नई दिल्ली: नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) 18 अगस्त 1945 को लापता हो गए थे. इस वजह से आज तक ये गुत्थी नहीं सुलझ पाई कि वो कहां गए. क्या विमान दुर्घटना में ही उनकी मौत हो गई या फिर बाद में फैजाबाद के गुमनामी बाबा के तौर पर नेता जी सामने आए? नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी एक और बड़ी गुत्थी भी थी जो इतने सालों बाद भी नहीं सुलझी है. वो है उनके खजाने की गुत्थी. उनको इतना जेवर और पैसा आजादी की लड़ाई के लिए देश की आम जनता ने दिया, खासतौर पर महिलाओं ने दिया था, वो उनके गायब होते ही कहां चला गया. 9 अक्टूबर 1978 को इस खजाने की जांच का मामला उठा था लेकिन वक्त ने इसके रहस्य से कभी परदा उठने ही नहीं दिया. शायद इसके पीछे वो लोग भी रहे जो इस खजाने की लूट में शामिल थे. अनुज धर की किताब ‘इंडियाज बिगेस्ट कवरअप’ ने इस मामले को कुछ सालों से फिर उठाया है.


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देश आजाद होने के बाद अक्टूबर 1978 में पहली बार कोई गैर कांग्रेसी सरकार देश पर राज कर रही थी. पंडित नेहरू के आदेश पर बोस के प्लेन एक्सीडेंट के बाद अब तक जिस डिप्लोमेटिक बैग को हाथ तक नहीं लगाया गया था, मोरारजी देसाई के राज में उसे खोलने का फैसला लिया गया. सबको जिज्ञासा थी कि उस बैग से जरूर कुछ ना कुछ बाहर आएगा. जब वो डिप्लोमेटिक बैग खोला गया तो उस बैग के अंदर एक स्टील का केस था और 14 पैकेट्स मिले.


उन पैकेट्स के अंदर नेताजी की वस्तुओं के अलावा जले हुए जेवर, महिलाओं के कुंडल, गले के हार, नाक की नथ और हाथों की चूड़ियां-अगूंठियां थीं. अधिकारियों को अंदाजा नहीं था कि इसमें जेवर होंगे. वो काफी चौंके कि बोस के सामान में महिलाओं के जेवर कैसे? हालांकि जब जेवरों का वजन सामने आया तो अब चौंकने की बारी आजाद हिंद फौज से जुड़े तमाम रिसर्चर्स और पुराने स्वतंत्रता सेनानियों की थी कि बाकी का खजाना कहां गया क्योंकि 80 किलो से ज्यादा सोना तो उस दिन का था जिस दिन बोस को सोने से तोला गया था. 9 जनवरी 1953 को जब टोक्यो से ये बैग आया था तो पंडित नेहरू ने इसको जांचा था. बाद में उन्होंने इसको सुरक्षित रखवा दिया था क्योंकि ये बोस के प्लेन क्रैश की आखिरी निशानी थी. ना पंडित नेहरू ने उस वक्त ये कहीं दर्ज करवाया कि इस डिप्लोमेटिक बैग में क्या-क्या था और ना ही अलग-अलग जांच आयोगों ने ऐसा किया.


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बहुत लोगों को तो ये बात भी पता नहीं होगी कि एक बार जनता ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सोने से तोलकर उनके वजन के बराबर सोना दिया था और आजादी की जंग में उनकी हौसला अफजाई की थी. आज तक शायद देश के किसी भी नेता को ये सौभाग्य हासिल नहीं हुआ. वो तारीख 29 जनवरी 1945 थी. यूं तो बोस का जन्मदिन 23 जनवरी को होता है लेकिन वो जन्मदिन पूरे एक हफ्ते तक मनाया गया था. अलग-अलग कार्यक्रम होते रहे, उस दिन सेलीब्रेशन वीक का आखिरी दिन था. तय किया गया कि देश को आजाद करवाने के लिए बोस के वजन के बराबर सोना आजाद हिंद फौज को दिया जाएगा. देश-विदेश से भारतीयों और खासकर महिलाओं ने अपने अपने जेवर बोस को देश को आजाद देखने के लिए दान में दे दिए थे. उस वक्त उन जेवरों की कीमत 2 करोड़ से भी ज्यादा आंकी गई थी. इस घटना का जिक्र कर्नल ह्यूग टोए ने आजाद हिंद फौज पर लिखी अपनी किताब ‘द स्प्रिंग टाइगर’ में किया है.


