Manipur Violence: मणिपुर का `विलेन` कौन? क्यों अब तक नहीं बुझी हिंसा की आग? जानिए इनसाइड स्टोरी
Manipur Violence Inside Story: मणिपुर (Manipur) अतीत की किस गलती की सजा भुगत रहा है. मणिपुर में किसने हिंसा की आग लगाई है, इसके पीछे का सच क्या है आइए इसके बारे में जानते हैं.
Violence In Manipur: जलते घर, लुटती दुकानें, अंधाधुंध फायरिंग और महिलाओं पर अत्याचार, अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित लोग राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हैं. मणिपुर (Manipur) के ये हालात अब धीरे-धीरे काबू आने लगे हैं. केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने ही स्थिति को सामान्य बनाने में कसर नहीं छोड़ी है. राज्यपाल अनुसुईया उइके ने खुद प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और चुराचांदपुर में राहत शिविरों में रह रहे लोगों से मुलाकात कर उनके जख्मों पर मरहम लगाया. दूसरी तरफ मणिपुर हिंसा (Manipur Violence) पर पीएम मोदी के बयान के बावजूद संसद में उनके बयान के लिए अड़े विपक्ष के 21 सांसदों का डिलिगेशन राज्य में पहुंचा. उसने रिलीफ कैंपो में पीड़ितों से मुलाकात की. दो दिन के इस दौरे पर सियासी बयानबाजी भी शुरू हो चुकी है. आइए जानते हैं कि हिंसा ने इतना भयानक रूप कैसे ले लिया?
CBI ने शुरू की मणिपुर हिंसा की जांच
एक तरफ सियासत जारी है, दूसरी तरफ सरकारी मशीनरी हाई अलर्ट पर है. उम्मीद है कि उसकी कार्रवाई से राज्य में हालात सामान्य हो सकेंगे. मणिपुर हिंसा मामले में गृह मंत्रालय के आदेश पर SIT गठित कर करीब आधा दर्जन मामले दर्ज कर लिए हैं. इन मामलों में सीबीआई अब तक 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है. मणिपुर में दो महिलाओं के साथ हुई ज्यादती में मामले में भी CBI ने शुक्रवार की देर रात को केस दर्ज कर लिया, इस मामले में मणिपुर पुलिस 7 आरोपियों को पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है.
धार्मिक हिंसा का रंग देने की कोशिश
मणिपुर में ये हिंसा 3 मई से जारी है. हिंसा में दो जातीय समुदाय एक दूसरे के सामने हैं. कुछ मौकापरस्त लोग इसे धार्मिक हिंसा का रंग देने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सच ये है कि ये मणिपुर हिंसा धार्मिक दंगा नहीं है, ये मामला पूरी तरह से मणिपुर के दो समुदायों के बीच जातीय हिंसा का है. ये दो समुदाय कुकी और मैतेई हैं, जिनके बीच संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है.
दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा की चिंगारी
मणिपुर के ये दोनों समुदाय अतीत में भी एक दूसरे के खिलाफ संघर्ष में उलझे रहे हैं, एक छोटी सी भी चिंगारी दोनों समुदायों के बीच हिंसा की आग भड़का देती है. मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच, 3 मई से जारी हिंसा में जानमाल का भारी नुकसान हुआ है. दोनों ही सुमदाय के लोग एक दूसरे के निशाने पर हैं. हालांकि केंद्रीय बल और पुलिस की तत्परता की वजह से हिंसा के मामलों पर लगाम लगनी शुरू हो गई है.
हिंसा के बाद से 6065 FIR दर्ज
सरकार की कोशिशों का ही नतीजा है कि हालात तेजी से सामान्य होने की तरफ बढ़ रहे हैं. 17 जुलाई के बाद से हिंसा की वजह से 1 भी मौत नहीं हुई है. आंकड़ों के मुताबिक, मणिपुर हिंसा में कुल 150 मौतें हुईं. हिंसक घटनाओं के दौरान 502 लोग घायल हुए. आगजनी की 5101 वारदात रिपोर्ट की गईं. हिंसक मामलों में 6065 FIR दर्ज की गईं और 252 लोग गिरफ्तार किए गए.
लेकिन इस वजह से करीब 57 हजार लोग रिलीफ कैंपों में रहने को मजबूर हो गए जिनके लिए सरकार ने 361 राहत शिविर लगाए हैं. विपक्ष का डेलिगेशन इनमें से कुछ राहत शिविरों का दौरा कर रहा है. हालांकि सवाल ये है कि जब हालात सामान्य होने की तरफ बढ़ चले हैं तब विपक्ष के डेलिगेशन से क्या नतीजा निकलेगा? क्या इससे हालात और बेहतर करने में मदद मिलेगी या फिर सड़क से लेकर संसद तक सियासत जारी रहेगी.
अब तक के घटनाक्रम से इसमें कोई शक नहीं है कि मणिपुर हिंसा धार्मिक हिंसा नहीं है. सवाल ये है कि अगर ये धार्मिक हिंसा नहीं है और इसके पीछे की वजह जातीय है तो अचानक क्या हुआ कि मणिपुर में हिंसा भड़क उठी. आइए अब आपको बताते हैं वो वजह, जो हिंसा के ताजा दौर के लिए जिम्मेदार है.
दरअसल, राज्य में नगा, कुकी और मैतेई समुदाय की कुल आबादी 90% है. इनमें नगा और कुकी समुदाय को ST यानी अनुसूचित जनजाति का दर्जा है. वहीं, मैतेई समुदाय भी इसकी मांग कर रहा था. ऐसा माना जा रहा है कि हिंसा के ताजा दौर के पीछे हाईकोर्ट का वो आदेश हो सकता है जिसमें उसने मैतेई समुदाय को भी ST दर्जा देने के लिए विचार करने का निर्देश दिया. ये आदेश अप्रैल के महीने में आया था जिसमें हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय को 19 मई तक ST सूची में शामिल करने को कहा था.
राज्य की जातीय स्थिति को देखते हुए ये मामला बहुत संवेदनशील था लेकिन यहां सवाल ये है कि हाईकोर्ट ने इस आदेश को देने से पहले राज्य सरकार या प्रशासन से कोई सलाह-मशविरा किया भी था या नहीं. इस फैसले का मतलब ये था कि अब राज्य के नगा, कुकी और मैतेई तीनों ही समुदाय को ST दर्जा मिल जाता, जिससे किसी को भी इसका अलग से कोई खास फायदा नहीं मिलता.
ऐसा माना जाता है कि इस फैसले के बाद दूसरे समुदाय खासकर कुकी लोग इससे खुश नहीं थे. सरकार अप्रैल के अंत में हाईकोर्ट के समक्ष समीक्षा के लिए गई. लेकिन फैसले के बाद इसे देने वाले जज छुट्टी पर चले गए थे, लिहाजा समीक्षा की प्रक्रिया लंबी खिंच गई. कुकी समुदाय में ये देखते हुए कि हाईकोर्ट के फैसले की समीक्षा नहीं हो सकेगी, भारी नाराजगी फैल गई है और उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया.
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