DNA Analysis: कांप जाएंगे हिंदू मंदिरों के दमन की कहानियां सुनकर, मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए बनाया गया Worship Act?
DNA on Places of Worship Act: देश में विदेशी मुस्लिम शासकों का शासन करीब 650 वर्षों तक रहा. इस दौरान चुन-चुनकर देश में करीब 40 हजार मंदिर तोड़ दिए गए. आरोप है कि आजादी के बाद जब इन मंदिरों की पुनर्स्थापना की बारी आई तो वर्शिप एक्ट बनाकर हिंदुओं के हाथ बांध दिए गए.
DNA on Places of Worship Act: करीब 500 वर्षों के लम्बे इंतज़ार के बाद अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई. आज बाबरी मस्जिद और राम जन्म भूमि का विवाद इतिहास की बात बन चुका है. लेकिन हमारे देश में अब भी कई ऐसे मंदिर और मस्जिद हैं, जिनका विवाद अभी समाप्त नहीं हुआ है. हैरानी की बात ये है कि इनमें से ज्यादातर विवादित धार्मिक स्थल उत्तर भारत में स्थित हैं. जबकि दक्षिण भारत में आपको ऐसे बहुत कम प्राचीन मंदिर दिखाई देंगे, जिन्हें तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गई. ऐसा इसलिए है.. क्योंकि 800 वर्षों के दौरान जिन मुसलमान आक्रमणकारियों ने भारत पर अनगिनत हमले किए. वो दक्षिण भारत पर अपना प्रभाव उस तरह से नहीं जमा पाए, जिस तरह से उन्होंने उत्तर भारत में अतिक्रमण किया.
भारत में मंदिरों को तोड़कर बना दी गई मस्जिदें
इसका नतीजा ये हुआ कि उत्तर भारत के कई प्राचीन मंदिरों की जगह या उनके आस पास मस्जिद बना दी गई. अब भारत में कई धार्मिक स्थल ऐसे हैं, जहां मंदिर के साथ मस्जिद है या मस्जिद के साथ मंदिर है. अब आपको ये सोचना चाहिए कि क्या ये मात्र एक संयोग है या फिर बाहर से आए आक्रामणकारियों ने अपनी सभ्यता को भारत के बहुसंख्यक लोगों पर थोपने के लिए ये प्रयोग किया था.
उदाहरण के लिए 500 वर्ष पहले हिंदुओं की आस्था के केंद्र अयोध्या में राम मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बना दी गई. लेकिन तेलंगाना में भगवान राम और उनकी पत्नी सीता को समर्पित सैंकड़ों वर्ष पुराने श्री सीता राम चंद्र स्वामी मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. इसी तरह कुछ लोगों का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव के जिस ज्योतिर्लिंग के दर्शन आप करते हैं, उसका मूल स्वरूप वहां नहीं बल्कि उस जगह पर मौजूद है, जहां साढ़े तीन सौ साल पहले मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर एक मस्जिद बना दी गई थी. लेकिन इसके विपरीत तमिलनाडु में भगवान शिव को समर्पित 800 वर्ष पुराने रामेश्वर मंदिर को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचा.
काशी में भी किया गया मंदिर का ध्वंस
अयोध्या के बाद, काशी विश्वनाथ को हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर देखा जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अयोध्या भगवान राम की नगरी है तो काशी यानी वाराणसी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है. लेकिन अयोध्या की तरह यहां भी मंदिर और मस्जिद को लेकर विवाद है. हिंदू पक्ष का दावा है कि जहां भगवान शिव को समर्पित असली ज्योतिर्लिंग मौजूद है, वहां पर औरंगज़ेब द्वारा एक मस्जिद बना दी गई थी, जिसे आज ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है. ज्ञान वापी का अर्थ होता है ज्ञान का तालाब या कुआं.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर हुई है, जिसमें कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वुजूखाने में जो शिवलिंग मिलने का दावा है, उसकी जांच Carbon Dating और Ground Penetrating Radar System से होनी चाहिए ताकि ये पता चल सके कि ये फव्वार है या शिवलिंग?
इस याचिका में ये मांग भी की गई है कि हिन्दू श्रद्धालुओं को वुजूखाने में शिवलिंग की पूजा करने का अधिकार मिलना चाहिए. इस मामले में कोई भी फैसला आने तक वुजूखाने के हिस्से को श्री काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को सौंप देना चाहिए.
वर्शिप एक्ट बनाकर क्यों बांधे गए हिंदुओं के हाथ?