दूसरे विश्व युद्ध के बाद टोक्यो में बने इंडियन लायजन मिशन के हेड बेनेगल रामा राव से लेकर, 1955 में टोक्यो में भारत के राजदूत ए. के. डार समेत तमाम लोगों ने पंडित नेहरू से उस खजाने की लूट की जांच के लिए इंक्वायरी कमेटी गठित करने की मांग की थी. लेकिन पंडित नेहरू ने इस पर ध्यान नहीं दिया. मोरारजी देसाई की सरकार के वक्त सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी उनको खत लिखकर बोस के खजाने की लूट की जांच की मांग थी और उस लूट में सीधे-सीधे पंडित नेहरू का हाथ बताया था. मोरारजी देसाई ने उस वक्त संसद में इस खजाने की लूट के दोषियों को सजा देने के लिए जांच का ऐलान भी किया था. इसी के चलते नेशनल म्यूजियम में रखा वो डिप्लोमेटिक बैग भी खोला गया था जो जापान से आया था. लेकिन उसके बाद जनता पार्टी की सरकार आपसी फूट का शिकार होकर चारों खाने चित हो गई और इंक्वायरी कमेटी के गठन तक का ऐलान नहीं हुआ.


अब जानिए उन व्यक्तियों के बारे में जिन पर लूट का आरोप आजाद हिंद फौज के सिपाहियों ने, उस वक्त के कई अधिकारियों और जांच आयोगों ने व बोस पर रिसर्च के लिए मशहूर लेखक अनुज धर ने भी अपनी किताब ‘इंडियाज बिगेस्ट कवर अप’ में लगाया. इन आरोपियों में से एक एस. ए. अय्यर थे, जो पत्रकार के रूप में एपी और रॉयटर्स जैसी न्यूज एजेंसियों के लिए काम कर चुके थे. एस. ए. अय्यर आजाद हिंद सरकार के सूचना प्रसारण मंत्री थे और जब नेताजी ने सोवियत संघ यानी वर्तमान रूस के लिए अपनी आखिरी उड़ान भरी तो उस वक्त वो वहां मौजूद थे. कहा जाता है कि नेताजी ने काफी खजाना उस वक्त इन्हीं के पास छोड़ दिया था. कुछ दिनों बाद अय्यर ने ही बोस की मौत की खबर ड्राफ्ट करने में जापान सरकार की मदद की थी. हालांकि अय्यर पर लगे आरोपों को उनका परिवार खारिज करता रहा है. बाद में एस. ए. अय्यर को 1953 में पंडित नेहरू ने अपनी पहली पंचवर्षीय योजना में सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया था.


खजाने की लूट के दूसरे आरोपी आईएन अधिकारी राममूर्ति थे. एक जापानी अधिकारी ने दशक भर बाद खुलासा किया था कि 7 सितंबर 1945 को राममूर्ति और अय्यर को जापानी सरकार ने कई बॉक्स सौंपे थे, जिनमें काफी जेवरात थे. जो बॉक्स कभी भी भारत नहीं भेजे गए. राममूर्ति के छोटे भाई की दुल्हन जब शादी में इंडियन ज्वैलरी से लदी हुई आई तो लोगों ने आरोप लगाए. उन लोगों ने एक जापानी सैन्य अधिकारी कर्नल फिग्स से सांठगांठ कर काफी विलासिता से जीवन बिताया. बाद में राममूर्ति और उसकी जापानी बीवी पर टैक्स चोरी का आरोप लगाकर जापान सरकार ने उन्हें भारत डिपोर्ट कर दिया था. इसी कर्नल फिग्स ने एयर क्रैश थ्योरी को जापान में जोर शोर से प्रचारित किया था कि बोस की इस एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. राममूर्ति और अय्यर ने इस थ्योरी को समर्थन दिया था. 1957 में राम मूर्ति के भाई जे. मूर्ति ने टोक्यो में एक भव्य इंडियन रेस्तरां खोला, जिसे आज भी उनका बेटा चला रहा है. इन लोगों से कभी भी किसी भी इंक्वायरी कमेटी ने पूछताछ नहीं की.


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