करते हैं लेकिन हम तो जमीन भी दे रहे हैं, पट्टा दे रहे हैं. रोजगार भी दे रहे हैं. आदिवासियों के साथ अत्याचार नहीं हो रहा है. 


कोदो कुटकी अनाज को आप वैश्विक ब्रांड बनाने की कोशिशों में जुटे हैं. इसके लिए क्या योजना है?


कोदो कुटकी की फसल जल्द हो जाती है. इसकी प्लानिंग, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग करें तो इसका फायदा मिलेगा. यदि कार्गो सुविधा हमें मिले तो हम इस दिशा में काफी कुछ कर सकते हैं. इससे रोजगार के अवसर भी मिलेंगे. छत्तीसगढ़ के उत्पादन एक छत के नीचे लाने के लिए सी मार्ट की योजना पर काम किया जा रहा है. इससे ग्राहकों के साथ-साथ विक्रेताओं को भी फायदा होगा. 


आपकी सरकार का फोकस ग्रामीण इलाकों पर है. विपक्ष का आरोप है कि आपकी सरकार में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास कम हुआ है. 


जशपुर में हाल ही में मैंने 800 करोड़, सरगुजा में 600 करोड़ और बिलासपुर में भी विकास योजनाओं की शुरुआत की है. हजारों करोड़ की योजनाएं चलायी जा रही हैं. 


हमारा राज्य बीसीसीआई से एफिलेटिड हैं लेकिन हमारे राज्यों से खिलाड़ी आगे नहीं जा पा रहे हैं?


खेल प्राधिकरण का गठन किया गया है. इसके अलावा जो बड़े-बड़े हाउस हैं, वो भी इस दिशा में काम किया था. लेकिन कोरोना आ गया. जिसमें प्रतिभा होगी उन्हें मौका मिलेगा.