नई दिल्ली: मध्यप्रदेश के चिकित्सा मंत्री विश्वास कैलाश सारंग (vishvas kailash sarang) के एक बयान से सियासी गलियारों में एक बार फिर हलचल मचा दी है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) को महंगाई और बिगड़ी अर्थव्यवस्था के लिए जिम्मेदार बताने से वह कांग्रेस के निशाने पर आ गए हैं. कांग्रेस को दिल्ली में 10 जनपथ के बाहर प्रदर्शन करने की सलाह तक दे डाली. इससे भी कांग्रेस नेताओं की त्योरियां चढ़ी हैं. सोशल मीडिया पर भी लोग बीजेपी और मंत्री सांरग को लेकर मजाक उड़ा रहे हैं. लेकिन मंत्री सारंग विवाद बढ़ने के बावजूद अपने बयान पर कायम हैं.


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मंत्री सारंग के एक बयान से सियासत तो तेज हो गई है. तो आइए ये भी जान लेते हैं कि देश के आजाद होने के वक्त पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru Speech) ने लाल किले की प्राचीर से क्या भाषण दिया था. जिसे शिवराज के मंत्री महंगाई और अर्थव्यवस्था के बिगड़ने का आज तक जिम्मेदार बता रहे हैं.


मंत्री विश्वास सारंग ने देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था के लिए नेहरू को ठहराया जिम्मेदार! वजह भी बताई


भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देश को पूर्ण आजादी मिलने पर 14 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को ऐतिहासिक भाषण दिया था. इस भाषण का शीर्षक था ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ यानी ‘भाग्य के साथ वादा'. इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना. देश के पहले पीएम नेहरू का यह भाषण 20वीं सदी के 11 महानतम भाषणों में शामिल माना जाता है.


नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से कहा था, 'आज हम दुर्भाग्य के एक युग का अंत कर रहे हैं और भारत पुनः खुद को खोज पा रहा है. आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो महज एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का. इससे भी बड़ी जीत और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं.


ये समय आराम करने या चैन से बैठने का नहीं है, बल्कि लगातार प्रयास करने का है. भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना. इसका अर्थ है ग़रीबी, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना. हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आंख से आंसू मिटे. शायद ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों की आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा काम ख़त्म नहीं होगा.


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आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है. भविष्य हमें बुला रहा है. हमें किधर जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और कामगारों के लिए आज़ादी और अवसर ला सकें, हम ग़रीबी, हम एक समृद्ध, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें. हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो हर आदमी-औरत के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके? कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं.'


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