ददन विश्वकर्मा/नई दिल्ली: आज से वैवाहिक कार्यक्रम शुरू हो रहे हैं. शादी-विवाह एक सामाजिक आयोजन है. इसमें वर-वधू पक्ष के रिश्तेदार और सामाज के लोग एक जगह मौजूद होते हैं. इस दौरान धार्मिक रीति-रिवाज के तहत शादी की रस्में निभाई जाती हैं. इसके बाद सामाजिक रूप से दोनों को एक साथ रहने का हक मिल जाता है. यह रीति-रिवाज सनातन से चले आ रहे हैं. लेकिन अब क्योंकि जमाना मॉडर्न हो चला है, इसलिए शादी को और भी अटूट और कानूनी दायरे में भी पंजीकृत किया जाने लगा है. साथ ही कई सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए इस पंजीकृत प्रमाण-पत्र की जरूरत महसूस होती है. 


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वहीं दूसरी तरफ किसी तरह की धोखाधड़ी और तलाक जैसी हालात में भी यह प्रमाण-पक्ष जरूरी लगता है. इस लिए शादी का पंजीयन कराना और प्रमाणपत्र प्राप्त करना वर और वधू हित में माना जाता है. धार्मिक-पारंपरिक तरीके और विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत, दोनों तरह से की गईं शादियों के लिए ज़िला विवाह पंजीयक से यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया जाता है. 


विवाह प्रमाण पत्र के फायदे क्या-क्या हैं?
- भारतीय कानून के अनुसार विवाहित होने का कानूनी प्रमाण माना जाता है.
- शादी के बाद अगर वधू अपना सरनेम नहीं बदलना चाहती तो यह दस्तावेज संबंधित सभी कानूनी फायदे पहुंचाता है. 
- ज्वॉइंट अकाउंट और जीवन बीमा करवाने के लिए यह प्रमाण जरूरी होता है
- विवाह के पश्चात किसी भी नेशनल बैंक से लोन लेने के लिए विवाह प्रमाण-पत्र लगता है. 
- कई सरकारी योजनाओं का लाभ पत्नी लेना चाहती है तो यह प्रमाण-पत्र सहायक होता है. 


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क्या कहता है कानून?
भारत में विवाह, दो विवाह अधिनियमों में से किसी एक अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जा सकता है- पहला हिन्दू विवाह अधिनियम (1955) दूसरा विशेष विवाह अधिनियम (1954). हिन्दू विवाह के पक्ष अविवाहित या तलाकशुदा होने चाहिए या यदि पहले विवाह हो गया है तो उस शादी के समय पहली पत्नी या पति जीवित नहीं होने चाहिए. विशेष विवाह अधिनियम, विवाह अधिकारी द्वारा विवाह सम्पन्न करने तथा पंजीकरण करने की व्यवस्था करता है. हिन्दू विवाह अधिनियम केवल हिन्दुओं के लिए लागू होता है, जबकि विशेष अधिनियम भारत के सभी नागरिकों के लिए लागू होता है.


