कोर्ट के आदेश का वो पैराग्राफ.. जिससे सुलग उठा मणिपुर, अब हाईकोर्ट ने क्या कहकर उसे ले लिया वापस
Manipur High Court: मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने ही फैसले का एक पैराग्राफ डिलीट कर दिया है. हाईकोर्ट के उस फैसले के बाद ही मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क गई थी. कुकी समुदाय ने कोर्ट के इस फैसले का जमकर विरोध किया था.
Meitei Community: मणिपुर उच्च न्यायालय ने 27 मार्च, 2023 को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने पर विचार करने के लिए राज्य सरकार को दिया गया अपना निर्देश वापस ले लिया है. यह निर्देश 2023 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया था. न्यायालय ने अपना फैसला वापस लेते हुए कहा कि यह निर्देश 'अनुचित' था और इसने राज्य में 'अशांति' पैदा कर दी थी. न्यायालय ने यह भी कहा कि यह निर्देश 'संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन' था.
असल में मैतेई समुदाय मणिपुर की सबसे बड़ी आबादी वाला समुदाय है. वे लंबे समय से एसटी का दर्जा पाने की मांग कर रहे हैं. न्यायालय के निर्देश के बाद, कुकी समुदाय ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था, जिसके कारण राज्य में हिंसा भड़क गई थी. जस्टिस गोलमेई गैफुलशिलु की बेंच ने आदेश से एक पैराग्राफ को हटाते हुए कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के रुख के खिलाफ था.
क्या था कोर्ट का आदेश..
इसी निर्देश के बाद मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें अब तक 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. पीठ ने आगे यह भी कहा कि वो फैसला महाराष्ट्र सरकार बनाम मिलिंद एवं अन्य के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है. महाराष्ट्र सरकार बनाम मिलिंद एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अदालतें अनुसचित जनजाति की सूची में संशोधन या बदलाव नहीं कर सकती.
कुकी समुदाय का विरोध: कुकी समुदाय का कहना था कि यदि मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दिया जाता है, तो यह उनके अधिकारों और आरक्षण को प्रभावित करेगा. उन्होंने न्यायालय से निर्देश वापस लेने की मांग की थी. न्यायालय ने दोनों समुदायों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला वापस लेने का फैसला किया. एक्सपर्ट्स का मानना है कि मामला "बहुत जटिल" है और इस पर "विचार-विमर्श" की आवश्यकता है.
बता दें कि कोर्ट उस फैसले में कहा गया था कि राज्य सरकार आदेश मिलने की तारीख से 4 हफ्ते के अंदर मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के मामले में तेजी लाए. हालांकि फैसले के खिलाफ मैतेई समुदाय ने रिव्यू पिटीशन लगाई थी. जिसमें कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक किसी जनजाति को एसटी सूची में शामिल करने के लिए न्यायिक निर्देश जारी नहीं किया जा सकता क्योंकि यह राष्ट्रपति का एकमात्र विशेषाधिकार है.