Electricity Theft Case: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) हापुड़ जिले की एक अदालत ने बिजली चोरी के 9 मामलों में 2-2 साल कैद की सजा सुनाई, लेकिन जज साहब एक बात कहना भूल गए और इस वजह से आरोपी को कई सालों तक जेल में रहना पड़ा. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मामले में हस्तक्षेप किया और फिर आरोपी को राहत मिली. इसका खुलासा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने किया और कहा कि कानून की उचित प्रक्रिया में नागरिकों का विश्वास और स्वतंत्रता की रक्षा न्यायपालिका में निहित है, जो 'स्वतंत्रताओं की संरक्षक' है.


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सीजेआई ने सुनाई पूरी कहानी


बंबई बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) व्याख्यान देते हुए इस बात पर बल दिया कि उन उद्देश्यों को निर्भयता से आगे बढ़ाने वाले 'बार' के सदस्यों के जीवन के जरिए स्वतंत्रता की ज्योति आज भी प्रकाशमान है. सीजेआई ने इस दौरान बिजली चोरी के एक मामले का हवाला दिया, जिसमें यदि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो उत्तर प्रदेश के एक व्यक्ति को 18 साल कैद की सजा काटनी पड़ती.


सत्र जज कहना भूल गए थे ये एक बात


सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा, 'बिजली चोरी के 9 मामलों में एक आरोपी को सत्र अदालत ने दो-दो साल कैद की सजा सुनाई थी, लेकिन निचली अदालत के न्यायाधीश यह कहना भूल गए थे कि सजाएं एक साथ चलेंगी.' सीजेआई ने कहा, 'इसका परिणाम यह हुआ कि बिजली के उपकरण चुराने वाले व्यक्ति को 18 साल जेल में रहना पड़ता, सिर्फ इसलिए कि निचली अदालत यह निर्देश नहीं दे सकी कि सजाएं एक साथ चलेंगी.'


सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को दी बड़ी राहत


सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उत्तर प्रदेश के रहने वाले इकराम नाम के व्यक्ति को बड़ी राहत दी और रिहा करने का आदेश दिया. इकराम को विद्युत अधिनियम से जुड़े 9 आपराधिक मामलों में उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले की एक अदालत ने दोषी करार दिया था. अदालत ने इकराम को हर मामले में दो साल के कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई थी.


हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका


मामले का हवाला देते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने शनिवार कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'माफ कीजिएगा हम कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि निचली अदालत ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 427 के संदर्भ में ऐसा नहीं किया.' उन्होंने कहा, 'हमें देश के एक सामान्य नागरिक के मामले में कल हस्तक्षेप करना पड़ा. मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारे नागरिकों की स्वतंत्रताओं के संरक्षक के तौर पर हम पर विश्वास करिए.'
(इनपुट- न्यूज एजेंसी भाषा)


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