कहां और किससे लें विवाह प्रमाण पत्र?
- हिंदू विवाह कानून के तहत उस रजिस्ट्रार के पास आवेदन की जरूरत होती है, जिसके क्षेत्र में विवाह हुआ हो या फिर दूल्हा-दुल्हन में से कोई संबंधित क्षेत्र में कम से कम छह महीने से रह रहा हो.
- पंजीकरण के लिए दोनों को अपने माता-पिता या अभिभावक या फिर विवाह के साक्षी रहे अन्य लोगों के साथ विवाह के एक माह के अंदर रजिस्ट्रार के सामने पेश होना होता है.
- इसमें पांच साल तक के समय की छूट रजिस्ट्रार दे सकता है, लेकिन इससे बाद की छूट संबंधित जिला रजिस्ट्रार ही दे सकता है.
- विशेष विवाह कानून: इसके लिए विवाह के इच्छुक जोड़े को विवाह अधिकारी के पास शादी से कम से कम 30 दिन पहले आवेदन देना होता है.  इस आवेदन के आधार पर उस कार्यालय के नोटिस बोर्ड संबंधितों के शादी की नोटिस लगा दी जाती है. 
- अगर लड़के या लड़की में से कोई किसी अन्य क्षेत्र का रहने वाला है तो वहां के संबंधित विवाह अधिकारी के कार्यालय पर भी इसे चस्पा किया जाता है. 
- अगर नोटिस चस्पा करने के एक माह के भीतर कोई आपत्ति नहीं आती है तो विवाह संपन्न करा दिया जाता है. अगर आपत्ति आती है तो विवाह अधिकारी जांच के बाद फैसला करेगा कि विवाह कराना है या नहीं.
- विवाह के बाद ही इसे रजिस्टर किया जाएगा. पहले से किया गया विवाह भी 30 दिन का नोटिस देने के बाद विशेष विवाह अधिनियम के तहत रजिस्टर कराया जा सकता है. 
- कोविड-19 के चलते प्रमाणपत्र के लिए पंजीकरण कराने की सुविधा ऑनलाइन कर दी गई है. ऑनलाइन मैरिज सर्टिफिकेट फॉर्म के साथ कुछ जरूरी डॉक्युमेंट्स अपलोड करने पड़ते हैं.
- जिन गांवों में इसकी सुविधा नहीं है, वहां शादी के पंजीकरण के लिए नवदंपती को ग्राम अधिकारी कार्यालय में संपर्क कर कुछ जरूरी दस्तावेज़ जमा करने पड़ते हैं.


क्यों फायदे का सौदा है विवाह प्रमाण-पत्र हासिल करना?
सामाजिक बंधनों के बाद भी कई जोड़े शादी का प्रमाण पत्र लेते हैं. इसके कई फायदे भी हैं. जैसे अगर किसी जोड़े का एक साथी धोखा देकर भाग जाता है तो ऐसे में दूसरा साथी इस प्रमाण-पत्र की मदद से पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करा सकती है. आवेदन के साथ संलग्न दस्तावेजों की मदद से पुलिस दोषी का पता आसानी से लगा लेती है.


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तलाक लेने का रास्ता हो जाता है आसान
विवाह प्रमाण-पत्र तलाक के लिए अपील करने के लिए सबसे जरूरी दस्तावेज माना जाता है. सिंगल मदर या तलाकशुदा के लिए नौकरी में आरक्षण का लाभ लेने के लिए तलाक का दस्तावेज दिखाना होता है. यहां तक कि गुजाराभत्ता के लिए भी आपको मैरिज सर्टिफिकेट दिखाना होगा.


विवाह प्रमाण-पत्र पाने के लिए कौन से डॉक्युमेंट्स लगते हैं?
- प्रमाण पत्र पाने के लिए वर-वधू द्वारा हस्ताक्षर किया हुआ आवेदन पत्र पहली प्रक्रिया मानी जाती है. इसमें विवाह की तिथि व स्थान, जन्म तिथि, विवाह के समय की वैवाहिक स्थिति व राष्ट्रीयता का जिक्र हो.
- दोनों की जन्मतिथि का प्रमाण पत्र. 
- दूल्हा व दुल्हन के 4 पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ
- दूल्हा-दुल्हन के आवास और पहचान का प्रमाण पत्र 
- विवाह का आमंत्रण कार्ड 
- शादी के दो फोटो, जिनमें वर-वधू का चेहरा साफ-साफ दिख रहा हो.
- अगर शादी किसी धार्मिक स्थल पर हुई हो तो वहां के पुरोहित या पंडित द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाण पत्र.
- अगर किसी विदेशी नागरिक से शादी कर कर रहे हैं तो उस व्यक्ति के देश की एम्बेसी से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जरूरी होता है.
- सरनेम बदलने के लिए 10 रुपये का नॉन-ज्यूडिशियल स्टैम्प पेपर लगाना होता है.
- 10 रुपये का नॉन-ज्यूडिशियल स्टैम्प पेपर पर पति-पत्नी द्वारा अलग-अलग एफिडेविट दिया जाता है. 
-  सभी दस्तावेजों को किसी गैजेटेड ऑफिसर से अटेस्ट करवाना होता है. 
- तीन गवाहों के अलावा दूल्हा-दुल्हन के माता-पिता या अभिभावक भी रजिस्ट्रार कार्यालय में उपस्थित होने चाहिए.


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