प्रमोद शर्मा/खंडवा: खंडवा के सबसे प्राचीन विट्ठल मंदिर में 140 वर्षों से लगातार परंपरा के अनुसार सात दिवसीय नाम सप्ताह आयोजन चल रहा है. इस मंदिर में खंडवा जिले की तमाम भजन मंडलियां प्रतिदिन यहां भजन करने आती है, इस तरह यहां 24 घंटे भजन चल रहे हैं. ऐसा पिछले 140 वर्षों से लगातार चलते आ रहा है. कोरोना संक्रमण की वजह से विगत 2 वर्षों से यहां अन्य आयोजनों को नियंत्रित किया है लेकिन मंदिर के अंदर सात दिवसीय भजन तक भी निर्बाध चल रहे हैं.


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1882 में स्थापना हुई मूर्ति
बता दें कि खंडवा जिले के सबसे प्राचीन विट्ठल मंदिर में सन 1882 में भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा स्थापित की गई थी. बताया जाता है कि मंदिर के गुरु महाराज ने जयपुर से पीठ पर बांधकर दत्तात्रेय भगवान की प्रतिमा खंडवा लाए थे और यहां स्थापित की थी. जिस समय यहां इस मंदिर की स्थापना हुई उस समय यहां घना जंगल था, लेकिन अब यह मंदिर शहर के बीचो बीच आ गया है. इस मंदिर की महत्ता महाराष्ट्र के पंढरपुर स्थित पंढरीनाथ मंदिर के समान मानी जाती है. जिस दिन से इस मंदिर में भगवान पंढरीनाथ की स्थापना हुई तभी से यहां सात दिवसीय नाम सप्ताह महोत्सव मनाया जाता है. जो पिछले 140 वर्षों से आज तक सतत चला रहा है.


मंदिर में आकर्षक नक्काशी
मंदिर के चारों और लकड़ी पर आकर्षक नक्कशी की गई है. पुजारी परिवार के अनुसार महाराष्ट्र के पंढ़रपुर व कर्नाटक में बने मंदिरों की तरह ही यह पूरी नक्काशी है. जिसमें अलग-अलग भगवानों की प्रतिमाएं, हाथी फल-पत्तियां नजर आती है. आज भी यह मूल स्वरूप में ही देखी जा सकती है.


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पंढरीनाथ के रूप में पूजते हैं
इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के कई रूप हैं. महाराष्ट्र की सीमा से सटे होने की वजह से महाराष्ट्रीयन हिंदू परिवार यहां उन्हें पंढरीनाथ के रूप में पूजते हैं. पंढरीनाथ के रूप में यहां भगवान श्री कृष्ण के साथ रुक्मणी की प्रतिमा भी स्थापित है. सभी हिंदू समाज इस मंदिर में नाम सप्ताह उत्सव के दौरान पूजा-पाठ और आशीर्वाद लेने जरूर पहुंचते हैं. सात दिवसीय नाम सप्ताह के दौरान जिले की तमाम भजन मंडलियां यहां भक्ति भाव के साथ भजन की प्रस्तुति देने आती हैं. पूरे सातों दिन यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है, खासकर महिला श्रद्धालुओं के लिए यह उत्सव भक्ति भाव के साथ प्रभु की आराधना का सबसे अच्छा समय है.


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