नई दिल्लीः करीब 23 साल पहले भारत ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर जीत हासिल की थी. कारगिल युद्ध की यादें आज भी लोगों के मन मस्तिष्क में ताजा हैं. साथ ही ताजा है एक आर्मी अफसर का मुस्कुराता हुआ चेहरा जिसने टीवी कैमरे पर कहा था 'ये दिल मांगे मोर'. ये थे कैप्टन विक्रम बत्रा, जो आज ही के दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे लेकिन शहीद होने से पहले कुछ ऐसा कर गए थे, जिसने कारगिल युद्ध में भारत की जीत तय कर दी थी. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कैप्टन विक्रम बत्रा भारतीय सेना के सबसे चर्चित नायकों में से एक हैं, जो युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं. कैप्टन बत्रा ने युद्ध के मैदान में ऐसी बहादुरी का परिचय दिया कि उनकी शहादत के बाद उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 


9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत हिल स्टेशन पालमपुर में विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था. कैप्टन बत्रा पढ़ाई में काफी अच्छे थे और बेहतरीन स्पोर्ट्समैन थे. बता दें कि कैप्टन विक्रम बत्र को उत्तर भारत का सबसे बेहतर एनसीसी कैडेट चुना गया था. साथ ही वह कराटे में ग्रीन बेल्ड होल्डर और नेशनल लेवल के टेबल टेनिस खिलाड़ी थे.  


कैप्टन बत्रा काफी देशभक्त थे और हमेशा से देश सेवा के लिए सेना में जाना चाहते थे. यही वजह रही कि विक्रम बत्रा का मर्चेंट नेवी में सलेक्शन हो गया था लेकिन उन्होंने मर्चेंट नेवी की जगह भारतीय सेना में जाना पसंद किया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कैप्टन विक्रम बत्रा ने सेना में जाने से पहले अपनी मां से कहा था कि 'जीवन में पैसा ही सबकुछ नहीं है. मुझे जीवन में कुछ बड़ा करना है, अपने देश के लिए कुछ महान करना है.' कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा ने इन शब्दों को जिया भी और वह कुछ ऐसा कर गए जो मिसाल बन गया. 


कंबाइंड डिफेंस सर्विस (सीडीएस) का एग्जाम क्लीयर कर विक्रम बत्रा साल 1996 में भारतीय सेना में शामिल हुए. 3 साल बाद ही उनके जीवन का सबसे बड़ा मौका आ गया और वो था कारगिल युद्ध. जिस वक्त कारगिल की लड़ाई शुरू हुई थी, उस वक्त कैप्टन विक्रम बत्रा छुट्टियों पर अपने घर गए हुए थे. एक दिन जब वह अपने दोस्तों के बैठकर कॉफी पी रहे थे, उसी दौरान उनके दोस्तों ने उन्हें लड़ाई के दौरान सावधान रहने की सलाह दी थी. इस पर कैप्टन विक्रम बत्रा ने कहा था कि "मैं या तो तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा लेकिन मैं वापस जरूर आऊंगा."


एक जून 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने फिर से ड्यूटी ज्वाइन की और उन्हें लड़ाई के मोर्चे पर कारगिल में पोस्टिंग दी गई. लड़ाई के दौरान 19 जून 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके साथ अन्य जवानों ने पॉइंट 5140 पर कब्जा किया. इस लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा ने रणनीतिक कौशल का शानदार नमूना पेश किया दुश्मन को धूल चटा दी. खास बात ये है कि इस लड़ाई में कैप्टन बत्रा की टीम के किसी भी जवान को कोई नुकसान नहीं हुआ. इस जीत ने इलाके में भारत की स्थिति को मजबूत कर दिया था. 


