Power of Deputy Speaker: 18वीं लोकसभा के पहले सत्र के दूसरे दिन (25 जून) स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ गया है. इसके बाद विपक्ष ने लोकसभा स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार उतार दिया है और कांग्रेस सांसद के. सुरेश ने नामांकन दाखिल किया है. जबकि, सरकार की ओर से ओम बिरला ने नॉमिनेशन किया है. विपक्ष का कहना है कि डिप्टी स्पीकर का पद मिलता तो स्पीकर पद के लिए समर्थन करते. बता दें कि 17वीं लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली था, लेकिन आखिर इस बार विपक्ष के लिए डिप्टी स्पीकर इतना अहम क्यों हो गया है. तो चलिए आपको बताते हैं कि डिप्टी स्पीकर का चुनाव कैसे होता है, उनकी क्या जिम्मेदारियां होती है और उनको क्या पावर मिलती है.


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संविधान में है डिप्टी स्पीकर पद का जिक्र


डिप्टी स्पीकर का पद संवैधानिक है और लोकसभा स्पीकर के साथ ही डिप्टी स्पीकर पद का भी जिक्र संविधान के आर्टिकल 93 में है. इसके तहत नई लोकसभा गठन के तुरंत बाद दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनना होता है. अगर लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले या बीच में दोनों में से कोई भी पद खाली होता है, तब भी लोकसभा को प्राथमिकता के आधार अन्य सदस्य को स्पीकर या डिप्टी स्पीकर चुनना होता है. संविधान के अनुसार, लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कराने का अधिकार राष्ट्रपति के पास, जबकि लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा स्पीकर को कराने का अधिकार दिया गया है.


क्यों जरूरी है लोकसभा डिप्टी स्पीकर का पद?


लोकसभा के संचालन की जिम्मेदारी अध्यक्ष यानी स्पीकर की होती है, लेकिन अगर किसी मौके पर अध्यक्ष की अनुपस्थित रहते हैं तो ऐसी स्थिति में उपाध्यक्ष ही सदन का संचालन करते हैं. कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं, इसका निर्धारण उपाध्यक्ष ही करते हैं. इसके अलावा सदन में अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेदारी भी उपाध्यक्ष की ही होती है.


डिप्टी स्पीकर की क्या होती है पावर?


संविधान के आर्टिकल 95 के अनुसर, अगर किसी स्थिति में लोकसभा स्पीकर का पद खाली होता है या या स्पीकर के सदन में गैरमौजूद रहते हैं तो सारी जिम्मेदारी डिप्टी स्पीकर पर जाती है. ऐसे मौके पर डिप्टी स्पीकर ही सदन का संचालन करते हैं और उस समय उके पास वो सारी शक्तियां होती हैं जो एक स्पीकर को मिलती है. इसमें सदन में अनुशासन बनाए रखना, मर्यादा का पालन कराना, गलत व्यवहार पर किसी सदस्य को निलंबित करना या दंडित करना शामिल है. इसके अलावा अगर कभी कोई प्रस्ताव लोकसभा में 2 वोटों से फंसता है तो उपाध्यक्ष वोटिंग कर सकता है. इसके साथ ही अध्यक्ष की अनुपस्थिति में निर्णायक वोटिंग का भी अधिकार उपाध्यक्ष को होता है.


कैसे होता है डिप्टी स्पीकर का चुनाव?


लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव कराने का अधिकार लोकसभा स्पीकर को होता है और चुनाव की तारीख स्पीकर द्वारा तय की जाती है. स्पीकर की तरह ही डिप्टी स्पीकर के चुनाव के लिए भी बहुमत की जरूरत होती है. लोकसभा में अब तक विपक्ष को डिप्टी स्पीकर का पद दिए जाने की परंपरा रही है, लेकिन इस बार सरकार और विपक्ष के बीच सहमति नहीं बन पाई है.


2019 से 2024 तक कोई नहीं था डिप्टी स्पीकर


17वीं लोकसभा में किसी को डिप्टी स्पीकर का पद नहीं दिया गया था. लेकिन, सवाल है कि अगर डिप्टी स्पीकर नहीं था तब स्पीकर की अनुपस्थित में सदन का संचालन कौन करता है. इसको लेकर भी नियम है और प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम 9 में इसका जिक्र है. लोकसभा में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के अलावा अध्यक्षों का एक पैनल होता है. लोकसभा शुरू होने के बाद स्पीकर अन्य सदस्यों में से अधिकतम 10 चेयरपर्सन के एक पैनल का नामांकन करते हैं. अगर किसी समय स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों के सदन से अनुपस्थिति रहने पर सदन की अध्यक्षता इसी पैनल में से एक चेयरपर्सन कर सकता है.