DNA with Sudhir Chaudhary: जापान के लोगों के मन में आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस बसते हैं. जापान की राजधानी टोक्यो में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का एक मन्दिर है, जहां उनकी अस्थियों को रखा गया है. पूर्वी टोक्यो में भारत का एक छोटा सा हिस्सा भी बसता है. इसे RENKO-JI मंदिर कहते हैं. वैसे तो टोक्यो का ये इलाका शहर के बाकी हिस्सों से थोड़ा अलग है. यहां बड़े आलीशान घर नहीं हैं. आसमान छूती इमारतें नहीं हैं, बल्कि सामान्य से दिखने वाले घर हैं. हालांकि टोक्यो के इसी हिस्से में भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय मौजूद है. वो अध्याय है भारत के स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मंदिर. हालांकि ये मंदिर काफी छोटा है लेकिन अच्छी स्थिति में है. मंदिर में प्रवेश करते ही आपको नेता जी की प्रतिमा नजर आएगी. जिसके पीछे कुछ संदेश लिखे हुए हैं. ये सभी संदेश भारतीय राजनेताओं द्वारा लिखे गए हैं.


सुभाष चंद्र बोस का मंदिर


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वर्ष 1957 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू यहां आए थे. जिसके एक वर्ष बाद ही भारत के पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी यहां आए थे. वर्ष 2001 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस मंदिर में आए थे और उनका संदेश भी यहां मौजूद है. ये सभी नेता यहां सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि देने आए थे. लेकिन सवाल ये है कि वो नेता जी को श्रद्धांजलि देने इतनी दूर जापान क्यों आए. आखिर इस मंदिर का नेता जी सुभाष चंद्र बोस से क्या रिश्ता है. टोक्यो शहर से बोस का रिश्ता बहुत पुराना है. वर्ष 1943 में जब दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था तब नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी से जापान तक की यात्रा की थी. ये यात्रा किसी adventure से कम नहीं था. पहले उन्हों ने जर्मनी से मेडागास्कर तक का सफर एक जर्मन यू बोट में तय किया. इसके बाद उन्होंने एक जापानी पनडुब्बी में जापान तक का सफर तय किया.


अस्थियों के DNA टेस्ट की मांग


यहीं जापान में उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी को दोबारा संगठित किया. वर्ष 1945 में नेता जी की आकस्मिक मृत्यु की खबर एक सदमे की तरह थी. बहुत से भारतीय आज भी उनकी मृत्यु की खबर को सही नहीं मानते. बहुत लोगों का मानना है कि उनकी मौत के पीछे एक गहरी साज़िश थी. वो अभी भी उनकी मृत्यु से जुड़े सवालों का जवाब ढूंढ रहे हैं. संभव है कि इस मंदिर में उन्हें उनके सवालों के जवाब मिल जाएं. नेता जी के परिवार ने इस मंदिर में रखी उनकी अस्थियों के DNA टेस्ट की मांग की है.


किसी भी सरकार ने नहीं दिखाई दिलचस्पी


हालांकि किसी भी सरकार ने इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. नतीजा ये कि नेता जी की अस्थियां अभी भी इस बौद्ध मंदिर में ही रखी हैं. दरअसल जापान में कुछ समय बिताने के बाद नेता जी वहां के लोगों में काफी लोकप्रिय हो गए थे. जापान के लोग इस मंदिर का भी बहुत सम्मान करते हैं. यही नहीं हर वर्ष 18 अगस्त को यहां एक खास कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है. 18 अगस्त ही नेता जी की पुण्यतिथि भी है. लेकिन हमारा मानना है कि नेता जी जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया उनके लिए बस ये श्रद्धांजलि ही काफी नहीं है, बल्कि हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि बोस की अस्थियां उनकी मातृभूमि तक लाई जा सकें.


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