Droupadi Murmu Bio Profile and Family History: भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती यही है कि ओडिशा के मयूरभंज में छोटे से मकान में रहने वाली द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) अब सैकड़ों एकड़ के राष्ट्रपति भवन में रहेंगी. 64 साल की द्रौपदी मुर्मू अभी ओडिशा के मयूरभंज जिले के एक साधारण से घर में रहती हैं. दो मंजिल के इस घर में सिर्फ 6 कमरे हैं और ये घर किसी VVIP इलाके में नहीं है बल्कि ये घर एक साधारण से रिहायशी इलाक़े में हैं, जहां ज्यादातर मध्यम वर्गीय परिवार और आम लोग रहते हैं. लेकिन अब द्रौपदी मुर्मू इस छोटे से घर से निकल कर दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन में रहेंगी, जो 330 एकड़ के क्षेत्र में फैला है, जहां कुल 340 कमरे हैं. जिसका Garden Area ही सिर्फ़ 190 एकड़ के क्षेत्र में फैला है और जहां कुल 750 कर्मचारी काम करते हैं. ये किसी चमत्कार से कम नहीं है.


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आजादी के बाद जन्म लेने वालीं पहली राष्ट्रपति


द्रोपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था. दिलचस्प बात ये है कि वो देश की पहली ऐसी राष्ट्रपति हैं, जिनका जन्म आज़ादी के बाद हुआ. इससे पहले नरेन्द्र मोदी वर्ष 2014 में देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने थे, जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ था. यानी द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के दो सबसे बड़े संवैधानिक पदों पर ऐसे नेता बैठे होंगे, जिनका जन्म आजाद भारत में हुआ है. ये एक बहुत बड़ा परिवर्तन है. जिसके बारे में शायद आपने भी नहीं सोचा होगा.


द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने अपने राजनीतिक जीवन में कई सफलताएं हासिल की. लेकिन निजी जीवन में समय ने उनका बार-बार इम्तिहान लिया. एक वक्त ऐसा आया, जब द्रोपदी मुर्मू डिप्रेशन में चली गई थीं. ये बात वर्ष 2009 की है, जब सिर्फ़ 25 साल की उम्र में उनके एक बेटे की असमय मौत हो गई थी. अपने बेटे की मृत्यु से द्रोपदी मुर्मू को इतना गहरा सदमा पहुंचा कि वो डिप्रेशन में चली गईं. इसके बाद उन्होंने खुद को हिम्मत देने के लिए अध्यात्म का रास्ता चुना और ब्रह्माकुमारी संस्था के साथ जुड़ गईं.


5 साल में खोए परिवार के 5 लोग 


वो धीरे धीरे डिप्रेशन से बाहर आ ही रही थीं कि वर्ष 2013 में एक सड़क दुर्घटना में उनके दूसरे बेटे की भी मृत्यु हो गई. यानी सिर्फ चार वर्षों में उन्होंने एक के बाद एक अपने दोनों बेटों को खो दिया. उनके निजी जीवन में आई ये त्रासदी यहीं नहीं रुकी. 2013 में उनके दूसरे बेटे की मृत्यु के कुछ दिन बाद उनकी मां और उनके भाई का भी देहांत हो गया. इस तरह एक महीने में द्रौपदी मुर्मू ने पहले अपने बेटे को खोया, फिर अपनी मां को खोया और फिर भाई भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. जब इन तमाम दुखों को पीछे छोड़ कर द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) अपने जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थीं, तभी उनके पति का भी देहांत हो गया. ये बात वर्ष 2014 की है.


पति की मृत्यु के बाद द्रौपदी मुर्मू के लिए सामान्य जीवन में लौटना मुश्किल था. लेकिन उन्होंने अध्यात्म के साथ योग करना शुरू किया और डिप्रेशन के खिलाफ तब तक लड़ाई लड़ी, जब तक उन्होंने इसे हरा नहीं दिया. इसके बाद वो वर्ष 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल नियुक्त हुईं.


