Reason behind Kiren Rijiju Removed as Law Minister: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल (PM Narendra Modi Cabinet) में बड़ा फेरबदल किया है और उन्होंने गुरुवार को किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) को कानून मंत्री के पद से हटा दिया. किरेन रिजिजू की जगह अर्जुन राम मेघवाल (Arjun Ram Meghwal) को कानून एवं न्याय मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसके साथ ही किरेन रिजिजू को अब भू विज्ञान मंत्रालय सौंपा गया है. पीएम मोदी की सलाह पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने कैबिनेट में इस बदलाव को मंजूरी दे दी है.


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किरेन रिजिजू से क्यों छिन गया कानून मंत्रालय


सूत्रों के अनुसार, किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) को तीन वजहों से कानून मंत्रालय गंवाना पड़ा है. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी उनसे नाराज चल रहे थे. तो चलिए आपको बताते हैं कि वो कौन-कौन सी वजहें है, जिस कारण किरेन रिजिजू को कानून मंत्री के पद से हटा दिया गया है. कई मीडिया रिपोर्ट्स में इसको लेकर दावा किया जा रहा है.


1. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने में देरी


यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर केंद्र सरकार गंभीर है, लेकिन इसे लागू करने में लगातार देरी हो रही है. इसे लागू करने की जिम्मेदारी कानून मंत्रालय की है, लेकिन मंत्रालय अब तक इसे लागू नहीं करवा पाया है. किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) को पद से हटाए जाने की ये बड़ी वजह हो सकती है.


2. न्यायपालिका और रिजिजू के बीच टकराव


हाल के कुछ महीनों में किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) लगातार सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी कर रहे थे और जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली की खुलकर आलोचना कर रहे थे. न्यायपालिका और किरेन रिजिजू के बीच टकराव इतना बढ़ गया था कि उन्होंने कह दिया था कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पारदर्शी नहीं है और इसे संविधान से अलग भी करार दिया. इसके बाद यह बात उठने लगी थी कि केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति में अपनी भूमिका चाहती है.


3. राजस्थान में होने वाला विधानसभा चुनाव


मोदी कैबिनेट में बदलाव को राजस्थान में होने वाले  विधानसभा चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है, क्योंकि किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) को हटाकर राजस्थान के बड़े दलित नेता अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है, जो पहले भी कई मंत्रालय संभाल चुके हैं. बता दें कि राजस्था में दलितों की आबादी करीब 17 फीसदी है और इस कदम को अर्जुन राम मेघवाल के जरिए दलित वोट को साधने की कोशिश माना जा रहा है.