नई दिल्ली: आज महावीर जयंती है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म लगभग 600 ईसा पूर्व चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन वैशाली में हुआ था. भगवान महावीर का पूरा जीवन हमें अहिंसा की शिक्षा देता है. आपको बता दें कि भगवान महावीर ने ही कहा था, "अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है." आज (17 अप्रैल) को महावीर जयंती है इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि अहिंसा एक बड़ी शक्ति भी है. अहिंसा में हिंसा के मुकाबले बदलाव लाने की ताकत ज्यादा है.


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स्टडी में हुआ इस बात का खुलासा
अहिंसा की ताकत को एक भारतीय से ज्यादा कौन समझ सकता है. हमने अपनी आजादी की लड़ाई में अहिंसा का योगदान देखा और पढ़ा है. अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को इन्हीं वजहों से राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई थी. यही नहीं हार्वर्ड कैनेडी स्कूल की प्रोफेसर एरिका चेनोवेथ और मारिया जे स्टीफन की एक स्टडी भी अहिंसा को हिंसा की अपेक्षा ज्यादा ताकतवर बताती है. यह स्टडी सन 1900 से लेकर 2006 के बीच हुए हिंसक और अहिंसक आंदोलनों पर की गई थी. 323 दन आंदोलनों पर की गई इस स्टडी में पाया गया कि एक ओर जहां 64 फीसदी हिंसक आंदोलन असफल हुए तो वहीं 54 प्रतिशत अहिंसक आंदोलन सफल रहे.


हिंसक आंदोलन इस वजह से हो जाते हैं असफल
आंदोलनों पर रिसर्च करने वाली चेनोवेथ के मुताबिक अगर कोई आंदोलन हिंसक हो जाता है तो उसकी असफलता की आशंका भी काफी अधिक हो जाती है. एरिका इसके पीछे की वजह बताती हैं कि जब प्रदर्शनकारी बंदूकें उठाते हैं तो सरकार को भी हिंसक जवाब देने की वजह मिल जाती है. वहीं दूसरी ओर स्टडी यह भी बताती है कि अहिंसक आंदोलन में हिंसक आंदोलन की तुलना में चार गुना ज्यादा लोग शामिल होते हैं.


अपनी किताब में बताई पूरी बात
अपनी पुस्तक 'व्हाई सिविल रेजिस्टेंस वर्क्स: द स्ट्रैटेजिक लॉजिक ऑफ नॉनवॉइलेंट कंफर्ट' में हार्वर्ड की प्रोफेसर एरिका चेनोवैथ बताती हैं कि नागरिक प्रतिरोध अभियान लोगों की अधिक निरपेक्ष संख्या को क्यों आकर्षित करते हैं."