इंदौर: पांच साल पहले पाकिस्तान से लौटी दिव्यांग गीता को उसका परिवार मिल गया है, सिर्फ डीएनए जांच होना बाकी रह गया है. महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के वाजुल में रहने वाली मीना पांद्रे ने गीता को अपनी बेटी बताया है. मीना ने गीता का असली नाम राधा वाघमारे बताया. गीता के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. मां ने दूसरी शादी कर ली है. मीना पांद्रे अपने परिवार के साथ गुरुवार को गीता से मिलीं. मीना के मुताबिक उनकी बेटी के पेट पर जले का निशाना था. गीता के पेट पर भी जले का निशान मिला है. 


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डीएनए टेस्ट मैच करने पर ही मीना पांद्रे को सौंपी जाएगी गीता
डीएनए टेस्ट और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद ही गीता को मीना पांद्रे को सौंपा जाएगा. गीता के देखरेख का जिम्मा संभाल रहे इंदौर की सामाजिक संस्था के मुताबिक जो बात गीता ने उन्हें बताई थी उसके अनुसार सारी परिस्थितियां मीना पांद्रे से मेल खा रही हैं. चाहे वह रेलवे स्टेशन के पास मैटरनिटी होम होने की बात हो या फिर उसके परिवार के द्वारा मंदिर के बाहर फूल मालाएं बेचने की बात हो.


गीता के पेट पर जो जले का निशान है इसकी तस्दीक मीना पांद्रे ने की है, जो गीता को अपनी बेटी बता रही हैं. इंदौर की सामाजिक संस्था ने गीता को महाराष्ट्र की एक सामाजिक संस्था को गीता को सौंप दिया है. गीता अभी वहीं पर रहेगी. 



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गीता ने इशारों में किया था घर के पास नदी और खेतों का जिक्र 
इस दौरान उसकी मां होने का दावा करने वाली मीना पांद्रे उससे लगातार मिलती रहेंगी ताकि यह बात पूरी तरीके से साफ हो पाए कि वही गीता की मां हैं. इंदौर के आनंद सर्विस सोसाइटी के ज्ञान पुरोहित ने बताया कि गीता ने बचपन की स्मृतियों के आधार पर उन्हें इशारों में बताया कि उसके घर के पास एक नदी थी. वहां गन्ने तथा मूंगफली की खेती होती थी.


इसके साथ ही वहां डीजल के इंजन से रेल चला करती थी. रेलवे स्टेशन के पास मैटरनिटी होम था. उसके परिवार के लोग मंदिर के बाह फूल मालाएं बेचते थे. गीता द्वारा दिए गए ये ब्योरे महाराष्ट्र के मराठवाड़ा (औरंगाबाद और इसके आसपास) इलाके के कुछ स्थानों से मेल खाते हैं. 



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11 साल की उम्र में पाकिस्तान पहुंची, सुषमा स्वराज भारत ले आईं
गीता पाकिस्तान में एक रेलवे स्टेशन पर 11-12 साल की उम्र में मिली थी. वहां ईधी वेलफेयर ट्रस्ट ने उसे अपने पास रखा था. 26 अक्टूबर 2015 को तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पहल पर गीता को पाकिस्तान से भारत लाया गया. तब से वह इंदौर की एक सामाजिक संस्था में रह रही है. यह संस्था मूक-बधिरों की की देखरेख करती है. यहां से उसके परिवार की तलाश शुरू की गई.


चूंकि गीता न बोल सकती हैं और सुन पाती हैं, वह पढ़ी लिखी भी नहीं थी. ऐसे में उससे परिवार के बारे में जानकारी निकलवा पाना मुश्किल था. 26 अक्टूबर 2015 को गीता को इंदौर लाए जाने के बाद देशभर के कई दंपतियों ने गीता के माता-पिता होने का दावा किया. लेकिन किसी का DNA उससे मैच नहीं हुआ.


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