संविधान निर्माण में इन 15 महिलाओं की भी थी अहम भूमिका, कोई राजकुमारी तो किसी ने विदेश से की थी पढ़ाई
भारतीय संविधान के निर्माण में 15 महिलाओं ने भी अपना अहम योगदान दिया था. आइए जानते हैं इन महिलाओं के बारे में.
भोपालः 26 जनवरी को हम 72वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं. ये बात तो हम सभी जानते हैं कि संविधान का निर्माण बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने किया था. लेकिन संविधान के निर्माण में देश के हर वर्ग ने अपना योगदान दिया था. क्या आप जानते है कि दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान के निर्माण में भारतीय महिलाओं का भी अहम योगदान रहा है. संविधान के निर्माण के लिए 389 सदस्यों की जो कमेटी बनाई गई थी. उस कमेटी में 15 महिलाएं भी शामिल थी. जिनका भारत के संविधान निर्माण में अतुल्नीय योगदान है.
विजयलक्ष्मी पंडित
इलाहाबाद में 18 अगस्त 1900 में जन्मी देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी संविधान निर्माण कमेटी की सदस्य थी. विजयलक्ष्मी पंडित एक कुशल राजनेता मानी जाती है. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत इलाहाबाद नगर-निगम चुनाव के साथ की थी. 1931 में विजयलक्ष्मी संयुक्त प्रांत सदन के लिए चुनी गई थी, जबकि उन्हें सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. वे ऐसी पहली महिला थी जिन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. विजयलक्ष्मी पंडित ने भी भारत की स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था.
सरोजिनी नायडू
23 फरवरी 1879 को दक्षिण भारत के हैदराबाद शहर में जन्मी सरोजनी नायडू की भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका थी. सरोजनी नायडू ने इंग्लैण्ड से पढ़ाई थी. बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी रही और पहली महिला राज्यपाल बनी थी. उन्होंने उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के राज्यपाल की जिम्मेदारी संभाली थी. सरोजनी नायडू को साहित्य का अच्छा ज्ञान था. वे संविधान सभा के उन सदस्यों में शामिल थी. जिन्होंने संविधान का निर्माण किया था.
राजकुमारी अमृत कौर
राजकुमारी अमृत कौर कपूरथला के पूर्व महाराजा के पुत्र हरनाम सिंह की पुत्री थी. उनका जन्म 2 फरवरी 1889 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ था. राजकुमारी अमृत कौर ने ही देश में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान (AIIMS) की स्थापना की थी. इसके लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी उनका सहयोग किया था. वे करीब 10 साल तक देश की स्वास्थ्य मंत्री रहीं थी. राजकुमारी अमृत कौर भी संविधान सभा की सदस्य थी.
सुचेता कृपलानी
देश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी का भी संविधान के निर्माण में अहम योगदान था. 25 जून 1904 को हरियाणा के अंबाला शहर में जन्मी सुचेता कृपलानी ने 1942 में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका अदा की थी. उन्होंने कांग्रेस पार्टी में महिला शाखा का निर्माण किया था. सुचेता कृपलानी ने उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी. वे हर विधा में कुशल महिला थीं.
मालती चौधरी
16 साल की उम्र से ही शांति निकेतन से जुड़ने वाली मालती चौधरी का जन्म पूर्वी बंगाल में हुआ था. उनका जन्मस्थान वर्तमान में बांग्लादेश में आता है. वे उड़ीसा के पूर्व मुख्यमंत्री नाबकृष्ण चौधरी की पत्नी थी.मालती चौधरी ने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया था. भारतीय राष्ट्रीय में कांग्रेस में शामिल होने के बाद कांग्रेस समाजवादी कर्म संघ की स्थापना की थी.
लीला रॉय
लीला रॉय भी संविधान सभा की उन 15 महिलाओं में शामिल थी. जिन्होंने संविधान का निर्माण किया था. असम के गोलपाड़ा जिले में 2 अक्टूबर 1900 को जन्मी लीला रॉय को उस वक्त महिलाओं के सबसे बड़े हिमायती के तौर पर जाना जाता था. उन्होंने 1923 में दीपाली संघ और स्कूलों की स्थापना कर देशभर में चर्चा पायी थी. 1937 में वह कांग्रेस में शामिल हो गई. खास बात यह है कि उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बनाई गई महिला समिति में सदस्य बनाया गया था.
बेगम एजाज रसूल
संविधान सभा के सदस्यों में बेगम एजाज रसूल एक मात्र मुस्लिम महिला थी. उनका जन्म 2 अप्रैल 1909 को हुआ था. जिनका पूरा नाम बेगम कदसिया ऐजाज रसूल था. वह मुस्लिम लीग की सदस्य थी, बाद में जब मुस्लिम लीग भंग हुई तो वह कांग्रेस में शामिल हो गई. बेगम एजाज रसूल उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य, राज्यसभा की सदस्य रही. सामाजिक कार्यों के लिए उन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था.
