एक ऐसा गांव जहां नहीं जलाई जाती होली, होलिका दहन का जिक्र होते ही सहम जाते हैं लोग, यह है वजह...
हिंदुस्तान के लगभग हर हिस्से में होली का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में एक गांव ऐसा भी जहां होलिका दहन का जिक्र होते ही लोग डर जाते हैं...
सागर: कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते देश के कई राज्यों में सार्वजनिक होली मनाने पर रोक लगाई गई है. राज्य सरकारों ने पाबंदियों के साथ बहुत कम लोगों के साथ सांकेतिक तौर पर होलिका दहन की अनुमति दी है, मध्यप्रदेश में भी कोरोना कहर बरपा रहा है, ऐसे में यहां भी होली पर पाबंदियां लागू हैं, लेकिन इस राज्य में एक गांव ऐसा भी पिछले कई दशकों से होलिका दहन नहीं हुआ है.
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में मौजूद इस गांव में होलिका दहन का जिक्र होते ही लोग डर जाते हैं. यही वजह है कि होलिका दहन की रात गांव में कोई उत्साह नजर नहीं आता है, हालांकि होली खेली जाती है. यह कहानी है सागर जिले के देवरी विकासखंड में आने वाले हथखोह गांव की. जहां पिछले कई सालों से होलिका दहन नहीं हुआ. यहां होली रात सामान्य रात की तरह ही होती है.
क्यों नहीं होता होलिका दहन
इस गांव में होलिका दहन नहीं होने के पीछे एक मान्यता है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि दशकों पहले गांव में होलिका दहन के दौरान कई झोपड़ियों में आग लग गई थी. उस वक्त गांव के लोगों ने झारखंडन देवी की आराधना की और आग बुझ गई. स्थानीय लोग मानते हैं कि आग झारखंडन देवी की कृपा से बुझी थी, लिहाजा होलिका का दहन नहीं किया जाना चाहिए.
इसलिए लोग नहीं जलाते होली
गांव के बुजुर्गों की मानें तो उनके सफेद बाल पड़ गए हैं, मगर उन्होंने गांव में कभी होलिका दहन होते नहीं देखा. गांव के लेागों को इस बात का डर है कि होली जलाने से झारखंडन देवी कहीं नाराज न हो जाएं. उनका कहना है कि इस गांव में होलिका दहन भले नहीं होता है, लेकिन हम लोग रंग गुलाल लगाकर होली का त्यौहार मनाते हैं.
झारखंडन माता से जुड़ी मान्यता
झारखंडन माता मंदिर के पुजारी के मुताबिक हथखोह गांव के लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि देवी ने साक्षात दर्शन दिए थे और लोगों से होली न जलाने को कहा था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है. दशकों पहले यहां होली जलाई गई थी, तो कई मकान जल गए थे और लोगों ने जब झारखंडन देवी की आराधना की, तब आग बुझी थी. यहां पर दूर-दूर से लोग आते हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी होती है. झारखंडन माता को ग्रामीण अपनी कुलदेवी भी मानते हैं.'
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