इसी दौरान एक इंटरव्यू में कैप्टन विक्रम बत्रा ने देश के लिए कुछ और करने की इच्छा जाहिर करते हुए कहा था कि 'ये दिल मांगे मोर'. बढ़ी हुई दाढ़ी और विश्वास से चमकता कैप्टन विक्रम बत्रा का वो चेहरा आज भी लोगों के जेहन में ताजा है. पॉइंट 5140 पर भारतीय सेना के कब्जे के बाद पाकिस्तानी गन के साथ भी कैप्टन विक्रम बत्रा की मुस्कुराती हुई तस्वीर सामने आई थी.


इसके 9 दिन बाद ही कैप्टन बत्रा और उनकी टीम को एक और टास्क दिया गया और उन्हें 17000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पॉइंट 4875 पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई. यह ऑपरेशन बेहद मुश्किल था. बर्फीली चोटियां और 80 डिग्री की ऊंचाई पर चढ़ना और वहां दुश्मन से लड़ना बेहद मुश्किल काम था लेकिन भारतीय सेना के वीर जवानों ने सारी चुनौतियों से पार पाते हुए पाकिस्तानी ठिकानों पर हमला बोल दिया. 


7 जुलाई की रात कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम के अन्य जवानों की पाकिस्तानी सैनिकों के साथ भयंकर लड़ाई हुई. कैप्टन विक्रम बत्रा के साथ उनके साथी और भारतीय सेना के एक और हीरो कैप्टन अनुज नैय्यर भी साथ थे. भारतीय सैनिक बहादुरी से लड़ते हुए दुश्मन के बंकरों को क्लीयर करते जा रहे थे, तभी एक जूनियर अफसर बम धमाके में घायल हो गया. साथी को घायल देख कैप्टन विक्रम बत्रा उसे बचाने के लिए बंकर से बाहर निकले. इस दौरान एक साथी ने उन्हें रोकने की भी कोशिश की लेकिन कैप्टन बत्रा ने कहा कि 'तू बाल बच्चेदार है, हट जा पीछे'. इतना कहकर कैप्टन बत्रा साथी को बचाने के लिए बंकर से बाहर आ गए. इस दौरान उन्होंने दुश्मन के कई बंकर तबाह कर दिए और 5 दुश्मनों को नेस्तानाबूत कर दिया. लेकिन जब वह घायल सैनिक के पास पहुंचे और उसे उठाने के लिए नीचे झुके, तभी एक गोली उनके सीने में आकर लगी और भारतीय सेना का यह वीर सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गया.


कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के कायल पाकिस्तानी भी थे. जिस तरह उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पॉइंट 5140 पर कब्जा किया था, उसके बाद से पाकिस्तानी खेमे में भी कैप्टन बत्रा के चर्चे होने लगे थे. जब कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम पॉइंट 4875 पर कब्जे के लिए चोटी की चढ़ाई कर रही थी, तभी एक पाकिस्तानी सैनिक ने कैप्टन बत्रा के रेडियो को इंटरसेप्ट कर लिया था और चुनौती देते हुए कहा था कि शेरशाह ऊपर मत आना वरना मुश्किल में पड़ जाओगे. हालांकि जब लड़ाई हुई तो कैप्टन बत्रा ने दुश्मनों को नाकों चने चबवा दिए थे. बता दें कि शेरशाह कैप्टन बत्रा का कोडनेम था.


सुबह तक भारतीय सेना ने पॉइंट 4875 पर कब्जा कर लिया लेकिन इस दौरान भारतीय सेना के सबसे महान सैनिकों में से एक कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन अनुज नैय्यर शहीद हो गए. कैप्टन अनुज नैय्यर को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. आज पॉइंट 4875 को विक्रम बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है. 


कैप्टन बत्रा का जन्मस्थान आज उनके नाम से पहचाना जाता है. शहर के मुख्य चौराहे पर कैप्टन विक्रम बत्रा की प्रतिमा लगी हुई है. समय समय पर ऐसे लोग पैदा होते हैं, जिनके आगे नायक जैसे शब्द भी छोटे पड़ जाते हैं. कैप्टन विक्रम बत्रा भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं, जिनका नाम और देश के लिए की गई उनकी सेवा कई पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी.