लखनऊ:  उत्तर प्रदेश के चुनाव (UP Election 2022) में मथुरा (Mathura) अब नई अयोध्या बन गयी है. दरअसल सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने मथुरा की रैली में ये साफ कर दिया है कि जैसे अयोध्या में भगवान श्री राम का और काशी में भगवान विश्वनाथ का भव्य मन्दिर बन रहा है, वैसा ही मथुरा-वृन्दावन में भी होगा. उनके इस बयान से साफ हो गया कि चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में बीजेपी हिन्दुत्व को अपना सबसे बड़ा हथियार बना रही है.


कैसे छूटेगी मथुरा: योगी


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CM योगी ने मथुरा की वर्चुअल रैली से पहले ट्वीट किया, जिसके बाद काशी और मथुरा के नाम की चर्चा होती रही. ट्वीट में उन्होंने लिखा, 'अयोध्या में प्रभु श्री राम का मंदिर (Ram Temple) और काशी में भगवान विश्वनाथ का भव्य धाम बन रहा है. फिर मथुरा-वृन्दावन कैसे छूट जाएगा.'


दरअसल बृज और आसपास के रहने वालों के बीच कहावत है कि तीनों लोक से मथुरा न्यारी. यानी जहां भगवान कृष्ण का जन्म यानी अवतार हुआ. योगेश्वर खुद ग्वाल बालों के साथ खेले और आगे चलकर राजा बने. तो CM योगी का यहां मथुरा से मतलब, कृष्ण जन्मभूमि विवाद से था.


जहां सन 1670 में मुगल शासक औरंगजेब ने एक प्राचीन मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी थी, जिसे आज शाही ईदगाह कहा जाता है. यानी मथुरा का मामला, अयोध्या जैसा ही है और इसीलिए बीजेपी (BJP) ने इसे चुनाव में मुद्दा बनाकर उठा रही है.


गेम चेंजर बन सकता है मामला


काशी और मथुरा का मुद्दा ऐसा विषय है, जो UP के चुनावों की तस्वीर पूरी तरह बदल सकता है. क्योंकि इससे ये चुनाव जाति पर ना रह कर धर्म के इर्द गिर्द सीमित हो जाएगा और अगर चुनाव धर्म के नाम पर हुए तो इससे बीजेपी को जबरदस्त फायदा मिलेगा. अयोध्या के बाद काशी और मथुरा, यूपी में दो ऐसे स्थान हैं, जहां मुगलों द्वारा प्राचीन मन्दिरों को तोड़ कर दो बड़ी मस्जिदों का निर्माण किया गया.


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ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि जनवरी 1670 में रमजान के महीने में मुगल शासक औरंगजेब ने मथुरा के प्रसिद्ध केशव राय मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था. इसे ओरछा के राजा बीर सिंह बुंदेला ने उस जमाने में 33 लाख रुपये में बनवाया था. 


कटरा केशवदेव के इस इलाके में ही भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है, जो लगभग 13 एकड़ जमीन में फैली है और इसका मालिकाना हक श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के पास है. लेकिन इसी जमीन के करीब ढाई एकड़ हिस्से में औरंगजेब की बनवाई गई शाही ईदगाह भी मौजूद है. जिसे हटाने की लगातार मांग लंबे समय से होती आई है. हिंदू पक्ष की दलील है कि ये ईदगाह पवित्र गर्भगृह के ऊपर बनी है.


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इसी तरह का विवाद काशी में ज्ञान वापी मस्जिद को लेकर है. अयोध्या के बाद, काशी विश्वनाथ को हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर देखा जाता है. अयोध्या भगवान राम की नगरी है तो काशी यानी वाराणसी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है. लेकिन अयोध्या की तरह यहां भी मंदिर और मस्जिद को लेकर विवाद है. हिंदु पक्ष का दावा है कि जहां भगवान शिव को समर्पित असली ज्योतिर्लिंग मौजूद है. वहां पर औरंगजेब द्वारा एक मस्जिद बना दी गई जिसे आज ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है . ज्ञान वापी का अर्थ होता है ज्ञान का तालाब या कुआं.


काशी की कंट्रोवर्सी


भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे. सबसे पहले 11वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था. और इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था. लेकिन इसके बाद भी पूजा पाठ होती रही.


- वर्ष 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं.


- लेकिन वर्ष 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई.


- 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी के बगल में नया मंदिर बनवा दिया जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं.


- लेकिन तब से ही यह विवाद आज तक जारी है और यह मामला कोर्ट में भी चल रहा है. 2018 में हिंदू पक्ष ने अदालत से मांग की थी कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण कराया जाए. ताकि ये विवाद को हल हो सके.


यानी काशी और मथुरा उत्तर प्रदेश की वो नब्ज है, जो राज्य के लगभग 80 प्रतिशत हिंदुओं को चुनाव में एकजुट कर सकती है. बीजेपी ऐसा ही करने की कोशिश कर रही है. जबकि समाजवादी पार्टी चाहती है कि ये चुनाव धर्म पर नहीं, बल्कि जातियों के आधार हो. क्योंकि ऐसा होने से ही उन्हें फायदा होगा. उत्तर प्रदेश की आबादी में इस समय लगभग 80 प्रतिशत हिन्दू, 19 प्रतिशत मुसलमान और बाकी अन्य धर्म के लोग हैं.



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