MP News: मध्य प्रदेश के झाबुआ जिला अपने माथे पर ऐसा कलंक लेकर घूम रहा है, जिससे पूरी मानवजाति शर्मसार है. ये ऐसा कलंक है, जो आज के 5जी के युग में भी इस जिले को ब्लैक एंड व्हाइट के दौर में ले जाता है.


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यह जिला जब से अस्तित्व में आया है तब से इसके रीति रिवाज, परंपराएं जिले की ही आदिवासी तबके पर भारी पड़ रही हैं. यही वजह है कि जिले में बदस्तूर पलायन जारी है. इन्हीं रिवाजों में उलझ कर आदिवासी समाज खुद की उन्नति में रुकावट बन रहा है.


वैसे तो दहेज लेना और देना अपराध है. लेकिन झाबुआ जिले में दहेज आज भी खुले रूप से लिया जा रहा है. दहेज न लेने और देने को लेकर प्रशासन स्वयं कैंप लगाकर आदिवासी समाज को जागरुक कर रहा है. लेकिन यह जागरूकता उतनी ही है जितनी इस जिले में परिवार नियोजन को लेकर है.


वर पक्ष देता है दहेज


अब आते हैं दहेज प्रथा पर. दहेज प्रथा यानी वधू पक्ष की तरफ वर पक्ष को दी जाने वाली मोटी रकम. लेकिन झाबुआ जिले में दहेज वर पक्ष देता है. इसलिए यहां वधू मूल्य लिया जा रहा है. इसी वधू मूल्य की उलझन में कई युवाओं का भविष्य दांव पर लग गया है. 


प्रेमिका अपने प्रेमी के साथ नए जीवन की शुरुआत करने के लिए अपने पिता के घर को छोड़कर चली जाती हैं. लेकिन नए जीवन की यही शुरुआत प्रेमी पर भारी पड़ जाती है. वधू पक्ष के परिवार वाले दहेज के लिए वर पक्ष को परेशान करते हैं. समय पर वधू मूल्य नहीं देने पर स्थानीय पंचायत बनाम भांजगड़ियों की ओर से फैसला लिया जाता है. इसमें भारी ब्याज दर भी शामिल है, जो वर पक्ष को चुकाना पड़ता है.


बढ़ी हुई ब्याज दर और भारी वधू मूल्य चुकाने के लिए वर पक्ष वधू को लेकर पलायन पर चला जाता है. अमूमन केस में ब्याज दर चुकाते चुकाते वर और वधू बूढ़े हो जाते हैं.


पार कर देते हैं सारी हदें


जो पक्ष यह वधू मूल्य नहीं चुकाता है उसके साथ मारपीट की जाती है. लड़की को नग्न कर लड़के को उसके कंधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया जाता है. प्यार करने की इतनी बड़ी सजा झाबुआ जिले के अलावा शायद कहीं और देखने को मिले.


झाबुआ जिले में भांजगड़िया उन्हें कहा जाता है, जो किसी झगड़े की मध्यस्थता करता हो. यह भांजगड़िए गांव के चौराहों, शहर के मुख्य मार्गों, पुलिस थानों, कोर्ट कचहरी में आसानी से मिल जाते हैं. यह भांजगड़िए सामान्य रूप से होने वाली शादी में भी वधू मूल्य तय करते हैं. तय मूल्य को वर पक्ष से दिलवाने की जिम्मेदारी भी लेते हैं. पूरे काम के बदले इन भांजगगड़ियों का तय कमीशन होता है. और इस कमीशन की लालच में ही यह आदिवासी वर्ग को दीमक की तरह खा रहे हैं.


जागरुकता नहीं है काफी


आदिवासी समाज में दहेज, शराब और डीजे की प्रथा को बंद करने के लिए अब समाज सेवी संगठन आगे आ रहे हैं. वह प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कैंप का आयोजन कर रहे हैं, जहां पर दहेज शराब और डीजे का इस्तेमाल शादी में नहीं करने की शपथ भी दिलवाई जा रही है. लेकिन यह जागरूकता जिले में काफी नहीं है.


ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जहां लव मैरिज करने या शादी के बाद अपने पति को छोड़कर प्रेमी के साथ भागने को लेकर समाज ऐसी महिला और पुरुष को अलग-अलग तरीके से प्रताड़ित करता है. इनमें मुख्य रूप से महिला को नग्न कर पूरे गांव में घुमाया जाता है. पुरुष वर्ग से मोटी रकम वसूली जाती है. बड़ी बात यह है कि इन मामलों में भी भांजगड़िए अपनी भूमिका निभाते हैं और आदिवासी समाज को प्रथाओं के नाम पर खोखला करते जाते हैं.


(झाबुआ से उनेश चौहान की रिपोर्ट)