नई दिल्ली: विश्व जल दिवस (World Water Day) के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में नदियों को आपस में जोड़ने की पहली परियोजना पर यूपी और एमपी हस्ताक्षर करेंगे. इसके साथ ही सालों से चर्चा में बनी केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa Interlink Project) की शुरुआत हो जाएगी. यह समझौता केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय और उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बीच होगा. इसी के साथ दोनों प्रदेशों के बीच केन-बेतवा नदी के पानी के बंटवारे को लेकर चल रहे विवाद का अंत हो जाएगा. 


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बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए बुहत खास है यह प्रोजेक्ट
केन-बेतवा लिंक परियोजना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस सपने को साकार करेगी जिसमें नदियों में आने वाले अतिरिक्त पानी को 'नदी जोड़ो परियोजना' के तहत सूखे या कम पानी वाले इलाकों में पहुंचाया जाना था. यह परियोजना जल संकट झेल रहे बुंदेलखंड के लिए किसी उपहार से कम नहीं है. इस परियोजना में मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन जिले कवर होंगे तो उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिले इसके अंतर्गत आएंगे.


दोनों राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की सरकारों के रहते राजनीतिक कारणों से विवाद को सुलझाने की पहल नहीं हुई. लेकिन वर्तमान में केंद्र के साथ दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं. केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने दोनों राज्यों के बीच यह विवाद सुलझाने के लिए सिंतबर 2020 में केन्द्रीय प्राधिकरण का गठन किया था. दोनों राज्यों से कार्ययोजना मंगाई गई. यूपी और एमपी के मुख्यमंत्रियों से गजेंद्र सिंह शेखावत ने मुलाकात की और आखिरकार अब वर्षों पुराना मसला सुलझने जा रहा है.


जानिए क्या है केन बेतवा लिंक परियोजना?
राष्ट्रीय नदी विकास एजेंसी (National River Development Agency) द्वारा देश में प्रस्तावित 30 नदी जोड़ो परियोजनाओं में एक केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट भी है. इसकी अनुमानित लागत लगभग 45000 करोड़ है, जिसका 90 प्रतिशत केन्द्र सरकार वहन करेगी. इसमें मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र शामिल है. 


केन-बेतवा लिंक परियोजना: UP और MP सरकार के बीच MOU आज, सुलझेगा वर्षों का विवाद


मध्य प्रदेश में छतरपुर व पन्ना जिलों के सीमा पर केन नदी पर मौजूदा गंगऊ बैराज के अपस्ट्रीम में 2.5 KM की दूरी पर डोढ़न गांव के पास एक 73.2 मीटर ऊंचा ग्रेटर गंगऊ बांध प्रस्तावित है. कॉन्क्रीट की 212 किलोमीटर लंबी नहर द्वारा केन नदी का पानी उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में बेतवा नदी पर स्थित बरुआ सागर में डाला जाना प्रस्तावित है. 


इस प्रोजेक्ट में 2 बिजली परियोजनाएं भी शामिल हैं
केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट में 2 बिजली परियोजनाएं भी प्रस्तावित हैं, जिनकी कुल स्थापित क्षमता 72 मेगावाट होगी. संपर्क नहर के मार्ग में पड़ने वाले 6.45 लाख हेक्टेयर (1.55 लाख हेक्टेयर उत्तर प्रदेश में एवं 4.90 लाख हेक्टेयर मध्य प्रदेश में) जमीन की सिंचाई के लिए 31,960 लाख घन मीटर पानी इस्तेमाल होगा. इससे घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के लिए 120 लाख घन मीटर पानी प्रदान किया जाएगा.


साल 2008 में तैयार हुआ इस परियोजना का खाका
परियोजना का खाका 2008 में तैयार किया गया था. लेकिन कुछ मंजूरियों के न मिलने के कारण मामला अटका रहा. वर्ष 2012 में  एक बार फिर इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट पर चर्चा शुरू हुई, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि परियोजना पर समयबद्ध तरीके से अमल किया जाए.


वर्ष 2016 में कुछ पर्यावरणीय मंजूरियां प्राप्त होने के साथ ही मोदी सरकार ने केन-बेतवा लिंक परियोजना पर अमल करना शुरू किया. इस परियोजना के सन्दर्भ में एक अन्य मुख्य आपत्ति थी पन्ना टाइगर रिजर्व के 5500 हेक्टेयर से ज्यादा हिस्से का योजना क्षेत्र में आना. लेकिन नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने इस पर अपनी सशर्त सहमति दे दी है. 


UP और MP के बीच पानी बंटवारे को लेकर विवाद 
वर्ष 2017 में फिर से परियोजना को लेकर चर्चा शुरू हुई. लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद फंस गया. परियोजना की समझौता शर्त के मुताबिक यूपी को रबी सीजन के लिए 700 एमसीएम पानी दिया जाना था, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार 930 एमसीएम पानी की मांग कर रही थी. मध्य प्रदेश सरकार पहले तय हुए 700 एमसीएम पानी देने पर ही सहमत थी.


दोनों राज्यों के साथ केंद्र में भाजपा की सरकार, मामला सुलझ गया
यह मसला इसलिए भी उलझा रहा क्योंकि उत्तर प्रदेश और दूसरी पार्टियों की सरकारें रहीं, केंद्र में किसी और पार्टी ​की. मध्य प्रदेश में जरूर भाजपा की सरकार थी. जब दोनों राज्यों के साथ केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो इस प्रोजेक्ट में तेजी देखने को मिली. केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद एक एक कर विवाद के सभी मुद्दों पर सहमति बनी. अब पीएम मोदी की मौजूदगी में विश्व जल दिवस के दिन इस विवाद का हमेशा के लिए अंत होने जा रहा है.


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