मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने शुक्रवार को बंबई उच्च न्यायालय में दावा किया कि अभिनेता संजय दत्ता को दी गई पैरोल या फरलो के हर एक मिनट को वह जायज ठहरा सकती है. इसके बाद उच्च न्यायालय ने पूछा कि क्या यह नियम हर कैदी पर समान रूप से लागू होते हैं. गौरतलब है कि संजय दत्त 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटो के मामले में जेल में बंद थे. यह मामला उसी दौरान उन्हें दी गई पैरोल या फरलो से जुड़ा है. एक जनहित याचिका में दत्त को बार-बार फरलो या पैरोल दिए जाने तथा मामले में पांच साल की सजा पाए दत्त को सजा पूरी होने से पहले वर्ष 2016 में रिहा करने पर सवाल उठाया गया है. पैरोल विशेष कारणों के चलते दी जाती है जबकि फरलो कैदियों का अधिकार होता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

क्या हुआ कोर्ट में?
महाराष्ट्र के महाधिवक्ता आशुतोष कुम्भाकोनी ने शुक्रवार को कहा, ‘‘ एक मिनट या सेकेंड के लिए भी दत्त का जेल से बाहर जाना कानून का उल्लंघन नहीं था. हम उस हर एक मिनट का लेखा जोखा दे सकते हैं जब उन्हें जेल से बाहर रहने की इजाजत दी गई. ’’उन्होंने कहा, ‘‘ हर कैदी को पैरोल देने के लिए हम सख्त और मानक प्रक्रिया का पालन करते हैं. आरटीआई और जनहित याचिकाओं के दौर में हम कोई जोखिम नहीं लेते.’’ 


पिछले वर्ष सुनवाई के दौरान राज्य ने उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ को कहा था कि अभिनेता को जल्द रिहाई जेल में रहने के दौरान उनके अच्छे व्यवहार के लिए दी गई. अदालत ने गौर किया कि दत्त को सजा काटने के दो महीने के भीतर ही पैरोल मिल गई थी, उसी समय फरलो भी दिया गया था. ऐसी रियायत अन्य कैदियों को आमतौर पर प्राप्त नहीं होती.


संजय दत्त पर बोले महेश भट्ट, 'वो सुबह उठकर शराब से कुल्‍ला करता था...'


कुम्भाकोनी ने शुक्रवार को कहा कि यह रियायत उन्हें जुलाई 2013 में उनके परिवार में चिकित्सीय आपात स्थिति के मद्देनजर दी गई थी. उन्होंने कहा, ‘‘ उनकी बेटियां बीमार थीं और उनकी पत्नी की सर्जरी होनी थी. ’’ महाधिवक्ता ने कहा, ‘‘चिकित्सीय आपात स्थिति में हम पैरोल के आवेदन पर 24 घंटे से आठ दिन के भीतर फैसला लेते हैं. दत्त के मामले में हमने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सर्जरी करने वाले चिकित्सक से मिलने भेजा था ताकि मामले की पुष्टि की जा सके.’’


न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि एक ‘‘आम’’ कैदी को पैरोल और फरलो देने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं. अदालत ने राज्य सरकार को इस संबंध में एक हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया है. मामले की सुनवाई एक फरवरी के लिये स्थगित करते हुए न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘आप हमें बता सकते हैं कि आपने सभी कैदियों के लिए समान प्रक्रिया का पालन किया. अन्यथा हमें दिशा-निर्देश जारी करने होंगे.’’ 


राज्य सरकार के मुताबिक दत्त के अच्छे आचरण को देखते हुए उन्हें तयशुदा पांच वर्ष की सजा से आठ महीने और 16 दिन पहले 25 फरवरी 2016 को रिहा करने का फैसला किया गया था.


(इनपुट - भाषा)