Shaurya: खुद शहीद होकर आतंकी कसाब को पकड़वाया, गर्व से भर देगी तुकाराम ओंबले की शहादत की कहानी
Shaurya: स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने एक स्पेशल सीरीज शुरू की है, जिसका नाम `शौर्य` है. गौरव गाथा के इस हिस्से को मुंबई आतंकी हमले (Mumbai Attack) के एक मात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी कसाब (Kasab) को पकड़वाने वाले शहीद तुकाराम ओंबले की शहादत के नाम समर्पित किया गया है.
26/11 Terror attack Tukaram Omble Martyrdom: 1947 में देश के बंटवारे के बाद से अबतक पाकिस्तान ने भारत को कई जख्म दिए हैं. सीधे मुकाबले में भारत के सामने कहीं भी न टिकने वाली पाक फौज ने तीन-तीन युद्धों में मुंह की खाने और अपने देश का एक टुकड़ा बांग्लादेश के रूप में गवाने के बावजूद नापाक हरकतों को अंजाम देना बंद नहीं किया है. आए दिन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) की साजिश के तार उन लोगों से जुड़ते दिखते हैं जो ब्रेन वाश होने के बाद मजहब और कौम की खिदमत के नाम पर भारत से गद्दारी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. ऐसे मामलों में इंटरनेट के सहारे अधिकतर कट्टरपंथियों और चरमपंथियों को भड़काया जाता है. कुछ ऐसी ही कवायद में हनी ट्रैप लगाकर भारतीय सुरक्षा बलों में सेंध लगाने की नापाक कोशिश भी लगातार जारी रहती है. इस बीच आजादी के 75 साल पूरे होने पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने एक खास सीरीज की शुरुआत की है, जिसका नाम है 'शौर्य'. सीरीज का ये हिस्सा हमने मुंबई हमले (Mumbai Terror Attack) के नायकों में से एक तुकाराम ओंबले को समर्पित किया है.
बलिदानियों की गौरव गाथा
भारत-पाक का वो युद्ध जिसके बाद भारत का इतिहास ही बदल गया. साल 1999 में दोनों देश आपस में भिड़ रहे थे. 26 जुलाई के दिन पाकिस्तानी आर्मी को मुंहतोड़ जबाव देकर भारतीय सेना ने अपनी धरती पर तिरंगा लहराया. भारत ने आज इस गौरवशाली दिवस (Vijay Diwas) के 23 साल अभी हाल में पूरे किए हैं. ऐसे में 1947 में देश के आजाद होने से लेकर आजतक भारत के अमर सपूरों की गौरव गाथा को ज़ी न्यूज़ (Zee News) अपनी विशेष पेशकश 'शौर्य' को दर्शकों और पाठकों तक पहुंचा रहा है.
26/11 Mumbai Attack
पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ एक और बड़ा जख्म 26 नवंबर 2008 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को दहलाकर दिया. भारत के खिलाफ इस हमले को 26 नवंबर 2008 को अंजाम दिया गया. करीब 14 साल पहले 26 नवंबर 2008 को हुआ चरमपंथी हमला एक ऐसी बदसूरत और भयावाह पहचान है जिसे मुंबई और यहां के लोग कभी अपने नाम नहीं करना चाहते होंगे. तब लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित आतंकवादियों ने मुंबई के कई इलाकों और प्रतिष्ठित इमारतों पर हमला किया था, जो 4 दिन तक चला. मुंबई के इन हमलों में 160 से अधिक लोग मारे गए थे.
26 नवंबर 2008 की वो रात!
26 नवंबर, 2008 की रात को अचानक मुंबई गोलियों की गड़गड़ाहट से दहल उठी थी. नाव पर सवार होकर पाकिस्तान से मुंबई पहुंचे हमलावरों ने तब 2 फाइव स्टार होटलों, एक अस्पताल, रेलवे स्टेशनों के साथ एक यहूदी सेंटर को निशाना बनाया था. इस काली और मनहूस रात में महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे समेत मुंबई पुलिस के कई आला अधिकारी और तुकाराम ओंबले जैसे कई जवान इसी हमले में जान गंवा बैठे. लियोपोल्ड कैफ़े और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से शुरू हुआ मौत का ये तांडव आखिरकार होटल ताजमहल में जाकर खत्म हुआ. देश के दुश्मनों को नेस्तोनाबूद करने में 60 घंटे से ज्यादा का वक्त लगा.
शहीद तुकाराम ओंबले की शहादत
शहीदों की शहादत के यूं तो कई किस्से हैं, लेकिन मुंबई के आतंकी हमले के एक मात्र जिंदा पकड़े गए आतंकवादी आमिर अजमल कसाब को पकड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले शहीद तुकाराम ओंबले का किस्सा थोड़ा अलग है. मुंबई से करीब 285 किलोमीटर दूर स्थित 250 परिवारों वाला केदाम्बे गांव तुकाराम ओंबले का गांव है. उनके परिवार ने बताया कि उनसे पहले इस गांव से कोई शख्स पुलिस की नौकरी में भर्ती नहीं हुआ था.
संघर्ष में बीता बचपन
ओंबले के परिवार वाले बताते हैं कि बचपन से ही मेहनत और ईमानदारी की रोटी खाने वाले तुकाराम ने परिवार का हाथ बंटाने के लिए आम तक बेंचे थे. उन्होंने कुछ समय गाय-भैंस चराने का काम भी किया. देशभक्ति तो मानो उनमें कूट-कूट कर भरी थी.
कैसे मिली पुलिस की नौकरी
ओंबले के मौसा सेना में ड्राइवर थे. इस वजह से बचपन से ही उनका लगाव सेना और पुलिस के सम्मानित पेशे और सरकारी वर्दी की ओर था. आगे चलकर उनकी नौकरी बिजली विभाग में लगी. फिर 1979 में वो अपनी ये नौकरी छोड़कर महाराष्ट्र पुलिस में भर्ती हो गए.
'माझ्या कक्कानी कसाबला पकड़ला'
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट 26/11 स्टोरीज़ ऑफ स्ट्रेंथ के मुताबिक तुकाराम ओंबले के चचेरे भाई रामचंद्र ओंबवे का बेटा स्वानंद तब एक साल का भी नहीं हुआ था जब तुकाराम शहीद हुए थे, वो भी बड़ा होकर स्कूल और घर में उनकी गौरव गाथा को गुनगुनता था. वो बच्चा मराठी में कहता था कि 'माझ्या कक्कानी कसाबला पकड़ला' यानी मेरे चाचा ने ही कसाब को पकड़ा था.
मुंबई में हालात काबू होने के बाद मीडिया को दिए इंटरव्यू में उनके साथी पुलिसवालों ने बताया, 'तुकाराम ओंबले उन सब से अलग थे. जब ड्यूटी खत्म होने पर हम लोग जल्दी घर निकलने की राह देखते थे तब ओंबले अपनी ड्यूटी से ज्यादा रुक जाते थे. वो अक्सर नाइट शिफ्ट में देर तक रुक जाते थे ताकि उनके साथियों को असुविधा न हो, इसके बावजूद वो अगले दिन अपनी शिफ्ट पर टाइम से आ जाते थे.
कैसे शहीद हुए थे तुकाराम ओंबले?
मुंबई पुलिस के मुताबिक तुकाराम ओंबले अपनी टीम के साथ एक चेकपोस्ट की रखवाली कर रहे थे, जब कसाब अपने एक साथी के साथ एक कार से वहां आया. इसके बाद आतंकियों और पुलिस के बीच हुई फायरिंग में आतंकवादी कसाब का साथी मारा गया. फिर कसाब आत्मसमर्पण करने का नाटक करते हुए कार से बाहर निकला और अचानक फायरिंग करने लगा. तुकाराम ओंबले ने उसे दबोच लिया और उसकी AK 47 मशीन गन का बैरल अपनी तरफ कर लिया. ताकि वो किसी और को नुकसान न पहुंचा सके. इस दौरान दूसरे पुलिसकर्मियों को मौका मिला और उन्होंने कसाब को जिंदा पकड़ लिया. इसके बाद साल 2009 में तुकाराम ओंबले को मरणोपरांत अशोक चक्र से भी नवाजा गया था.
