मंदसौर: मध्यप्रदेश के मंदसौर में के अति प्राचीन चमत्कारिक नालछा माता मंदिर में नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की गई. मंदिर में माता की आराधना के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े.  मां के मंदिर में नवरात्र के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी रूप की आराधना की जाती है. मां अपने भक्तों को जीवन की कठिन परिस्थतियों में भी आशा व विश्वास के साथ कर्तव्यपथ पर चलने की दिशा प्रदान करती हैं. आज के दिन माता का ध्यान ब्रह्मा के उस दिव्य चेतना का बोध कराता है जो हमें पथभ्रष्ट, चारित्रिक पतन व कुलषित जीवन से मुक्ति दिलाते हुए पवित्र जीवन जीने की कला सिखाती है. 


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मां का ब्रह्मचारिणी रूप समस्त शक्तियों को एकाग्र कर बुद्धि विवेक व धैर्य के साथ सफलता की राह पर बढऩे की सीख देता है. पैराणिक ग्रंथों के मुताबिक़ यह हिमालय की पुत्री थीं और नारद के उपदेश के बाद यह भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप करने लगीं. इस  कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. भगवान शिव को पाने के लिए 1000 वर्षों तक सिर्फ फल खाकर ही रहीं और अगले 3000 वर्ष की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की. इस कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी और तपस्चारिणी कहा गया है. कठोर तप के बाद इनका विवाह भगवान शिव से हुआ. 


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बता दें कि पूरे देश में इन दिनों शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है. 9 दिनों तक चलने वाले इस पावन पर्व पर हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है, जिसमें दूसरे दिन तप की देवी मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला और बाएं हाथ में कमण्डल होता है. शास्त्रों के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं.