One Nation, One Election JPC 1st meeting: वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की पहली बैठक में विपक्षी सदस्यों और भाजपा सांसदों ने विधेयक पर विचारों का आदान-प्रदान किया. बता दें कि 18 दिसंबर 2024 को संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने लोकसभा में संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक पेश किया था. इसके बाद विधेयकों को समीक्षा के लिए जेपीसी के पास भेज दिया गया था. इस पैनल में लोकसभा से 27 और राज्यसभा से 12 सदस्य हैं.


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विपक्ष और भाजपा सांसदों ने विधेयक पर बहस की


पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Electon) विधेयक के 39 सदस्यीय जेपीसी की बैठक में भाग लेने वाले सांसदों ने विधेयकों के प्रावधानों और उनके औचित्य पर विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा दिए गए प्रेजेंटेशन के बाद अपने विचार व्यक्त किए और प्रश्न पूछे. कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी सहित कई विपक्षी सांसदों ने इस दावे पर सवाल उठाया कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से खर्च कम होगा.


क्या संवैधानिक मूल्यों का होगा उल्लंघन


विपक्षी सांसदों ने यह भी पूछा कि क्या 2004 के आम चुनावों के बाद कोई अनुमान लगाया गया था, जब सभी 543 संसदीय सीटों पर पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का इस्तेमाल किया गया था. सूत्रों ने पीटीआई को बताया कि भाजपा सांसदों ने इस आरोप का खंडन किया कि एक राष्ट्र एक चुनाव (One Nation One Election) प्रस्ताव कई राज्य विधानसभाओं को समय से पहले भंग करने और उनके कार्यकाल को लोकसभा के साथ जोड़ने की आवश्यकता के कारण संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करता है.


भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने कहा कि एक साथ चुनाव सुनिश्चित करने के लिए 1957 की शुरुआत में सात राज्य विधानसभाओं को भंग कर दिया गया था. उन्होंने पूछा कि क्या तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, जो संविधान सभा के अध्यक्ष भी थे, और जवाहरलाल नेहरू सरकार के अन्य सांसदों ने संविधान का उल्लंघन किया. पीटीआई ने भाजपा सांसद वीडी शर्मा के हवाले से कहा, 'एक साथ चुनाव का विचार लोकप्रिय इच्छा को दर्शाता है. पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने 25,000 से अधिक लोगों से परामर्श किया था, जिसमें से अधिकांश ने इस विचार का समर्थन किया था.'


एनडीए सांसदों ने बताए वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे


भाजपा सांसदों ने दोहराया कि चुनावों का लगातार चक्र विकास और देश की वृद्धि में बाधा डालता है और राजकोष पर बोझ डालता है. उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव विकास और वृद्धि को बढ़ावा देगा. शिवसेना के श्रीकांत शिंदे ने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कुछ ही महीनों के भीतर एक के बाद एक होते हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि इससे विकास कार्य बाधित होता है, क्योंकि राज्य की पूरी मशीनरी चुनावों के संचालन में व्यस्त रहती है.


कांग्रेस, डीएमके और टीएमसी ने संघवाद पर हमले का आरोप लगाया


बैठक के दौरान, कांग्रेस, डीएमके और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित कानून संविधान के विपरीत हैं और इसके मूल ढांचे के साथ-साथ संघवाद पर भी हमला हैं. टीएमसी के एक सांसद ने कहा, 'लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखना पैसे बचाने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है.' कुछ विपक्षी सांसदों ने मांग की कि पूर्व केंद्रीय मंत्री पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त समिति को दोनों विधेयकों की जांच करने के लिए कम से कम एक साल का कार्यकाल दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह काम बहुत बड़ा है.


पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समिति को प्रस्तुत किए गए अपने प्रस्ताव में इस अवधारणा का समर्थन करने वाले वाईएसआर कांग्रेस के वी विजयसाई रेड्डी ने विधेयकों पर कई सवाल उठाए और मांग की कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जगह बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, क्योंकि इनमें हेरफेर की संभावना बहुत अधिक है.


पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, रेड्डी ने दावा किया, 'एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय दल हाशिए पर चले जाएंगे, प्रतिनिधित्व और स्थानीय मुद्दों की विविधता कम हो जाएगी, निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए मतदाताओं के साथ नियमित रूप से जुड़ने की आवश्यकता कम हो जाएगी और चुनाव दो या तीन राष्ट्रीय दलों के बीच मुकाबले में बदल जाएंगे.'


भाजपा सहयोगी ने अल्पकालिक सरकार पर सवाल उठाया


जदयू सांसद संजय झा ने मतपत्रों के इस्तेमाल के दौरान बिहार में बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्हें वापस लाने के सुझाव का खंडन किया. हालांकि, भाजपा सहयोगी ने कुछ सवाल भी उठाए, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या अल्पकालिक कार्यकाल के लिए चुनी गई सरकार में वह आवश्यक शासन फोकस होगा, जो पांच साल के कार्यकाल वाली मौजूदा सरकार में होता है. बिल में प्रस्ताव दिया गया है कि अगर सरकार गिरने और किसी विकल्प के अभाव के कारण मध्यावधि लोकसभा या विधानसभा चुनाव होते हैं, तो नई विधानसभा का कार्यकाल निवर्तमान सदन के शेष कार्यकाल के लिए होगा.