One Nation One Election: एक देश एक चुनाव को लेकर देश भर में चर्चा तेज हो गई है. इसके नफा-नुकसान के बारे में भी बातें हो रही हैं. इसी कड़ी में आइए जानते हैं कि दुनिया के देश हैं जहां पर एक साथ लोक सभा और राज्यों के चुनाव होते हैं. यह भी जानेंगे कि एक देश एक चुनाव के नुकसान क्या हैं और एक देश एक चुनाव के फायदे क्या हैं. क्या यह भारत के लिए सही है, इस पर एक्सपर्ट्स की राय भी जानेंगे. वैसे भी भारत में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ किए जाने पर लंबे समय से बहस चल रही है. खुद पीएम मोदी ने भी इस विचार का समर्थन कर चुके हैं और उन्होंने इस पर चर्चा की बात कही थी. 


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क्या भारत में भी कभी ऐसा हुआ?
भारत में इस मामले पर हाल ही में लॉ कमीशन ने राजनीतिक दलों की राय जानने के लिए कोशिश भी की है. दुनिया के कई देशों में पहले से ही ऐसी व्यवस्था है. इससे पहले यह जान लेते हैं कि भारत में भी कभी क्या ऐसा होता है. असल में भारत में आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे. इसके बाद 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई. उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. इससे एक साथ चुनाव की परंपरा टूट गई.


दुनिया के किन देशों में है ऐसा
ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमन्स, स्थानीय चुनाव और मेयर चुनाव साथ में होते हैं. यहां मई के पहले हफ्ते में सारे चुनाव कराए जाते हैं. असल में ब्रिटिश संविधान के तहत, समय से पहले चुनाव तभी हो सकते हैं जब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए और कोई दूसरी पार्टी सरकार न बना सके. दक्षिण अफ्रीका में संसद, प्रांतीय विधानसभा और नगर पालिकाओं के चुनाव एक साथ होते हैं. यहां हर पांच साल में चुनाव कराए जाते हैं. इसके अलावा इंडोनेशिया में राष्ट्रपति और लेजिस्लेटिव इलेक्शन साथ में होते हैं. स्वीडन में भी एक साथ ही चुनाव होते हैं. यहां हर चार साल में आम चुनाव के साथ-साथ काउंटी और म्यूनिसिपल काउंसिल के चुनाव होते हैं. इसके अलावा जर्मनी, फिलिपींस, ब्राजील, बोलीविया, कोलंबिया, कोस्टा रिका, ग्वाटेमाला, गुआना, होंडुरस जैसे देशों में भी एक साथ ही सारे चुनाव होते हैं.


एक देश एक चुनाव के फायदे नुकसान 
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसके पक्ष में कहा जाता है कि चूंकि बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है, इसलिए नीतिगत निर्णय नहीं लिए जाते, इससे निजात मिलेगी. इससे बार-बार चुनावों में होने वाले भारी खर्च में कमी आएगी. काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी. कर्मचारियों और सुरक्षा बलों का समय तो बचेगा. वहीं इसके विरोध करने वालों का तर्क है कि यह विचार देश के संघीय ढांचे के विपरीत होगा और संसदीय लोकतंत्र के लिये घातक कदम होगा. संवैधानिक समन्वय में कमी होगी. यह कहा जाता है कि केंद्र में रहने वाली पार्टी को अधिक फायदा होगा.


लॉ कमीशन का क्या कहना है
अगस्त 2018 में एक देश-एक चुनाव पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं. पहले फेज में लोकसभा के साथ ही कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव और दूसरे फेज में बाकी राज्यों के विधानसभा चुनाव. लेकिन इसके लिए कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना होगा तो किसी को समय से पहले भंग करना होगा. 


राजनीतिक पार्टियों को सूचना
बता दें कि पिछले दिनों 22वें लॉ कमीशन ने सार्वजनिक नोटिस जारी कर राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग और चुनाव प्रक्रिया से जुड़े सभी संगठनों से इसको लेकर उनकी राय मांगी थी. लॉ कमीशन ने पूछा था कि क्या एक साथ चुनाव कराना किसी भी तरह से लोकतंत्र, संविधान के मूल ढांचे या देश के संघीय ढांचे के साथ खिलवाड़ है? कमीशन ने भी पूछा था कि हंग असेंबली या आम चुनाव में त्रिशंकु जनादेश की स्थिति में जब किसी भी राजनीतिक दल के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत न हो, चुनी गई संसद या विधानसभा के स्पीकर की ओर से प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की नियुक्ति की जा सकती है.