Kashmir Lal Chowk: जिस लाल चौक में दस लोगों को जमा होने की अनुमति नहीं मिलती थी,  वहां आज हजारों की तादाद में शिया समुदाय के लोग जमा हुए, जो 8वें मुहर्रम के मातम जुलूस में शामिल हुए.


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जुलूस में कई जगहों पर फिलिस्तीन के झंडे दिखे और इजराइल अमेरिका विरोधी नारे भी लगे. पिछले साल जम्मू कश्मीर सरकार ने 34 साल की पाबंदी के बाद, 8वें मुहर्रम के मातम जुलूस को श्रीनगर में गुरु बाजार से डलगेट तक अपने पारंपरिक मार्ग से गुजरने की अनुमति दी थी. 


घाटी में आतंकवाद के पनपने के साथ ही 1989 में इस जुलूस पर पाबंदी लगाई गई थी. तब प्रशासन को यह इनपुट मिला था कि शिया समुदाय पर हमला हो सकता है. लेकिन जब घाटी के हालात बेहतर हुए और शांति लौटी तो शिया समुदाय की प्रतिबंध को उठाने की दशकों पुरानी मांग को सरकार ने मान लिया. 


शिया प्रशासन के लोगों ने कहा थैंक्यू


8वीं तारीख के इस मुहर्रम जुलूस को लाल चौक पर निकलते देख शिया समुदाय के लोग सरकार के फैसले से खुश दिखे. सभी शिया लोगों ने एलजी प्रशासन का शुक्रिया अदा किया और कहा कि आज उनके जज़्बातों की कद्र की गई.


मातमी जलूस में शामिल हुए लोगों ने कहा कि वह सरकार का धन्यवाद करते हैं. हर सुविधा का ध्यान रखा गया है. यह पूछने पर कि फिलिस्तीन के झंडे क्यों लहराए जा रहे हैं. इसके जवाब में कहा गया वह वो फिलिस्तीन में होने वाले जुल्म की निंदा करने और उनका समर्थन जताने के लिए झंडे लहराए जा रहे हैं.


सुरक्षा के किए गए पुख्ता इंतजाम


मातमी जुलूस के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए गए थे. कल से ही आईजीपी कश्मीर वीके भ्रदी ने पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता की और मुहर्रम व्यवस्था, चुनौतियों, सुरक्षा उपायों और जुलूस पर चर्चा की. आईजीपी, डिविजनल कमिश्नर कश्मीर और डीसी श्रीनगर के अलावा अन्य अधिकारियों ने स्वयं जुलूस में शिरकत की और हर इंतजाम को देखा. 


आईजीपी कश्मीर ने कहा, 'सुरक्षा  के पूरा इंतजाम किया गया है. थ्री टायर सुरक्षा लगा दी गई है. हर चीज को उपलब्ध कराया गया है. घाटी में शांति लौटी है.'


जम्मू-कश्मीर सरकार ने रविवार को ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में मुहर्रम के 8वें दिन के जुलूसों की औपचारिक रूप से अनुमति पिछले साल दी थी. 


दोपहर तक बढ़ाई गई अवधि


जुलूस सुबह पांच बजे फज्र की नमाज के बाद गुरु बाजार से निकला था और आठ बजे तक दो घंटे के बाद संपन्न होना था. मगर जुलूस शांति से चले और भारी तादाद में लोगों के होने से कटआउट टाइम में ढील दी गई और यह अवधि दोपहर तक बढ़ा दी गई.


8वें मुहर्रम करबला का वो दिन था जब इमाम हुसैन शहीद हुए थे. इस दिन करबला में इमाम हुसैन अल्यासलम की फौज का सारा पानी ख़त्म हो गया था और यजीद जिसकी फौज हजारों में थी उसने इमाम हुसैन की फौज को घेरा हुआ था, जो केवल कुछ सौ की थी. 


इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है मुहर्रम


मुहर्रम, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है. सामान्य रूप से सभी मुसलमानों और विशेष रूप से शिया समुदाय के लिए गहरा धार्मिक महत्व रखता है और व्यवस्था के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए मातमी कार्यक्रमों और जुलूसों को एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित किया गया.


तीन किलोमीटर लंबाई इस जुलूस में एक युवाओं की टुकड़ी ऐसी भी दिखी जिनमें कुछ के हाथों में फिलिस्तीन का झंडे भी दिखा और इस टुकड़ी ने इजराइल अमेरिका के विरोध में नारे भी लगाए. हालांकि कुछ देर के बाद यह लोग जुलूस से गायब हो गए.