Madrasa Education: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल लिखित दलीलों में मदरसों में मिलने वाली शिक्षा का विरोध किया है. NCPCR ने कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा है कि मदरसों में बच्चों को औपचारिक, क्वालिटी एजुकेशन नहीं मिल पा रही है. शिक्षा के लिए जरूरी माहौल और सुविधाएं देने में असमर्थ मदरसे, बच्चों  को उनकी अच्छी शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं. मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को न केवल अच्छी शिक्षा नहीं मिल पा रही है बल्कि उनके सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी, स्वस्थ माहौल भी उन्हें वहां उपलब्ध नहीं हो पा रहा है


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'बच्चों के शिक्षा का अधिकार का हनन'


आयोग ने कहा है कि शिक्षा का अधिकार क़ानून आर्टिकल 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है. इसके तहत राज्यों की जिम्मेदारी है कि वो 6 से 14 साल के हर बच्चे को सूचना के अधिकार क़ानून के मुताबिक  मुफ्त, ज़रूरी शिक्षा उपलब्ध कराए.मदरसे चूंकि शिक्षा के अधिकार क़ानून के तहत नहीं आते है, इसलिए इनमे पढ़ने वाले बच्चे न केवल बाकी स्कुलों में मिलने वाली औपचारिक,ज़रूरी शिक्षा से वंचित रहते है, बल्कि उन्हें RTE एक्ट के तहत मिलने वाले अन्य फायदे  भी नहीं मिल पाते. इन बच्चों को मिड डे मील, यूनिफॉर्म और स्कूल में पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों जैसी सुविधाएं नहीं मिल पाती.


मदरसों का जोर धार्मिक शिक्षा पर


शिक्षकों की अयोग्यता, फंडिंग में पारदर्शिता का अभाव, कानून पर अमल न होने के चलते मदरसे बच्चों को पढाई के लिए ज़रूरी माहौल नहीं दे पाते है. ज़्यादातर मदरसों को सोशल इवेंट, extracurricular activities का अंदाज़ा नहीं होता ताकि छात्रों को व्यवहारिक शिक्षा भी दी जा सके. इसलिए मदरसों का ज़्यादातर जोर धार्मिक शिक्षा पर ही होता है, मुख्य धारा की शिक्षा में उनकी भागीदारी कम ही होती है.


मदरसा शिक्षकों की योग्यता पर सवाल


राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने लिखित दलीलों में कहा है कि मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की नियुक्ति मदरसों के अपने मैनेजमेंट द्वारा होती है. कुछ मामलों में तो उनके पास शिक्षक बनने के लिए ज़रूरी शैक्षणिक योग्यता भी नहीं होती.नियुक्ति के वक़्त उनकी योग्यता कुरान और धार्मिक ग्रंथों की समझ से नापी जाती है. शिक्षा के अधिकार क़ानून में शिक्षकों की योग्यता, उनकी ड्यूटी, छात्रो-शिक्षकों के अनुपात का भी जिक्र है. लेकिन इस क़ानून का मदरसे में अमल न होने के चलते बच्चे अकुशल शिक्षकों के जरिये पढ़ने को मजबूर है.


गैरमुस्लिम बच्चों को भी मिल रही इस्लाम की शिक्षा


आयोग का कहना है कि उसे मिली जानकारी के अनुसार यूपी, उत्तराखंड मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में बहुत से मदरसों में  इस्लाम के अलावा बाकी धर्मो के बच्चे भी पढ़ रहे है.गैरमुस्लिम बच्चों को भी इस्लामिक धार्मिक शिक्षा, धार्मिक परम्पराओ की शिक्षा दी जा रही है, जो कि आर्टिकल 28(3) का उल्लंघन है. कमीशन ने जो राज्य बोर्ड के पाठ्यक्रम को देखा है,उसमे  आपत्तिजनक बाते भी शामिल है. मदरसा बोर्ड उन किताबो को पढा रहे है जो इस्लाम के सर्वश्रेष्ठ होने की वक़ालत करते है


दारुल उलूम मदरसे की वेबसाइट पर मौजूद फ़तवों पर आपत्ति


राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने अपने जवाब में देवबंद में मौजूद दारुल उलूम मदरसे की वेबसाइट पर मौजूद कई आपत्तिजनक कंटेंट का भी हवाला दिया है. कमीशन के मुताबिक दारुल उलूम की वेबसाइट पर मौजूद एक फतवा एक नाबालिक लड़की के साथ फिजिकल रिलेशनशिप को लेकर दिया गया था जो कि ना केवल  भ्रामक है, बल्कि पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों का भी सीधे तौर पर हनन है. इसी तरह  दारुल उलूम की वेबसाइट पर एक फतवा पाकिस्तान के रहने वाले एक शख्स के सवाल पर जारी किया गया था जिसमें उसने गैर मुसलमानों पर आत्मघाती हमले के बारे में सवाल पूछा था दारुमुलम देवबंद ने इस सवाल को गैर कानूनी बताने की बजाय यह बयान जारी किया कि 'अपने स्थानीय विद्वान से उसे बारे में मशवरा करें'.


दारुल उलूम का फतवा गजवा ए हिंद


कमीशन के मुताबिक दारुल उलूम देवबंद की तरफ से जारी इस तरह के बयान न केवल गैरमुसलमानों पर आत्मघाती हमले को सही ठहरा रहे हैं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं. इसी तरह दारुल उलूम का फतवा गजवा ए हिंद की बात करता है. कमीशन का कहना है कि  दारुल उलूम इस्लामी शिक्षा का केंद्र होने के चलते इस तरह के फतवे जारी कर रहा है जो कि बच्चों को अपने ही देश के खिलाफ नफरत की भावना से भर रहे हैं.


यूपी मदरसा एक्ट को लेकर SC में केस पेंडिंग


NCPCR ने ये दलीलें  यूपी के मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट  के फैसले के खिलाफ  दायर याचिका को लेकर दी है. एक मदरसे के मैनेजर अंजुम कादरी और बाकी की ओर से दायर इस याचिका में हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे मनमाना बताया गया है. मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाते दी थी जिसके चलते मदरसा एक्ट के तहत मदरसो में पढ़ाई अभी चल रही है. अब आगे सुप्रीम कोर्ट को मदरसा एक्ट की संवैधानिकता पर विचार करना है.11 सितंबर को  भी सुप्रीम कोर्ट में यह मामला सुनवाई पर लगा है.