श्रीनगर: जम्मू - कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अलगाववादियों से कहा कि वह केंद्र के वार्ता प्रस्ताव के ‘सुनहरे अवसर’ को हाथ से नहीं जाने दें. उन्होंने कहा कि सभी का ऐसा मानना है कि राज्य के हालात एक राजनीतिक मुद्दा है और इसे सेना की मदद से नहीं सुलझाया जा सकता. महबूबा ने कहा कि रमजान के दौरान संघर्षविराम के बाद केंद्र का वार्ता का जो प्रस्ताव है वह राजनीतिक प्रक्रिया के प्रारंभ होने का संकेत देता है. उन्होंने कहा , ‘मुझे यह महसूस होता है कि राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए कहीं न कहीं प्रयास हो रहे हैं. राजनीतिक प्रक्रिया को कितना आगे ले जाया जा सकता है , यह इस बात पर निर्भर करेगा कि यहां जमीनी स्थिति कितनी अच्छी रहती है. ’ 


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यहां एक पुल के उद्घाटन के बाद मुख्यमंत्री ने कहा, ‘अनिश्चितता को खत्म करने और जम्मू - कश्मीर में दीर्घकालिक शांति कायम करने के लिए अलगाववादियों समेत सभी को आगे आना चाहिए और जम्मू - कश्मीर मुद्दे को सुलझाने तथा राज्य की अन्य समस्याओं का समाधान निकालने के लिए गृह मंत्री के वार्ता के प्रस्ताव का जवाब देना चाहिए. ’


राज्य के सुरक्षा हालात तथा रमजान के दौरान सुरक्षा संबंधी अभियानों के निलंबन का जायजा लेने पिछले हफ्ते दो दिवसीय दौरे पर यहां पहुंचे गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि केंद्र जम्मू - कश्मीर और पाकिस्तान में ‘सही सोच रखने वाले’ सभी लोगों से बात करने को तैयार है लेकिन पड़ोसी देश को अपनी जमीन से होने वाली आतंकी गतिविधियां रोकनी होंगी. 


'यह एक सुनहरा अवसर है'
महबूबा ने कहा , ‘यह एक सुनहरा अवसर है ... प्राय : ऐसा नहीं होता कि एक बहुत ताकतवर प्रधानमंत्री हो (जिसकी ओर से ऐसा प्रस्ताव मिले) . यह 18 वर्ष पहले की बात है जब अभियानों पर अटल बिहारी वाजपेयी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) के समय रोक लगाई गई थी. उस वक्त वार्ता उप प्रधानमंत्री (एलके आडवाणी) के स्तर पर की गई थी और ऐसा लगता है कि वही प्रक्रिया दोहराई गई है.’ 


उन्होंने कहा,‘यह राज्य के सभी समूहों का कर्तव्य है कि वह इस बारे में सोचें कि राज्य में खूनखराबा कैसे खत्म किया जा सकता है और अमन कैसे लाया जा सकता है. यहां बीते 30 वर्ष में हर क्षेत्र में विनाश ही हुआ है , हमारी शिक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा , हमारा विकास प्रभावित हुआ. ’


(इनपुट - भाषा)