यहां लगे मुंबई हमले के दाग-
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस
मुंबई हमले के दौरान भारतीय जवानों की कार्रवाई में एकमात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकवादी कसाब इसी रेलवे स्टेशन में मौत का तांडव मचाने आया था. देश के सबसे व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक छत्रपति शिवाजी टर्मिनस में तब सैकड़ों रेल यात्री मौजूद थे. हमलावरों ने यहां अंधाधुंध गोलियां चलाईं और यहां पर सबसे ज्यादा 58 लोग मारे गए. इसी कसाब को जिंदा पकड़ने में अहम भूमिका पुलिसकर्मी तुकाराम ओंबले ने निभाई थी.
लियोपोल्ड कैफे
मुंबई पुलिस के मुताबिक पाकिस्तानी आतंकवादी दो-दो के गुटों में बंटे थे. लियोपोल्ड कैफे में पहुंचे दो हमलावरों ने अंधाधुंध फायर झोंक दिए. अधिकारिक आंकड़े के मुताबिक लियोपोल्ड कैफे में हुई फायरिंग में 10 लोग मारे गए.
ताजमहल होटल
ताजमहल होटल के गुंबद में लगी आग आज भी लोगों के दिलो दिमाग से मिटी नहीं है. गोलीबारी और धमाकों के बीच मुंबई की शान ताजमहल होटल में लगी आग लोग शायद ही भूल पाए होंगे. 105 साल पुराने होटल से समुद्र का नजारा भी दिखाई देता है. होटल पर जब हमला हुआ तो सभी दंग रह गए. आंकड़ों के मुताबिक ताजमहल होटल में 31 लोग मारे गए और चार हमलावरों को सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया था.
ओबेरॉय होटल
ओबेरॉय होटल में आतंकवादी ढेर सारा गोला-बारूद लेकर घुसे थे. माना जाता है कि उस समय होटल में 350 से ज़्यादा लोग मौजूद थे. यहां हमलावरों ने कुछ लोगों को बंधक बना लिया था. लेकिन एनएसजी के जवानों ने यहां मौजूद दोनों हमलावरों को ढेर कर दिया था.
नरीमन हाउस
हमलावरों ने नरीमन हाउस को भी निशाना बनाया. नरीमन हाउस को चबाड़ लुबाविच सेंटर के नाम से भी जाना जाता है. यहां जिस इमारत में हमलावर घुसे थे वो यहूदियों की मदद के लिए बनाया गया सेंटर था, जहां यहूदी पर्यटक अक्सर ठहरते थे. यहां सात लोग और दो हमलावर मारे गए.
कामा अस्पताल
इस चैरिटेबल अस्पताल का निर्माण एक व्यापारी ने 1880 में कराया था. मुंबई पुलिस के मुताबिक चार हमलावरों ने पहले एक पुलिस वैन को अगवा किया और फिर लगातार गोलियां चलाते रहे. इसी दौरान वो कामा अस्पताल में भी घुसे. कामा अस्पताल के बाहर हुई मुठभेड़ में आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे, मुंबई पुलिस के अशोक कामटे और विजय सालसकर मारे गए.
इस दर्दनाक घटना के भले ही आज 14 साल हो गए हों, लेकिन इसके जख्म अभी भी भरे नहीं हैं. आज भी लोग इस घटना को याद कर सहम जाते हैं. वो ऐसी काली रात थी, जब कभी न सोने वाले शहर (मुंबई) की नींद उड़ गई थी. इस आतंकी हमले में 166 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.
भारत-पाकिस्तान के बीच कितने युद्ध?
भारत और पाकिस्तान के बीच तीन प्रत्यक्ष और एक परोक्ष युद्ध हो चुका है. सन 1948, 1965 और 1971 में भारतीय फौज के हाथों पिटने और मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान ने 1999 में कारगिल युद्ध की शुरुआत की और उस दौर में सुदूर बर्फीले पहाड़ की चोटियों में कई दिन तक खिंचे युद्ध में भारतीय सेना के वीर सैन्य अधिकारियों और जवानों ने अपने पराक्रम का लोहा न सिर्फ पाकिस्तानियों बल्कि पूरी दुनिया को मनवाया था.
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