Humayun love story: मुगल इतिहास पढ़ने में बहुत से लोगों की दिलचस्पी होती है. इस कड़ी में आज बाद मुगल वंश के दूसरे बादशाह हुमायूं की जिसने अपनी ताकत और जिद के दम पर एक लड़की को जबरन अपनी बेगम बना लिया पर वो कभी उसके दिल में अपनी जगह न बना सका. हुमायूं की ये वो लव स्टोरी है जिसके बारे में आज भी बेहद कम लोग जानते हैं. दरअसल बात सन 1539 की है जब शेरशाह सूरी ने चौसा की लड़ाई में मुगल बादशाह हुमायूं को हरा दिया था. उस दौरान उसका इरादा था कि मुगलों को संभलने का मौका दिए बिना उन्हें जड़ समेत उखाड़ दिया जाए. ऐसे में हुमायूं जान बचाने के लिए भागा भागा फिर रहा था.


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हुमायूं की अनसुनी दास्तां 


एक दिन हुमायूं छिपते-छिपाते अपने सौतेले भाई हिंदाल के घर पहुंचा, जहां उसे हमीदा बानो मिली. 14 साल की खूबसूरत हमीदा, हिंदाल के हरम में रहती थी. 34 साल के हुमायूं को हमीदा इतनी पसंद आ गई. वो अपनी उम्र से आधी से भी छोटी लड़की को किसी भी कीमत पर पाना चाहता था. हुमायूं ने इसके लिए अपनी सौतेली मां दिलदार बेगम और भाई हिंदाल से बात की. दोनों ने ही इस रिश्ते के लिए हुमायूं को इनकार कर दिया. वहीं हमीदा ने भी हुमायूं को न कह दी. हमीदा ने हुमायूं के साथ दरबार में मौजूद सभी लोगों से दो टूक कह दिया कि उसे हुमायूं पसंद नहीं है, वो उसके साथ न जाना चाहती है और न रहना चाहती है.


जिद से जीता पर दिल न जीत सका


दरअसल दिलदार बेगम को लगता था कि क्या पता हुमायूं दोबारा हिंदुस्तान का तख्त हासिल कर पाए या नहीं? हो सकता है कि वो जिंदगी भर भटकता फिरे या अफगानों के हाथ मार दिया जाए. वहीं हिंदाल का संकट ये था कि हुमायूं उस लड़की से शादी करना चाहता था जिसके पिता से उसने तालीम पाई थी. उसने कहा, 'हमीदा मेरी बहन जैसी है. आप बादशाह हैं. आप पद और रुतबे के हिसाब से मेहर की रकम न तो तय कर सकते हैं, न ही सियासी संकट की इस घड़ी में उसे अदा कर सकते हैं. आपकी उम्र का फासला भी बहुत है.'


हुमायूं ने चला आखिरी दांव


इसके बावजूद उसकी मां ने हमीदा से निकाह के लिए पूछा तो उसने हुमायूं को दो टूक इनकार कर दिया. अब वो हारा हुआ ही सही, लेकिन था तो हिंदुस्तान का बादशाह, इसलिए उसे न सुनने की आदत नहीं थी. हुमायूं ने सोचा कि वह एक बार खुद हमीदा से बात करेगा कि वह उसके निकाह के पैगाम को अपनी खुशनसीबी मानते हुए कबूल कर ले.


हमीदा ने किया इनकार


इसके बाद हमीदा ने एक बार फिर से हुमायूं को न कहते हुए कहा,  'अगर कोई औरत हरम के उसूलों के मुताबिक बादशाह सलामत को एक बार न कहती है, तो उन्हें मान लेना चाहिए. मेरा फैसला वही है, ऐसे में मैं दोबारा बादशाह सलामत के सामने जाना अपने उसूलों के खिलाफ समझती हूं. बादशाह को इबारत की लिखावट न समझ आए तो यह उनका मसला है.' 


हुमायूं को हमीदा से इतने सख्त जवाब की उम्मीद न थी. अब उसे हमीदा को हासिल करना मोहब्बत नहीं, बल्कि शान का सवाल था. ऐसे में गुस्साए हुमायूं का रौद्र रूप देखकर बेचारी हमीदा को झुकना पड़ा. इसके बाद जबरदस्ती उनका निकाह तो हो गया, लेकिन दोनों का मन और उनकी रूहों का मिलन कभी नहीं हो पाया.


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