नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में नवंबर में उप चुनाव हैं. बिहार और यूपी में भी चुनावी घमासान है. इस बीच नवरात्र में प्याज के दाम 80 रुपए किलो तक पहुंच गए हैं. चुनाव में प्याज के आंसू न रोने पड़ जाएं? इसलिए केंद्र सरकार ने प्याज के स्टॉक की सीमा तय कर दी. थोक व्यापारी 25 मिट्रिक टन और खुदरा व्यापारी 2 मिट्रिक टन प्याज रख सकेंगे. हो सकता है कि अब प्याज के दाम से पहले की तरह चुनावी गणित न बिगड़े, लेकिन अतीत में कई बार प्याज ने देश की सियासत को ही बदला है.


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शिवसेना ने ''सामना'' से प्याज को लेकर पीएम मोदी पर कसा तंज
पिछले ही साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के, "मैं प्याज नहीं खाती" वाले बयान पर खूब हंगामा हुआ. शिवसेना ने इसे लेकर सरकार पर हमला बोला कि, "सरकार बढ़ती महंगाई से आम लोगों को हो रही मुश्किल से बेफिक्र है." उसके मुखपत्र 'सामना', ने संपादकीय लिखा कि ये उन्हीं नरेंद्र मोदी की सरकार है जिन्होंने गुजरात के CM रहते तब कि केंद्र सरकार पर तंज किया था कि, "प्याज अब तिजोरी में रखने की चीज हो गई है."


कभी नहीं बनेगी कमलनाथ की सरकार-सीएम शिवराज



जब मुख्यमंत्री को 'दिवाली गिफ्ट' में भेजा गया प्याज का डिब्बा
दिवाली के लगभग इसी वक्त के आसपास 1998 में प्याज की महंगाई सरकारों को रुला चुकी है. मामला महाराष्ट्र का है जब महंगी प्याज से शौकीनों की दीवाली काली होने के आसार दिखने लगे. कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाया, तब कांग्रेस के छगन भुजबल ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को प्याज का एक डिब्बा भेजा और लिखा, "दीवाली में लोग कीमती चीज तोहफे में देते हैं, इस बार प्याज बहुत कीमती है."


मनोहर जोशी को इसका सियासी संदेश समझने में देर नहीं लगी. प्याज के भाव तब 45 रुपए प्रति किलो थे लेकिन मनोहर जोशी ने राशन की दुकानों पर प्याज को 15 रुपए प्रति किलो की कीमत पर बिकवाया.



दिल्ली के CM ने किया सेल्फ गोल बोले, ''गरीब लोग प्याज खाते ही कहां हैं?''
उसी वक्त का प्याज की महंगाई का असर दिल्ली पर भी पड़ा. 1998 में प्याज की महंगाई पर दिल्ली के CM साहिब सिंह वर्मा की जुबान फिसल गई. उन्होंने कह दिया कि, " वैसे भी, गरीब लोग प्याज खाते ही कहां हैं?" चुनावी साल में उनका ये बयान सेल्फ गोल बन गया.


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इस बयान ने उनकी कुर्सी की बलि ले ली. कुछ वक्त बाद हुए चुनाव से ठीक 40 दिन पहले सुषमा स्वराज को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया. सुषमा स्वराज ने जगह-जगह 'फेयर प्राइस शॉप' शुरू किया लेकिन उनकी कोशिशें रंग नहीं लाईं. 40 से 50 रुपए प्रति किलो तक बिकी प्याज ने BJP और सुषमा को दिल्ली की सत्ता से दूर कर दिया.   


राजस्थान से सीएम शेखावत बोले "हमारे पीछे तो प्याज लगी थी."
प्याज की वजह से राजस्थान में भी BJP के भैरों सिंह शेखावत की सरकार गिर गई. सत्ता जाने के बाद शेखावत का दिया ये बयान बहुत मशहूर हुआ कि, "हमारे पीछे तो प्याज लगी थी।" दिलचस्प ये भी है कि प्याज की सियासत को जिसने साध लिया, सत्ता ने भी उसका ही साथ दिया. 


इमरती आइटम नहीं एटम बम-BJYM



जब इंदिरा ने प्याज की बढ़ी कीमतों को लेकर अखबार में दिया इश्तेहार
1980 के चुनाव में कांग्रेस-आई को भारी बहुमत मिला. प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी ने अखबारों में इश्तेहार दिया था कि प्याज की महंगाई के पीछे उनके सियासी विरोधी हैं. इंदिरा के जीतते ही प्याज के दाम अपने आप धड़ाम से नीचे आ गिरे जो चुनाव से पहले 6 रुपए प्रति किलो तक महंगी हो गई थी. अगले दिन अखबारों में ये सबसे बड़ी सुर्खी थी. दरअसल प्याज के व्यापारियों ने इंदिरा की सरकार बनने पर होने वाली सख्ती को भांपते हुए खुद ही प्याज की कीमतें कम कर दी थीं.


लोकदल नेता प्याज की माला लेकर पहुंच गए राज्यसभा
हालांकि 1981 में कांग्रेस-आई का रुख बदलते देर नहीं लगी जब प्याज एक बार फिर महंगी हो गई. प्याज के महंगे होने का विरोध जताने के लिए तब 'लोक दल' के रामेश्वर सिंह प्याज का माला पहन कर राज्यसभा में पहुंचे थे. उन्होंने सभापति एम हिदायतुल्लाह से प्याज की कीमतें बढ़ने की शिकायत की. उन्होंने पलट कर सिंह से ही पूछ लिया कि, "देखते हैं कि जब टायरों के दाम बढ़ जाएंगे या मान लीजिए कि जूते के दाम बढ़ जाएं तब आप क्या पहन कर आएंगे? "


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