छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में नया मोड़, CBI के हाथ में होगी जांच, राज्य सरकार ने लिया बड़ा फैसला
Chhattisgarh Liquor Scam: छत्तीसगढ़ की पिछली सरकार में हुए कथित शराब घोटाले की जांच अब सीबीआई को सौंप दी गई है. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय वाली सरकार ने इसको लेकर अधिसूचना जारी कर दी है. इस शराब घोटाले में अब तक कई आरोपी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं.
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के शराब घोटाला मामले में बड़ा खबर सामने आई है. अब घोटाले से जुड़ी आगे की जांच सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) करेगी. राज्य सरकार ने सीबीआई जांच को लेकर शनिवार को अधिसूचना जारी की है. साय सरकार का आरोप है कि FL-10 लाइसेंस व्यवस्था की वजह से ही पिछली सरकार में करीब 2200 करोड़ का घोटाला हुआ. इस मामले में अब तक ACB और ED जांच कर रही थीं. वहीं अब जांच में सीबीआई की एंट्री भी हो गई है.
दो दिन पहले ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अधिकारियों ने अनवर ढेबर के करीबी चावल व्यापारी रफीक मेमन के रायपुर स्थित आवासीय परिसर और उसके मामा इकबाल मेमन के मैनपुर स्थित घर पर छापेमारी की. अनवर ढेबर छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले का आरोपी है. बुधवार सुबह करीब 6 बजे ईडी की टीम 10 से अधिक वाहनों में सवार होकर गरियाबंद के मैनपुर स्थित इकबाल मेमन के घर पहुंची और औचक निरीक्षण कर संपत्ति के दस्तावेजों की तलाशी ली. साथ ही रफीक मेमन के रायपुर के मौदहापारा स्थित आवास पर भी छापेमारी की गई.
इकबाल मेमन के घर पर छापेमारी जाडापदर में निर्माणाधीन चावल मिल के खिलाफ ग्रामीणों द्वारा हाल ही में किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद की गई, जिसका कथित तौर पर इकबाल के बेटे गुलाम के पास स्वामित्व है. ग्रामीणों ने बाद में ईडी में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें दावा किया गया कि शराब सिंडिकेट ने गुलाम के माध्यम से पैसा निवेश किया, जिसने कथित तौर पर पिछले 18 महीनों में मैनपुर में 2 करोड़ से अधिक की संपत्ति खरीदी. गुलाम अनवर ढेबर का चचेरा भाई है.
क्या है शराब घोटाला?
ईडी के अनुसार, कथित शराब घोटाला 2019 से 2022 के बीच हुआ था. माना जाता है कि इस घोटाले को अलग-अलग चरणों में अंजाम दिया गया. सबसे पहले, शराब की खरीद के लिए डिस्टिलर्स से रिश्वत ली गई. दूसरे, बेहिसाब देशी शराब बेची गई, जिसकी सारी बिक्री को किताबों में दर्ज नहीं किया गया. इसके परिणामस्वरूप राज्य के लिए कोई राजस्व नहीं मिला. घोटाले के कमीशन वाले हिस्से में डिस्टिलर्स से रिश्वत लेना शामिल था, ताकि उन्हें एक निश्चित बाजार हिस्सेदारी मिल सके और विदेशी शराब की बिक्री से मुनाफा कमाया जा सके.
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