इंदौर: राहत इंदौरी अपने बेबाक अदांज़ और बेहतरीन शायरी के लिए पूरी दुनिया में राज किया. वो हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी अदबी दुनिया के लिए एक मिसाल रहे हैं. राहत इंदौरी की मौत अदबी दुनिया के लिए कभी न भरने वाला ज़ख्म साबित होगा. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इंदौर का राहतउल्ला कुरैशी जिसने राहत इंदौरी बन शायरी की दुनिया में किया राज


राहत इंदौरी ने जहां इश्क को एक अलग अंदाज़ में बयां किया. वहीं सियासी शेर भी खूब कहे. उनका एक शेर तो न जाने कितनी बार दोहराया जा चुका है. शायह ही कोई शख्स होगा जो इस शेर से वाकिफ न हो, शेर कुछ यूं है कि, "बुलाती है मगर जाने का नहीं, ये दुनिया है इधर जाने का नहीं'' लेकिन राहत ने मौत पर तीन शायरी लिखीं. इन शायरी से लगता है कि उनकी मौत से यारी है. ये तीन शेर कुछ इस तरह हैं. 


“मैं मर जाऊँ तो मेरी इक अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना...!”


राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें 
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तों
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो


राहत साहब ने तीसरा और उम्दा शेर कोरोना महामारी को लेकर लिखा था. इस शेर में उन्होंने कहा था कि कोरोना महामारी चारों तरफ फैली हुई है लेकिन यह माहौल मर जाने का नहीं है. 
“वबा फैली हुई है हर तरफ़,
अभी माहौल मर जाने का नई..!”