Delhi LG VK Saxena Defamation Case: 23 साल पहले मेधा पाटकर के खिलाफ दायर मानहानि मामले में कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मेधा पाटकर को पांच महीने जेल की सजा सुनाई है. गौर करने वाली बात यह है कि यह मामला दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना से जुड़ा हुआ है. वीके सक्सेना ने मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि का मामला तब दर्ज कराया था जब वह गुजरात में एक एनजीओ के प्रमुख थे. मेधा पाटकर पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. आइये आपको बताते हैं कैसे मेधा पाटकर और वीके सक्सेना के बीच यह कानूनी लड़ाई शुरू हुई..


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मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना पर लगाए थे गंभीर आरोप


मेधा पाटकर और वीके सक्सेना के बीच यह कानूनी जंग साल 2000 में शुरू हुई थी. उस वक्त मेधा पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के विरुद्ध एक वाद दायर किया था. मेधा पाटकर ने प्रेस नोट जारी कर वीके सक्सेना पर गंभीर आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि वीके सक्सेना देशभक्त नहीं है. सक्सेना पर पाटकर ने भ्रष्टाचार में लिप्त होने का भी आरोप लगाया था.


वीके सक्सेना ने दर्ज कराया केस


वीके सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर उनके (सक्सेना) खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस में मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए भी पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए थे. सक्सेना तब अहमदाबाद के एक एनजीओ ‘काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ का नेतृत्व कर रहे थे. अदालत ने पाटकर को यह सजा अपने समक्ष मौजूद सबूतों और इस तथ्य पर विचार करने के बाद सुनायी कि मामला दो दशक से अधिक समय तक चला.


पाटकर के अनुरोध पर जज ने क्या कहा?


हालांकि, अदालत ने पाटकर को आदेश के खिलाफ अपील दायर करने का मौका देने को लेकर सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया. ‘प्रोबेशन’ पर रिहा करने के पाटकर के अनुरोध को खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा, 'तथ्यों... नुकसान, उम्र और बीमारी (आरोपी की) को देखते हुए, मैं अधिक सजा सुनाने के पक्ष में नहीं हूं.' इस अपराध के लिए अधिकतम दो वर्ष तक की साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.


7 जून को सुरक्षित रख लिया गया था फैसला


गत 24 मई को अदालत ने कहा था कि सक्सेना को 'देशभक्त नहीं, बल्कि कायर कहने वाला और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाने संबंधी पाटकर का बयान न केवल अपने आप में मानहानि के समान है, बल्कि इसे नकारात्मक धारणा को उकसाने के लिए गढ़ा गया था. अदालत ने कहा था कि साथ ही 'यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहा है, उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला है.' सजा पर अदालत में बहस 30 मई को पूरी हो गई थी, जिसके बाद फैसला 7 जून को सुरक्षित रख लिया गया था.


यहां देखें केस की टाइमलाइन


-24 नवंबर, 2000: सक्सेना ने आरोप लगाया कि पाटकर ने एक टेलीविजन चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की और एक मानहानिकारक प्रेस बयान जारी किया.


-जनवरी 2010: पाटकर ने अपने खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले को गुजरात से बाहर स्थानांतरित करने का अनुरोध किया.


-6 फरवरी, 2010: उच्चतम न्यायालय ने पाटकर और सक्सेना द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दायर किए गए मानहानि मामलों की सुनवाई गुजरात के अहमदाबाद से दिल्ली स्थानांतरित की.


-1 नवंबर, 2011: दिल्ली की अदालत ने पाटकर के खिलाफ आपराधिक मानहानि के आरोप तय किए.


-25 अप्रैल, 2024: अदालत ने सक्सेना की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा.


-24 मई, 2024: दिल्ली की अदालत ने आपराधिक मानहानि मामले में पाटकर को दोषी ठहराया.


-30 मई: अदालत ने पाटकर को सजा पर दलीलें सुनी.


-7 जून: अदालत ने सजा पर फैसला सुरक्षित रखा.


-1 जुलाई: अदालत ने पाटकर को पांच महीने की साधारण कैद की सजा सुनायी और 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. हालांकि, अदालत ने पाटकर को अपील अदालत में जाने के लिए सजा एक महीने के लिये निलंबित की.


(एजेंसी इनपुट के साथ)