नई दिल्लीः दुनिया के सबसे महंगे लिक्विड की बात करें तो यह है घोड़े की नाल के आकार वाले केकड़े का खून. जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करीब 12 लाख रुपए लीटर है. केकड़े के खून के इतना महंगा होने की वजह इसकी एक ऐसी खासियत है, जिसने अब तक हजारों लोगों की जान बचाई होगी. तो आइए जानते हैं कि केकड़े का ब्लड इतना महंगा क्यों है और मेडिकल साइंस में इसकी क्या अहमियत है?


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क्यों होता है केकड़े का ब्लड इतना महंगा?
केकड़े का इस धरती पर अस्तित्व साढ़े 4 करोड़ साल से भी पुराना है. हालांकि साल 1960 की केकड़े की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ गई है. दरअसल घोड़े की नाल के आकार वाले केकड़े का खून नीले रंग का होता है. केकड़े के खून के नीले रंग का होने का कारण उसके खून में कॉपर की मात्रा ज्यादा होना है. केकड़े के खून में खास  तरह की सेल्स पाई जाती हैं, जो किसी भी बैक्टीरिया के चारों तरफ इकट्ठा होकर एक क्लॉट बनाती हैं. केकड़े के खून की इसी खासियत के चलते इसकी डिमांड मेडिकल साइंस में बहुत ज्यादा बढ़ गई है. 


आज अधिकतर वैक्सीन, इंजेक्शन आदि की टेस्टिंग केकड़े के ब्लड से ही होती है. इन वैक्सीन या इंजेक्शन को केकड़े के ब्लड पर डालकर देखा जाता है, अगर इनमें बैक्टीरिया की थोड़ी मात्रा भी होगी तो केकड़े के ब्लड उसके साथ क्लॉट बना लेगा. यदि टेस्टिंग के दौरान क्लॉट बनता है तो टेस्टिंग फेल मानी जाती है और दवाई में और सुधार किया जाता है. जब टेस्टिंग पास हो जाती है तो उसके बाद ही वैक्सीन या इंजेक्शन को इस्तेमाल का अप्रूवल मिलता है. 


केकड़ों के लिए खतरा बनी उनकी खासियत


चूंकि आपने, हम सभी ने जीवन में कभी ना कभी वैक्सीन या इंजेक्शन का इस्तेमाल किया होगा तो कह सकते हैं कि केकड़ के इस नीले खून ने गंभीर बीमारियों से हमारी भी जान बचाई है. आज मेडिकल साइंस में केकड़े के नीले खून की इतनी डिमांड है कि हर साल अकेले अमेरिका के तटों से 5 लाख केकड़े पकड़े जाते हैं और उनसे नीला ब्लड इकट्ठा किया जाता है. इसके अलावा चीन और मैक्सिको के समुद्र तटों पर भी बड़ी संख्या में केकड़े पकड़े जाते हैं. हालांकि अच्छी बात है कि केकड़ों से ब्लड इकट्ठा करने के बाद उन्हें वापस समुद्र में छोड़ दिया जाता है लेकिन पकड़े गए केकड़ों में से करीब 15 फीसदी केकड़ों की मौत हो जाती है. कई लोगों का मानना है कि केकड़ों की यह खासियत ही उनके अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है और बीते 40 सालों में केकड़ों की जनसंख्या में कथित तौर पर 80 फीसदी की कमी आई है.