Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 'तलाक-ए-किनाया' और 'तलाक-ए-बैन' सहित मुसलमानों के बीच 'एकतरफा और न्यायेतर’ तलाक को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब जवाब तलब किया. जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस जेबी पार्डीवाला की पीठ ने कानून एवं न्याय मंत्रालय, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी किए.


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सुप्रीम कोर्ट ने सैयदा अंबरीन की याचिका पर की सुनवाई


सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक स्थित सैयदा अंबरीन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया है कि ये प्रथाएं मनमानी, तर्कहीन और समानता, गैर-भेदभाव, जीवन और धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के विपरीत हैं. याचिकाकर्ता ने केंद्र को 'लिंग तटस्थ और धर्म तटस्थ तलाक के समान आधार और सभी नागरिकों के लिए तलाक की समान प्रक्रिया' के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने की भी मांग की है.


याचिका में कही गई ये बात


याचिका में कहा गया है कि तलाक-ए-किनाया, तलाक-ए-बैन और एकतरफा और न्यायेतर तलाक के अन्य रूप सती के समान एक सामाजिक बुराई हैं, जो मुस्लिम महिलाओं की परेशानी का सबब हैं और बेहद गंभीर स्वास्थ्य, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और भावनात्मक जोखिम वाले हालात पैदा करते हैं.


याचिकाकर्ता ने कहा कि जनवरी 2022 में 'काजी' के कार्यालय से एक पहले से भरा पत्र प्राप्त हुआ था, जिसमें अस्पष्ट आरोप लगाए गए थे. उनके पति की ओर से कहा गया कि इन ‘शर्तों’ के चलते इस रिश्ते को जारी रखना संभव नहीं है और उन्हें वैवाहिक संबंधों से मुक्ति दे दी गई है.


क्या है तलाक-ए-किनाया या तलाक-ए-बैन?


याचिका में कहा गया, ‘इन शब्दों को किनाया शब्द कहा जाता है (अस्पष्ट शब्द या अस्पष्ट रूप जैसे. मैंने तुम्हें आजाद किया, अब तुम आजाद हो, तुम/ये रिश्ता मुझ पर हराम है, अब तुम मुझसे अलग हो गए हो, आदि) जिनके जरिए तलाक-ए-किनाया या तलाक-ए-बैन (तलाक का तात्कालिक और अपरिवर्तनीय और न्यायेतर रूप, एकल बैठक में, या तो उच्चारित या लिखित/इलेक्ट्रॉनिक रूप में) दिया जाता है.’


(इनपुट- भाषा)


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