कमला चौधरी
22 फरवरी 1908 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के प्रतिष्ठित परिवार में जन्मी कमला चौधरी भी संविधान सभा की सदस्य थी. वे एक प्रसिद्ध लेखिका थी. एक तरफ जहां उनका परिवार शाही सरकार का वफादार था. वही दूसरी तरफ कमला चौधरी महात्मा गांधी से जुड़ी हुई थी. वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्य थी. जबकि लोकसभा के सदस्य भी चुनी गई थी. उन्होंने अपनी कहानियों के जरिए महिलाओं को समाज में आगे लाने का काम किया था.
दुर्गाबाई देशमुख
12 साल की छोटी उम्र से ही असहयोग आंदोलन से जुड़ने वाली दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को आंध्रप्रदेश के राजमुंदरी में हुआ था. वे महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह का हिस्सा थी. उन्होंने महिलाओं की आवाज उठाने के लिए आंध्र महिला सभा की स्थापना की थी. दुर्गाबाई देशमुख संसद के लिए चुनी गई थी. उन्हें पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया था.
अम्मू स्वामीनाथन
22 अप्रैल 1894 में दक्षिण भारत के केरल राज्य के पालघाट में जन्मी अम्मू स्वामीनाथन भारतीय संविधान सभा की सदस्य थी. जब संविधान सभा के प्रस्ताव पर चर्चा चल रही थी. तब अम्मू स्वामीनाथन ने कहा था कि ''बाहरी लोग कहते हैं कि भारतीय महिलाओं को संविधान का अधिकार नहीं दिया जाता. लेकिन अब हम कह सकते हैं कि भारतीयों ने अपना संविधान खुद बनाया है जिसमें महिलाओं को बराबर का हक दिया गया है." अम्मू स्वामीनाथन ने मालती पटवर्धन, एनी बेसेंट, अंबुजम्माल और दादाभोय के साथ मिलकर महिला इंडिया एसोसिएशन का गठन किया था. वे स्काउट्स एंड गाइड्स के सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष भी थी. अम्मू स्वामीनाथन राज्यसभा और लोकसभा की सदस्य भी बनी थी.
हंसा मेहता
पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ी हंसा मेहता ने भी भारतीय संविधान के निर्माण में अपना योगदान दिया था. उनका जन्म 3 जुलाई 1987 को बड़ौदा में हुआ था. वे बड़ौदा के दीवान नंदशंकर मेहता की बेटी थी. पत्रकार के साथ हंसा मेहता समाजिक कार्यों से भी जुड़ी थी. वह 1926 में बॉम्बे स्कूल्स कमेटी के लिए चुनी गईं और 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं. बाद में उन्हें संविधान सभा का सदस्य बनाया गया था.
रेनुका रे
स्वतंत्रता सेनानी, लोकसभा सांसद, समाजसेवा के क्षेत्र से जुड़ी रेनुका रे आईसीएस अधिकारी संतीष चंद्र मुखर्जी और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सदस्य चारूलता मुखर्जी की बेटी थी. वे पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्य और मंत्री भी रहीं. उन्होंने ही बंगाल में अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद का गठन किया था. रेनुका रे भी संविधान सभा की सदस्य थी.
दकश्यानी वेलयुद्धन
दकश्यानी वेलयुद्धन अनुसूचित जातिवर्ग के लोगों की आवाज उठाने के लिए जानी जाती थी. संविधान सभा की सदस्यों में अनुसूचित जातिवर्ग से आने वाली वे एक मात्र महिला सदस्य थी. उनका जन्म कोचीन में बोल्गाटी द्वीप पर 4 जुलाई 1912 को हुआ था. वे कोचीन विधान परिषद की सदस्य भी रही थी. उन्होंने लंबे समय तक अनुसूचित जातिवर्ग के लोगों की आवाज को समाज में उठाया.
पूर्णिमा बनर्जी
भारत छोड़ो आंदोलन और महात्मा गांधी के सत्याग्रह से जुड़ी पूर्णिमा बनर्जी भी संविधान सभा की सदस्य थी. समाजवादी विचारधारा से प्रेरित पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश में आजादी की लड़ाई के लिए बने महिलाओं के समूह की सदस्य थी. वे किसान की सभाओं, ट्रेड यूनियनों की व्यवस्था और ग्रामीणों से जुड़े मुद्दे उठाती थी.
एनी मसकैरिनी
केरल के तिरुवनंतपुरम में जन्मी एनी मसकैरिनी केरल के प्रसिद्ध त्रावणकोर राज्य से आती थी. वे भी संविधान सभा की सदस्य थी. एनी मसकैरिनी त्रावणकोर राज्य में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल थी. राजनीतिज्ञ गतिविधियों के चलते उन्हें जेल में बंद कर दिया गया था. जेल से बाहर आने के बाद भी वे लगातार समाजिक मुद्दों को उठाती रही. 1951 के आम चुनावों में वे लोकसभा सदस्य के रुप में चुनी गई थी. एनी मसकैरिनी केरल राज्य की पहली महिला सांसद बनी थी.
इन 15 महिलाओं ने भारत के संविधान निर्माण में महत्ती भूमिका निभाई थी. खास बात यह थी कि ये सभी महिलाएं देश के अलग-अलग राज्यों से आती थी. जिन्होंने महिलाओं संबंधित सभी मुद्दों को उठाया और कई मौकों मुख्य बदलाव करवाए.
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