नई दिल्ली: केंद्र की मौजूदा बीजेपी सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में है. सरकार को शुरुआती वर्षों में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट का फायदा मिला, लेकिन अब पेट्रोल-डीजल की कीमत ही उसके गले की फांस बनती हुई दिख रही हैं. सरकार अपनी सफाई में अंतराराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आए उछाल और रुपये की गिरावट का हवाला दे रही है. ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का एक पुराना बयान अनायास ध्यान में आ जाता है. 2014 में एक पत्रकार वार्ता के दौरान चौतरफा आलोचनाओं से घिरे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि इतिहास मेरे प्रति दयायु होगा. सवाल यही है कि क्या पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में बढ़ोतरी को लेकर हम उनके साथ अधिक क्रूर थे.


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पहला कार्यकाल 
पिछले 10 वर्षों के दौरान कच्चे तेल के दाम और भारतीय बाजार में पेट्रोल की कीमतों पर नजर डालें, तो लगता है कि मनमोहन सिंह ने हालात को बेहतर ढंग से संभाला था. पहले बात करते हैं उनके पहले कार्यकाल की. वर्ष 2004 से 2009 के दौरान पेट्रोल की कीमत दिल्ली में लगभग स्थिर रही. वित्तीय फर्म फ्रीफिनकल के मुताबिक ये कीमत अलग-अलग वर्षों में लगभग 40 से 47 रुपये प्रति लीटर के बीच थी. मुंबई में ये आंकड़ा थोड़ा ज्यादा 45 से 50 रुपये प्रति लीटर के बीच रहा. शोध संस्था माइक्रोट्रेंड्स के अनुसार इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 50 डॉलर प्रति बैरल से लेकर 160 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं. कच्चे तेल की कीमतों में हुई तूफानी बढ़ोतरी के बावजूद मनमोहन सिंह ने घरेलू बाजार में स्थिरता बनाए रखने में कामयाबी हासिल की.


दूसरा कार्यकाल



मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल वैश्विक आर्थिक मंदी के साथ शुरू हुआ. इस समय दुनिया भर में मांग काफी कम थी और कमोडिटी कीमतों में भारी गिरावट आई थी. यही वजह है कि जून 2008 में जहां कच्चे तेल की कीमत 161 डॉलर प्रति बैरल थी, वहीं जनवरी 2009 में ये घटकर 49.83 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गई. मनमोहन सरकार के लिए ये बहुत राहत की बात थी, हालांकि मंदी की वजह से अर्थव्यवस्था दूसरी चुनौतियों से जूझ रही थी. मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान दिल्ली में पेट्रोल की कीमत औसतन 40 से 73 रुपये के बीच रही. मुंबई में ये आंकड़ा 44 से 80 रुपये के बीच रहा. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत औसतन 50 से 127 डॉलर प्रति बैरल के दरमियान रही.


एनडीए सरकार 
यदि इसकी तुलना मोदी सरकार से की जाए तो सरकार के शुरुआती वर्ष काफी खुशकिस्मती वाले थे. एनडीए के सत्ता में आने के समय कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में 112 डॉलर प्रति बैरल था, हालांकि छह महीने में ही ये आंकड़ा घटकर 50 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया. ये कीमत पिछले एक दशक में सबसे कम थी. इसके बाद भी कीमतों में गिरावट का सिलसिला जारी रहा और जनवरी 2016 में कीमतें 30 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं. हालांकि इसके बाद कीमतों में एक बार फिर तेजी का सिलसिल शुरू हुआ और जनवरी 2017 में कीमतें करीब 54 डॉलर प्रति बैरल और जनवरी 2018 में 65 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंची. इस समय कच्चे तेल की कीमत करीब 77 डॉलर प्रति बैरल है.


आम लोगों पर असर 



कच्चे तेल की कीमत में गिरावट का फायदा सरकार ने आम लोगों को नहीं दिया, बल्कि टैक्स बढ़ाकर तेल कंपनियों का घाटा भरने और अपना राजस्व बढ़ाने को प्राथमिकता दी. एनडीए सरकार के दौरान दिल्ली में पेट्रोल की कीमत औसतन 63 से 80 रुपये प्रति लीटर के बीच रही है. जबकि मुंबई में ये आंकड़ा 77 से 88 रुपये प्रति लीटर के बीच रहा. हालांकि अब कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के साथ ही सरकार पर दबाव बढ़ने लगा है कि एक बार फिर पेट्रोलियम सब्सिडी के जरिए लोगों को राहत दे.


यदि दोनों सरकारों की तुलना की जाए तो मनमोहन सिंह ने लोगों को अधिक राहत दी. मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में अधिकतम 160 डॉलर प्रति बैरल कीमत का सामना किया, जबकि इस दौरान घरेलू बाजार (दिल्ली) में अधिकतम कीमत 73 रुपये प्रति लीटर रही. दूसरी ओर इस समय कच्चे तेल की कीमत 77 डॉलर प्रति बैरल है और पेट्रोल की कीमत 80 रुपये प्रति लीटर के आंकड़े को पार कर गई है. इस तुलना में रुपये की कीमतों में गिरावट का समायोजन नहीं किया गया है. हालांकि ये समायोजन करने के बाद भी मनमोहन सरकार ने ही लोगों को अधिक राहत पहुंचाने का काम किया है.