जिस तरह आज बहुत सारे लोग द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) के राष्ट्रपति बनने पर हैरानी जता रहे हैं, ठीक इसी तरह की हैरानी लोगों ने तब भी जताई थी, जब उनका राजनीति में प्रवेश हुआ था. असल में द्रौपदी मुर्मू ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वो राजनीति में आएंगी.


क्लर्क के पद से की करियर की शुरुआत


वर्ष 1979 में उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उनके करियर की पहली नौकरी एक Clerk की थी. हैरान मत होइए द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने अपने करियर की शुरुआत ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में बतौर Clerk की थी. हालांकि इसके बाद उन्होंने नौकरी बदली और वो अपने गृह जिले के एक कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर छात्रों को पढ़ाने लगीं. यानी वो पहले Clerk थीं. इसके बाद वो शिक्षक बन गईं. लेकिन उनके जीवन में सबसे बड़ा Turning Point तब आया, जब वो वर्ष 1997 में मयूरभंज से वॉर्ड पार्षद चुनी गईं. इसके बाद उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.


वो ओडिशा से दो बार विधायक बनी. वर्ष 2000 से 2004 तक ओडिशा की सरकार में राज्यमंत्री भी रहीं. वर्ष 2015 में उन्हें झारखंड की राज्यपाल नियुक्त किया गया था. उस समय वो राष्ट्रपति भवन में रामनाथ कोविंद से भी मिली थी. शायद तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि जिस राष्ट्रपति भवन में वो बतौर राज्यपाल राष्ट्रपति से मिलने के लिए गई हैं. एक दिन वही राष्ट्रपति भवन उनका नया घर होगा.


स्वभाव से विनम्री और दृढ हैं मुर्मू


द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) को विनम्र स्वभाव की होने के साथ एक कड़क नेता भी माना जाता है. जो अक्सर अपने फैसलों को लेकर अडिग रहती हैं. वर्ष 2017 में जब झारखंड में बीजेपी की सरकार थी और रघुबर दास राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने CNT ऐक्ट और SPT ऐक्ट में कुछ संशोधन किए थे. ये कानून, आदिवासी समुदाय की ज़मीनों की सुरक्षा से जुड़े थे लेकिन तत्कालीन सरकार ने इनमें संशोधन किया और इन्हें उस समय विधान सभा से पास भी करा लिया. 


जब ये बिल  तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के पास मंज़ूरी के लिए भेजे गए तो उन्होंने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और इन्हें वापस लौटा दिया. द्रौपदी मुर्मू का कहना था कि ये बिल आदिवासी समुदाय के हित में नहीं है. उस समय रघुबर दास दिल्ली आए और उन्होंने इन कानूनों को पास करने के लिए काफी दबाव बनाया लेकिन द्रौपदी मुर्मू अपने फैसले से पीछे नहीं हटी.


राज्यपाल रहते लौटा दिए थे बिल


इसी तरह जब झारखंड की मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार ने 2019 में एक संशोधित कानून द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) के पास मंजूरी के लिए भेजा तो उन्होंने उसे भी न्यायसंगत नहीं माना था और इस कानून को वापस लौटा दिया था. यानी द्रौपदी मुर्मू एक ऐसी राज्यपाल थीं, जिन्होंने अपने विवेक से फैसले लिए. वो ना तो किसी के दबाव में आईं और ना ही सरकार की Rubber Stamp बनीं. उनके अचारण और उनकी ईमानदारी से आप समझ सकते हैं कि वो एक Rubber Stamp राष्ट्रपति नहीं होंगी. जैसा कि विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया.


मयूरभंज के उस इलाके में जहां द्रौपदी मुर्मू का जो घर था, उसे अब स्कूल में बदल दिया गया है. द्रोपदी मुर्मू की कहानी से पता चलता है कि भारत का लोकतंत्र, भारत के आम लोगों का भी है और आप भी संघर्ष करके इस लोकतंत्र में बड़े संवैधानिक पदों पर पहुंच सकते हैं.


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