Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मैरिटल रेप के मुद्दे से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की. SC को तय करना है कि क्या किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी, जो नाबालिग नहीं है,  के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने पर कानूनी संरक्षण मिलना जारी रहना चाहिए या नहीं. याचिकाओं में मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की गुहार लगाई गई है. केंद्र के विरोध के चलते प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने होने वाली सुनवाई अहम हो गई है. बेंच में जस्टिस जे बी पारदीवाला एवं जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं. मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई से जुड़े सभी अपडेट्स के लिए बने रहें Zee News Hindi के साथ.


Marital Rape : Supreme Court Hearing Highlights


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सीजेआई चंद्रचूड़: 2013 के संशोधन के बाद बलात्कार के अपराध में केवल लिंग-योनि संबंधी कृत्य शामिल हैं. जब अपवाद 2 में यौन संभोग या यौन कृत्यों के लिए अपवाद का प्रावधान है - तो यह केवल लिंग-योनि संबंधी कृत्य नहीं है. यदि पति महिला की योनि में कोई वस्तु डालता है, यदि कोई अन्य व्यक्ति ऐसा करता है तो यह बलात्कार होगा, लेकिन केवल इसलिए कि वह पति है, यह बलात्कार नहीं होगा.


- करुणा नंदी (सीनियर एडवोकेट, याचिकाकर्ताओं की ओर से): मैं लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती हूं, अगर कोई पुरुष मेरी सहमति के बिना मेरे साथ सेक्स करता है तो यह बलात्कार होगा, अगर मैं जागने के बाद कहूं कि चलो, छोड़ो... आगे बढ़ो - तो यह फिर भी बलात्कार होगा. अगर मैं शादीशुदा हूं और वह (पति) बलात्कार जैसा जघन्य हिंसक कृत्य करता है, तो यह बलात्कार नहीं है. यह बलात्कार का वह प्रकार है जो मुझे आत्महत्या या बहुत गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए प्रेरित करता है, तो उन तत्वों के लिए भी 498A का आरोप लगाया जा सकता है.. चोट पहुंचाने के मामलों में धारा 323 शामिल हो सकती है...'


- लंच के बाद सुनवाई फिर शुरू हुई. सीजेआई ने कहा, 'संसद का इरादा था कि 18 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, अगर हम अपवाद को खत्म कर देते हैं, तो क्या हम एक नया अपराध बना देंगे?'


- नंदी ने कहा कि ' अगर पति को कवर नहीं किया गया है तो भी मैं ठीक हूं क्योंकि पति पर सीधे आरोप लगाया जा सकता है.' इसपर सीजेआई ने कहा कि 'लेकिन बलात्कार के लिए नहीं.. यह केवल उकसाने के लिए होगा... ठीक है, हम दोपहर 2 बजे के बाद सुनवाई करेंगे. कृपया चुनौती के आधार तैयार करें और हमें तब सुनवाई करने दें.'


- सीजेआई ने कहा, 'मिस नंदी, आपकी बात सही हो सकती है... वह कवर हो सकता है. लेकिन अपवाद बहुत व्यापक है क्योंकि पति और पत्नी के बीच यौन क्रिया भी बिंदु d में शामिल है. इसलिए आप जो कह रहे हैं वह यह है कि यदि खंड d एक यौन क्रिया है और यदि ऐसा कार्य तीसरे पक्ष के साथ है तो अपवाद 2 पति की रक्षा करेगा और इसीलिए अपवाद 2 अतिव्यापन के पहलू पर संवैधानिक रूप से अमान्य है.'


- जस्टिस पारदीवाला: यौन क्रिया शब्द को सही तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है? आप अंतिम भाग "कोई अन्य व्यक्ति" की व्याख्या कैसे करेंगे. पहले भाग में अपवाद ध्यान रखता है लेकिन "कोई अन्य व्यक्ति" के बारे में क्या? इस पर CJI ने कहा कि 'इसमें कहा गया है या उसे किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया है.' जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि 'मान लीजिए कि पति पत्नी को (d) के अनुसार कार्य करने के लिए मजबूर करता है तो क्या वह अपवाद 2 के अंतर्गत आएगा? नहीं, वह नहीं आएगा.' इस पर नंदी ने कहा कि 'वह आएगा' तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'नहीं, यह गलत व्याख्या है.'


- सीजेआई ने कहा, 'अगर कोई पुरुष किसी दूसरे व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है तो यह अपवाद 2 के अंतर्गत आएगा. यह निश्चित रूप से अपराध माना जाएगा. "पुरुष द्वारा" का अर्थ है वह खुद, क्योंकि पति ऐसा करता है. अगर पति ऐसा करने के लिए मजबूर करता है.. तो वह व्यक्ति बलात्कार का दोषी होगा.' इस पर नंदी ने कहा कि 'यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उकसाने का कार्य यौन है या नहीं.'


