त्रिपुरा चुनाव 2018: विशालगढ़ पर रहा है कांग्रेस-माकपा का कब्जा, इस बार भाजपा भी मुकाबले में
इस बार चुनाव मैदान में कुल 297 प्रत्याशी हैं, जिनमें भाजपा के 51, कांग्रेस के 60 और माकपा ने 57 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारें हैं.
नई दिल्ली: त्रिपुरा विधानसभा चुनाव-2018 अपने अंतिम पड़ाव में पहुंच चुका है. महज दो दिन से कम समय में राष्ट्रीय पार्टियों के दिग्गज नेताओं ने राज्य का रुख कर इन चुनाव की महत्ता बढ़ा दी है. वर्ष 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने वाले त्रिपुरा में हर सीट पर मुकाबला एक तरफा रहा है, लेकिन कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां जनता ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस दोनों को बारी-बारी से जिताया है. इन सीटों में से एक विशालगढ़ विधानसभा सीट पर मुकाबला इस बार त्रिकोणीय है.
त्रिपुरा विधानसभा सीट संख्या-16 यानी विशालगढ़ पश्चिमी त्रिपुरा लोकसभा सीट का हिस्सा है. विशालगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतदाताओं की संख्या 45,530 है. इस मतदाता संख्या में 23,239 पुरुष मतादाता और 22,290 महिला मतदाता शामिल हैं. साथ ही इस चुनाव में पहली बार शामिल किए गए समलैंगिक वर्ग का एक मतदाता भी अपने मताधिकार का प्रयोग करेगा.
पहले चुनाव में कांग्रेस ने मारी थी बाजी
विशालगढ़ विधानसभा सीट पर किसी एक पार्टी का लगातार कब्जा कभी नहीं रहा. 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के समीर रंजन बर्मन ने माकपा के बाबुल सेनगुप्ता को मामूली अंतर से हराया था. उसके बाद 1977 और 1983 के चुनावों में समीर रंजन को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन समीर ने राज्य में माकपा की लहर और सत्ता के बावजूद 1988, 1993, 1998 और 2003 में लगातार चुनाव जीतकर कांग्रेस को बड़ी राहत दी. लेकिन माकपा के भानूलाल साहा ने 2008 में समीर के विजयरथ पर लगाम लगाकर उन्हें कुर्सी से उतार दिया और 2013 में भी यही सिलसिला जारी रहा.
त्रिपुरा चुनाव: सीपीएम को 20 साल के काम, तो बीजेपी को आक्रामक रणनीति पर भरोसा
एक साल तक मुख्यमंत्री भी रहे कांग्रेस के समीर
समीर रंजन वर्मन त्रिपुरा के 1992 से 1993 यानि के एक साल तक मुख्यमंत्री रहे. उनके बेटे सुदीप रॉय बर्मन पिछले साल कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा की टिकट पर अगरतला से चुनाव लड़ रहे हैं. समीर 1993 से 1998 तक विपक्ष के नेता भी रहे थे और वह पूर्व त्रिपुरा कांग्रेस राज्य इकाई के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे थे. कांग्रेस ने पिछले साल समीर को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण उन्हें छह साल के निलंबित कर दिया था.
दिग्गज नेता समीर रंजन वर्मन को पार्टी से बाहर करने के बाद कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए युवा नेता जयदुल हुसैन को चुनाव मैदान में उतारा है. जयदुल हुसैन को हाल ही में त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस समिति के अल्पसंख्यक विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जिसके बाद पार्टी ने उनपर भरोसा जताकर उन्हें विशालगढ़ पर खड़ा किया है.
माकपा ने भानुलाल साहा पर खेला दांव
वहीं माकपा ने एक बार फिर से वर्तमान विधायक और पार्टी के कद्दावर नेता भानुलाल साहा पर दांव खेला है. भानू लाल सातवीं बार चुनाव मैदान में है और लगातार पिछले दो साल से विधायक हैं. भानू लाल ने 1983 में पहली बार समीर रंजन वर्मन के खिलाफ लड़ा था और जीत दर्ज की थी. जिसके बाद उन्हें 1988, 1993 और 2003 में समीर के खिलाफ शिकस्त झेलनी पड़ी थी. हालांकि पिछले दो चुनाव में भानू लाल ने विशालगढ़ पर अपना कब्जा बरकरार रखा है. वर्ष 1967 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीएससी और 1974 में बीएड की परीक्षा पास करने वाले भानूलाल साहा माकपा के कद्दावर नेताओं में से एक हैं. भानुलाल माणिक सरकार में वित्त, खाद्य, सूचना एवं सांस्कृतिक और सिविल सप्लाई व कंज्यूमर मामलों का मंत्रालय संभाल रहे हैं.
त्रिपुरा चुनाव : 'फूट' से परेशान कांग्रेस कैलाशहर सीट को बचाने में जी-जान से जुटी
इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्ष की भूमिका में उभरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने निताई चौधरी को मैदान में उतारा है. पेशे से वकील निताई चौधरी पार्टी के आमंत्रित सदस्य हैं. इसके अलावा अमरा बंगाली ने परिमल सरकार को अपना उम्मीदवार घोषित किया है.
पिछले चुनाव में माकपा ने 49 सीटों पर हासिल की थी जीत
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ माकपा ने 49 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस केवल 10 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर थी. इस बार चुनाव मैदान में कुल 297 प्रत्याशी हैं, जिनमें भाजपा के 51, कांग्रेस के 60 और माकपा ने 57 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारें है हालांकि माकपा ने तीन सीटें अपने वाम मोर्चा की सदस्य पार्टियों की दी है. प्रदेश के 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए 18 फरवरी को मतदान होना है और मतों की गिनती तीन मार्च को होगी.