नई दिल्ली: सासंदों और विधायकों को बतौर वकील कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि सांसदों और विधायकों के वकालत करने से नहीं रोक सकते, क्योंकि वह बार काउंसिल ऑफ इंडिया में रेगुलर एंप्लॉय नहीं हैं. दरअसल, बीजेपी प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सासंदों और विधायकों को बतौर वक़ील कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकने की गुहार लगाई थी. याचिका के मुताबिक बार काउंसिल के विधान और नियमावली के मुताबिक कहीं से भी वेतन पाने वाला कोई भी व्यक्ति वकालत नहीं कर सकता, क्योंकि वकालत को पूर्णकालिक और एकनिष्ठ पेशा माना गया है. 


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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का पक्ष पूछा था कि जिसका जवाब देते हुए एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि इस तरह का बैन नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि विधायकी या सांसदी फुल टाइम जॉब नहीं है. साथ ही ये भारत सरकार के कर्मचारी भी नहीं होते हैं.इससे पहले अपनीबात पर जोर देने के लिए अश्विनी उपाध्याय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 49 का हवाला भी दिया. इसमें कहा गया है कि कोई भी पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी, चाहे वह निगम, निजी फर्म या सरकार से जुड़ा हुआ हो, कानून की अदालत में वतौर वकील प्रैक्टिस नहीं कर सकता है. 



दरअसल, याचिका में ये कहा गया था कि विधायिका को कार्यपालिका और न्यायपालिका के सदस्यों से बेहतर वेतन भत्ते और सेवानिवृत लाभ मिलते हैं. विधायिका से अपेक्षा होती है के वे अपने निजी हितों से ऊपर उठकर जनता और अपने निवार्चन क्षेत्र के लोगों की पूर्णकालिक सेवा करेंगे.याचिका में ये भी मांग थी कि कानून के पेशे की उत्कृष्टता बनाए रखने के लिए एडवोकेट एक्ट और बीसीआइ के नियमों को पूरी तरह लागू किया जाना चाहिए. बहुत से विधायक और सांसदों (कानून निमार्ता) के पास कारपोरेट रिटेनरशिप है और वे कानून का उल्लंघन करने वाले अपने मुवक्किलों का अदालत में बचाव करते हैं. ये एक तरह से हितों का टकराव है. ये सिर्फ अनुचित और अनैतिक ही नहीं है बल्कि बीसीआइ के नियम 49 का उल्लंघन भी है.