अश्विन सोलंकी/नई दिल्लीः शुहॅई निशिडा और सुई ऑ की कहानी (Shuhei Nishida and Sueo Oe Inspirational Story): 1936 जर्मनी के बर्लिन (1936 Berlin Olympics, Germany) में ओलिंपिक्स आयोजित हुए. विश्व युद्ध के दौर में अगर एक नाम सभी को याद था तो वो था जर्मनी के तानाशाह हिटलर (Adolf Hitler) का. उसी दौर में जापान के दो एथलीट ऐसे भी थे, जिन्होंने ओलिंपिक स्टेज के हार-जीत वाले तनावपूर्ण माहौल में भी अपनी दोस्ती को जिंदा रखा. उनके एक कारनामे ने उन्हें ओलिंपिक इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर कर दिया. हम बात कर रहे हैं जापान के शुहॅई निशिडा (Shuhei Nishida) और सुई ऑ (Sueo Oe) के बारे में, जिन्होंने 'द फ्रेंडशिप मेडल' (The Friendship Medal) को पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया. 


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पांच एथलीट पहुंचे थे फाइनल राउंड में
1936 बर्लिन ओलिंपिक्स में पुरुषों के पोल वॉल्ट (Paul Vault) इवेंट का फाइनल राउंड जारी था. पांच खिलाड़ी 4.15 मीटर की हाइट पार कर अंतिम स्टेज तक पहुंचे. 25 हजार से ज्यादा दर्शक स्टेडियम में खिलाड़ियों के लिए चीयर करते हुए उनका उत्साह बढ़ा रहे थे. चारों तरफ तालियों की गूंज, दिन में शुरू हुए इवेंट को खत्म होते-होते रात हो गई. लाइट्स जलाई गईं, अंधेरे में रोशनी होते ही खिलाड़ी नजर आने लगे. 


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गोल्ड से दूर हुए दोनों जापानी खिलाड़ी
4.25 मीटर पार करने की कोशिश में अमेरिका के बिल ग्रेबर (Bill Graber) सबसे पहले बाहर हो गए. अमेरिका के ही अर्ल मीडॉस (Earl Meadows) ने 4.35 मीटर की ऊंचाई टारगेट की और उसे पहले अटेम्प्ट में पार भी कर दिया. 4.35 मीटर को पार करने में बाकी 3 खिलाड़ी असफल रहे, जिनमें एक अमेरिकन और दो जापानी खिलाड़ी शामिल थे. मीडॉस ने 4.45 मीटर को टारगेट किया लेकिन असफल रहे. गोल्ड का फैसला तो हो चुका था, वो मीडॉस को मिलेगा. बात थी सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल की. तीन खिलाड़ी बचे थे, जिनमें एक राउंड से फैसला किया जाना था. 


सिल्वर और ब्रॉन्ज में हो गया टाई!
अमेरिका के बिल सेफ्टन (Bill Sefton) ने सबसे पहले अटेम्प्ट किया, लेकिन तीन अटेम्प्ट में असफल होकर बाहर हो गए. यहां दोनों जापानी खिलाड़ी सफल रहे. दोनों के मेडल तो पक्के हो गए लेकिन अहम सवाल यह था कि सिल्वर किसे दिया जाए. दोनों ही जापानी खिलाड़ी स्टूडेंट थे, शुहॅई वासेडा यूनिवर्सिटी (Waseda University) और सुई केऑ यूनिवर्सिटी (Keio University) में पढ़ते थे. उससे भी बढ़कर बात यह थी कि दोनों दोस्त थे. 


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आगे खेलने से दोनों ने किया इनकार!
दोस्ती के चलते दोनों ने अगला राउंड खेलने से मना कर दिया, उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ खेलने से इनकार किया. वे अवॉर्ड बांटना चाहते थे. उनकी इस इच्छा को ओलिंपिक समिति ने रिजेक्ट कर दिया. किसी एक को ही सिल्वर दिया जा सकता था. जापानी टीम को फैसला लेने के लिए कहा गया. बहुत देर तक डिस्कस करने के बाद टीम ने निर्णय लिया कि शुहेई जिन्होंने पहले अटेम्प्ट में 4.25 मीटर पार किया उन्हें सिल्वर मिलेगा. सुई को ब्रॉन्ज दिया जाएगा, जिन्होंने दूसरे अटेम्प्ट में उसे पार किया था. बता दें कि पोल वॉल्ट इवेंट में एक टारगेट को पार करने के लिए तीन अटेम्प्ट मिलते हैं.


मेडल जीतकर भी नाखुश थे दोनों
जापानी टीम के फैसले के बाद खिलाड़ियों को मेडल दिए गए. दोनों खिलाड़ी अब भी नाखुश थे. गेम्स खत्म होने के बाद उन्होंने फैसला किया कि वो अपने हाथ से ही मेडल बांट लेंगे. उन्होंने ब्रॉन्ज और सिल्वर को आधा-आधा कटवाया. फिर ब्रॉन्ज के आधे हिस्से, जो उन दिनों कॉपर का हुआ करता था, उसमें सिल्वर के आधे हिस्से को मिलाया. उन्होंने इस तरह के दो नए मेडल ही बना दिए. 


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आज भी रखा है 'The Friendship Medal'
जापानी खिलाड़ियों के इन मेडल्स को 'द फ्रेंडशिप मेडल' (The Friendship Medal) के नाम से जाना गया. 1941 में विश्व युद्ध के दौरान सुई ऑ शहीद हो गए. शुहॅई ने 1997 में दुनिया को अलविदा कहा. सुई का मेडल उनके परिवार के पास है, लेकिन शुहॅई का मेडल आज भी वासेडा यूनिवर्सिटी में संभाल के रखा गया है. हिटलर के उस तानाशाही वाले युग में भी जापान के इन दो युवा खिलाड़ियों ने ओलिंपिक के वर्ल्ड स्टेज पर फ्रेंडशिप को जिंदा रखते हुए दोस्ती की नई मिसाल पेश की.  


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