चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने नए मोटर वाहनों के लिए अनिवार्य रूप से 5 साल तक 100% नुकसान की भरपाई करने वाला बंपर-टू-बंपर बीमा (Bumper to Bumper Insurance) कराने के अपने आदेश को फिलहाल स्थगित रखा है. 


IRDAI ने की थी अपील


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साधारण बीमा कंपनी (GIC) ने अदालत से अनुरोध किया था कि भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) की मंजूरी के बिना इस फैसले को लागू नहीं किया जा सकता है और ऐसा करने के लिए 90 दिनों की जरूरत होगी. इसके बाद जस्टिस एस. वैद्यनाथन ने 4 अगस्त को पारित अपने आदेश को स्थगित रखने का फैसला किया.


क्या है बंपर टू बंपर इंश्योरेंस?


मद्रास हाई कोर्ट ने इससे पहले फैसला देते हुए कहा था कि 1 सितंबर से बिकने वाले नए मोटर वाहनों का संपूर्ण बीमा (बंपर-टू-बंपर) अनिवार्य रूप से होना चाहिए. संपूर्ण बीमा यानी बंपर-टू-बंपर बीमा  में वाहन के फाइबर, मैटल और रबड़ के हिस्सों सहित 100 प्रतिशत नुकसान का बीमा मिलता है.


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कोर्ट ने जारी किया था सर्कुलर


GIC के वकील ने बुधवार को यह मामला उठाते हुए जस्टिस वैद्यनाथन से कहा, 'IRDAI एक नियामक संस्था है और इसकी मुख्य भूमिका बीमा व्यवसाय के क्षेत्र में सामने आने वाले सामान्य मुद्दों के संबंध में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों दोनों के साथ तालमेल स्थापित करना है. इसलिए, यह जरूरी है कि जीआईसी और इरडई, दोनों को इस अपील में पक्षकार बनाया जाए और उनकी बात सुनी जाए.' उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवहन आयुक्त ने 31 अगस्त को राज्य के सभी क्षेत्रीय परिवहन विभागों को अदालत के आदेश का प्रभावी इम्प्लीमेंटेशन करने के लिए एक सर्कुलर जारी किया था.


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कोर्ट ने आदेश को किया स्थगित


वकील ने 31 अगस्त को एक याचिका दायर कर कहा था कि बीमा कंपनियां अदालत के आदेशों का पालन करने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे केवल उन प्रोडक्ट्स का डिस्ट्रीब्यूशन करती हैं, जिन्हें इरडई मंजूरी देता है. उन्होंने अनुरोध किया कि बीमा कंपनियों को इरडई की मंजूरी के बाद कंप्यूटर सिस्टम में बदलाव करने के लिए 90 दिनों का वक्त चाहिए. तब तक, अदालत अपने आदेश को स्थगित कर सकती है. इसके बाद जस्टिस ने वकील की दलीलों पर विचार किया और कहा कि जीआईसी और इरडाई इस मामले के जरूरी पक्ष हैं और इसके साथ ही अतिरिक्त मुख्य सचिव, परिवहन विभाग और संयुक्त परिवहन आयुक्त (आर) भी इसके पक्षकार होंगे. अदालत ने इस बीच 4 अगस्त को पारित अपने आदेश को फिलहाल स्थगित कर दिया. पक्षकारों को सुनने के बाद जरूरी होने पर कोई स्पष्टीकरण जारी किया जा सकता है.


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