Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को मैरिटल रेप के मुद्दे से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगा. SC को तय करना है कि क्या किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी, जो नाबालिग नहीं है,  के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने पर कानूनी संरक्षण मिलना जारी रहना चाहिए या नहीं. याचिकाओं में मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की गुहार लगाई गई है. केंद्र के विरोध के चलते प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने होने वाली सुनवाई अहम हो गई है. बेंच में जस्टिस जे बी पारदीवाला एवं जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं. मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई से जुड़े सभी अपडेट्स के लिए बने रहें Zee News Hindi के साथ.


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मैरिटल रेप: केंद्र सरकार ने दी कैसी दलील


केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि अगर किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध को 'बलात्कार' के रूप में दंडनीय बना दिया जाता है, तो इससे वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है. केंद्र का कहना था कि ऐसा करने से विवाह नाम की संस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. 


सुनवाई टालने को राजी नहीं हुई सीजेआई


बुधवार को कुछ वादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने दिन की कार्यवाही के आखिर में बेंच के सामने इन याचिकाओं का जिक्र किया, क्योंकि दिन में इनका जिक्र नहीं किया जा सका था. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'वैवाहिक बलात्कार का मामला सुनवाई के लिए सबसे पहले लिया जाएगा, हम कल से सुनवाई शुरू करेंगे.' केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जब स्थगन की मांग की, तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'यह पूर्व निर्धारित मामला है, उन्हें कल से इसे शुरू करने दें. इस मामले को पहले भी कई बार तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेखित किया गया है.'


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भारत में मैरिटल रेप अपराध नहीं


भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत, जिसे अब निरस्त कर दिया गया है और भारतीय न्याय संहिता (BNS) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी नाबालिग न हो, बलात्कार नहीं है. यहां तक कि नये कानून के तहत भी, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद 2 में कहा गया है कि 'पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी 18 वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्कार नहीं है.'


कानून से जुड़े अहम सवाल


शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी 2023 को आईपीसी के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने की स्थिति में पति को जबरन यौन संबंध बनाने पर अभियोजन से संरक्षण प्रदान करता है. न्यायालय ने 17 मई को, इस मुद्दे पर बीएनएस के प्रावधान को चुनौती देने वाली इसी तरह की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था.


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केंद्र के अनुसार, इस मामले के कानूनी और सामाजिक निहितार्थ हैं. इनमें से एक मामला 11 मई 2022 को इस मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित फैसले के बाद एक महिला द्वारा दायर अपील है. फैसला सुनाते हुए, न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने याचिकाकर्ताओं को उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की थी, क्योंकि इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं, जिनपर शीर्ष अदालत द्वारा निर्णय किये जाने की आवश्यकता है.


कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, वैवाहिक बलात्कार के मुकदमे का सामना कर रहे एक व्यक्ति द्वारा एक और याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि पति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोपों से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के विरुद्ध है. याचिकाओं का एक और समूह आईपीसी प्रावधान के खिलाफ दायर जनहित याचिकाएं हैं, जो आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत अपवाद की संवैधानिकता को चुनौती देती हैं. (भाषा इनपुट्स)