Boys affected by mental abuse and Gender Discrimination: अब तक हमने महिलाओं पर हो रहे शोषण और लिंगभेद पर बहुत पढ़ा है, बहुत सुना है, बहुत लिखा है. मगर क्या कभी हमने पुरुषों के शोषण के विषय में सोचा? शायद जवाब न में आए. हालांकि पुरुषों के साथ रेप को लेकर जो खामोशी है वो ज्यादा गहरी है. भारत में रेप को लेकर जो बहस है उसमें ऐसी धारणा है कि पुरुषों के साथ रेप नहीं किया जा सकता. लेकिन सच तो यह है कि पुरुषों के साथ भी हर तरह का मानसिक और शारीरिक शोषण किया जाता है.


पुरुषों पर भी होता है अत्याचार


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साल 2007 में मिनिस्ट्री ऑफ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट (Ministry of Women & Child Development) ने एक नेशनल स्टडी करवाई थी. इसमें ऐसा पाया गया था कि लड़कों या आदमियों के साथ हो रहे मेंटल (Mental), फिजिक (Physique) और सेक्सुअल एब्यूज (Sexual Abuse) को काफी बड़े पैमाने में नजरंदाज किया जाता है. पूरे विश्व में हर 6 में से 1 लड़के सेक्सुअल असॉल्ट के शिकार होते हैं और भारत समेत विश्व के कई सारे देशों में लड़कों के ऊपर हो रहे शोषण और उत्पीड़न के मामलों को ज्यादातर गंभीरता से नहीं लिया जाता है. कई मामलों में Under Reporting की वजह से ऐसे मामले लोगों के सामने नहीं आ पाते.


लड़कियों की तुलना में लड़के ज्यादा प्रताड़ित


रिसर्च द्वारा निकले हुए डाटा से ये सामने आया कि भारत में 100 में से 52.94% लड़के सेक्सुअल एब्यूज के शिकार होते हैं. जबकि लड़कियों की संख्या 47.06% है. इसी परेशानी से निकलने के लिए भारत सरकार ने 2012 में पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) जारी किया था. पॉक्सो एक्ट एक जेंडर न्यूट्रल लॉ है, जिसको काफी सारे देशों ने एडॉप्ट किया है.


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अबोध बच्चे हो रहे शिकार


भारत में बच्चों, खासकर जो लड़के होते हैं, उन्हें यौन उत्पीड़न का बहुत सामना करना पड़ता है. इसमें सबसे परेशानी की बात ये है कि वो बच्चे इतने अबोध होते हैं कि उन्हें पता भी नहीं चल पाता कि उनके साथ हो क्या रहा है. ऐसे में उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर कई तरीके के दुष्प्रभाव पड़ते हैं जो कि उनके उम्र के बच्चों के लिए सही नहीं होते. आज के समय में भी हमारी सोसायटी पुरुषों के साथ हो रहे उत्पीड़न को गंभीरता से नहीं लेती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि पुरुष के साथ ऐसा हो ही नहीं सकता. इस सोच से अब यहां के लोगों को ऊपर उठने की जरूरत है.


ये सोच को बदलने का दौर है!


स्टडी कहती है कि अब वो दौर आ चुका है जिसमे लोग ये समझें कि शारीरिक या मानसिक हिंसा का शिकार होने के लिए स्त्री या पुरुष होना जरूरी नहीं है. ये हिंसा किसी के साथ और किसी भी उम्र के व्यक्ति के साथ कहीं भी हो सकती है. अब तक मानसिक धारणा यही रही है कि शोषण सिर्फ महिलाओं के साथ ही होता है और ऐसा करने वाले पुरुष होते हैं. लेकिन अब वो वक्त आ गया है जब हमें ये मान लेना चाहिए कि लिंगवाद की शिकार सिर्फ महिलाएं नहीं हैं. पुरुषों को भी इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है.


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