MP History: मध्य प्रदेश की इस पहाड़ी पर हुआ था भगवान परशुराम का जन्म, फोटो के साथ जानें पूरी कहानी
परशु और क्रोध के धारक भगवान परशुराम बल और विद्या दोनों के धनी माने जाते हैं. एक कथा के मुताबिक, भगवान परशुराम का जन्म जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था. आइए जानते हैं इंदौर के पास स्थित इस जगह के बारे में...
भगवान परशुराम का जन्म
भगवान परशुराम का जन्म रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण में विष्णु के छठवें अवतार परशुराम का उल्लेख होता है. एक कथा के मुताबिक भगवान परशुराम का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ है. तो आइए जानते हैं इस जगह के बारे में...
परशुरामजी त्रेता युग यानी रामायण काल में एक ब्राह्मण ऋषि के जन्मे थे. विष्णु के छठे अवतार परशुराम पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि जमदग्नि के यज्ञ से देवराज इंद्र खुश हो गए थे.
इंद्र ने खुशी से महर्षि जमदग्नि के वरदान दिया और इसके रूप में पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया में परशुराम का जन्म हुआ. इंदौर जिले के मानपुर गांव के जानापाव पर्वत में परशुराम का जन्म हुआ था.
भगवान परशुराम के पितामह भृगु ने भगवान को राम नाम दिया था लेकिन परशु धारण करने के कारण उनका नाम परशुराम पड़ गया और फिर यही नाम भगवान का प्रचलित हुआ.
क्षेत्रीयों की मानें तो परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि का आश्रम इसी पहाड़ पर था. इंदौर के पास ही मुंडी गांव में स्थित रेणुका पर्वत को परशुराम की माता का प्राचीन निवास बताया जाता है. शास्त्रों की मानें तो परशुराम ने ही अपनी माता की हत्या की पवित्र तीर्थ
जानापाव से दो दिशा में नदियां बहती हैं. यह नदियां चंबल में होती हुईं यमुना और गंगा से मिलती हैं और फिर यहां से बंगाल की खाड़ी में समा जाती हैं. इन नदियों का पानी नर्मदा में भी मिलता है.
जानापाव 854 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पर्वत विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है. यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल इंदौर से 45 किलोमीटर की दूरी पर है.जानापाव पर्वत पर हर साल कार्तिक और क्वांर के माह में मेला लगता है.
कथाओं की माने तो मां रेणुका एक प्रसिद्ध चिकित्सक थीं और उन्होंने पहाड़ी और उसके आसपास कई तरह की जड़ी-बूटियां भी उगाई थी. आज भी देश भर से कई आयुर्वेदिक डॉक्टर जड़ी-बूटियों की तलाश में पहाड़ी पर पहुंचते हैं.
चूंकि यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल और तीर्थ भी है इसलिए मई 2008 में, मध्य प्रदेश सरकार ने इस स्थल को एक अंतरराष्ट्रीय तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता दी थी.