- नंदी ने कहा कि 'अगर पति द्वारा गुदा मैथुन किया जाता है तो अपवाद 2 के तहत इसे छूट दी गई है. बिना सहमति के गुदा मैथुन. बेशक, नवतेज के बाद सहमति से गुदा मैथुन अपराध नहीं है.' सीजेआई ने कहा, 'अपवाद 2 कहता है कि 18 साल से अधिक उम्र की पत्नी के साथ गुदा या योनि संभोग बलात्कार नहीं है और इसी बात को आप चुनौती दे रहे हैं.' नंदी ने जवाब दिया, 'हां. यहां तक ​​कि वस्तुओं को अंदर डालना भी...' 


सीजेआई: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार आईपीसी में 15 साल की उम्र का मतलब 18 साल था. तो हमें यह तय करना होगा कि 18 साल से ज़्यादा की पत्नी के साथ कोई भी यौन संबंध बलात्कार नहीं है... यही आधार है...


- याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी ने कहा, 'हां का मतलब है कि हां का अधिकार क्षेत्र है. सहमति का मतलब है कि जब महिला स्पष्ट रूप से सहमति देती है.' सीजेआई ने कहा कि 'जब पत्नी 18 साल से कम की होती है तो यह बलात्कार है और जब यह 18 साल से ज़्यादा की होती है तो यह बलात्कार नहीं है. तो यही बीएनएस और आईपीसी में अंतर है...'


- सुप्रीम कोर्ट में 'मैरिटल रेप' पर सुनवाई शुरू हो गई है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह एक संवैधानिक प्रश्न है. हमारे सामने दो फैसले हैं और हमें उन पर निर्णय लेना है. सीजेआई ने कहा कि मुख्य मुद्दा संवैधानिक वैधता का है.


मैरिटल रेप: केंद्र सरकार ने दी कैसी दलील


केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि अगर किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध को 'बलात्कार' के रूप में दंडनीय बना दिया जाता है, तो इससे वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है. केंद्र का कहना था कि ऐसा करने से विवाह नाम की संस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. 


सुनवाई टालने को राजी नहीं हुई सीजेआई


बुधवार को कुछ वादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने दिन की कार्यवाही के आखिर में बेंच के सामने इन याचिकाओं का जिक्र किया, क्योंकि दिन में इनका जिक्र नहीं किया जा सका था. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'वैवाहिक बलात्कार का मामला सुनवाई के लिए सबसे पहले लिया जाएगा, हम कल से सुनवाई शुरू करेंगे.' केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जब स्थगन की मांग की, तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'यह पूर्व निर्धारित मामला है, उन्हें कल से इसे शुरू करने दें. इस मामले को पहले भी कई बार तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेखित किया गया है.'


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भारत में मैरिटल रेप अपराध नहीं


भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत, जिसे अब निरस्त कर दिया गया है और भारतीय न्याय संहिता (BNS) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी नाबालिग न हो, बलात्कार नहीं है. यहां तक कि नये कानून के तहत भी, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद 2 में कहा गया है कि 'पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी 18 वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्कार नहीं है.'


कानून से जुड़े अहम सवाल


शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी 2023 को आईपीसी के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने की स्थिति में पति को जबरन यौन संबंध बनाने पर अभियोजन से संरक्षण प्रदान करता है. न्यायालय ने 17 मई को, इस मुद्दे पर बीएनएस के प्रावधान को चुनौती देने वाली इसी तरह की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था.


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केंद्र के अनुसार, इस मामले के कानूनी और सामाजिक निहितार्थ हैं. इनमें से एक मामला 11 मई 2022 को इस मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित फैसले के बाद एक महिला द्वारा दायर अपील है. फैसला सुनाते हुए, न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने याचिकाकर्ताओं को उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की थी, क्योंकि इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं, जिनपर शीर्ष अदालत द्वारा निर्णय किये जाने की आवश्यकता है.


कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, वैवाहिक बलात्कार के मुकदमे का सामना कर रहे एक व्यक्ति द्वारा एक और याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि पति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोपों से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के विरुद्ध है. याचिकाओं का एक और समूह आईपीसी प्रावधान के खिलाफ दायर जनहित याचिकाएं हैं, जो आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत अपवाद की संवैधानिकता को चुनौती देती हैं. (भाषा इनपुट्स)