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 21 जुलाई को सुनवाई करेगा. लेकिन इस सुनवाई के बीच ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या ये मामला वर्ष 1991 में बने Places of Worship Act यानी उपासना स्थल क़ानून के दायरे में आएगा या नहीं. इस कानून के तहत देश में धार्मिक स्थलों पर 15 अगस्त 1947 के दिन की यथास्थिति लागू है. सिर्फ अयोध्या मामले को इसका अपवाद माना गया है. इसलिए आज बड़ा सवाल ये है कि अब शिवलिंग मिलने के दावे के बाद इस मामले में कानून के तहत नई स्थिति क्या होगी?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने संविधान विश्लेषकों से बात की. इसके अलावा हमने कानून के जानकारों से भी मदद मिली. इस दौरान हमें दो बातें पता चलीं. पहली बात ये कि अगर शिवलिंग और दूसरे साक्ष्यों से ये बात सही साबित हो जाती है कि ज्ञानवापी मस्जिद मन्दिर की जगह पर स्थित है तो इस मामले में 1991 का ये कानून बड़ी बाधा नहीं बनेगा. इससे ये स्पष्ट हो जाएगा कि 15 अगस्त 1947 को भी मस्जिद वाली जगह पर शिवलिंग मौजूद था, जिससे मन्दिर का दावा मजबूत हो जाता है. दूसरी बात, सार्वजनिक जगह पर नमाज पढ़ने से कोई भी जगह धार्मिक स्थल नहीं बन जाती. इसलिए ये कहना कि इस परिसर में तो 1947 से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है और ये एक मस्जिद ही है, ये दावा कानूनी रूप से अदालत में ज्यादा देर तक नहीं टिकेगा.
वैसे ये एक बहुत बड़ा विरोधाभास है कि मुगल शासक औरंगज़ेब द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर को तोड़े जाने के ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद हैं. इसके बावजूद सैकड़ों वर्षों से हमारे देश में यही बहस हो रही है कि इस स्थान पर मन्दिर था या नहीं?
कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था काशी पर पहला हमला
जबकि सच ये है कि भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे. सबसे पहले 12वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था. इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था. लेकिन इसके बाद भी पूजा पाठ होती रही. वर्ष 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं. साल 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई. वर्ष 1780 में मालवा की रानी अहिल्या-बाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में ही एक नया मंदिर बनवा दिया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं.
हालांकि काशी विश्वनाथ मन्दिर अकेला ऐसा मन्दिर नहीं है, जिसे दिल्ली सल्तनत और मुगलों के शासनकाल में नुकसान पहुंचाया गया. भारत में मन्दिरों के दमन की ये शुरुआत वर्ष 1192 के बाद हुई, जब तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी से हार गए थे. मोहम्मद गौरी ने इस लड़ाई को जीतने के बाद दिल्ली सल्तनत की स्थापना की और इसी के बाद मन्दिरों को तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ.
सबसे पहले साल 1192 से 1290 तक तक गुलाम वंश ने भारत पर शासन किया. इसके बाद साल 1290 से 1320 तक खिलजी वंश का शासन रहा, साल 1320 से 1415 तक तुग़लक़ वंश, साल 1415 से 1451 तक सैयद वंश, साल 1451 से 1526 तक लोदी वंश और साल 1526 से 1857 तक मुगलों ने भारत पर शासन किया. इस दौरान हजारों मन्दिर तोड़ गए.
665 सालों में तोड़े गए 40 हजार मंदिर
इतिहासकार सीताराम गोयल ने इस पर एक पुस्तक लिखी है, जिसका शीर्षक है, Hindu Temples– What Happened to Them. इस पुस्तक में उन्होंने बताया है कि लगभग 665 वर्षों तक भारत में इस्लामिक शासन रहा और इस दौरान 40 हज़ार से ज्यादा मन्दिर तोड़े गए. यानी इस हिसाब से हर महीने औसतन 5 मन्दिरों को ध्वस्त किया गया और इनकी जगह पर मस्जिद और मकबरें बना दिए गए.
इसी पुस्तक में ये भी लिखा है कि आज देश में 1800 से ज्यादा मस्जिद, मकबरे और दूसरे धार्मिक स्थल ऐसे हैं, जहां हिन्दू मन्दिरों के अवशेष साफ साफ दिखाई देते हैं. मन्दिरों के इस दमन को आज हम ऐतिहासिक दस्तावेजों के जरिए साबित करने की कोशिश करेंगे.
सबसे पहले आप उस फरमान के बारे में जानिए, जो 3 सितम्बर 1667 को जारी हुआ था. उस समय औरंगजेब ने अपने एक हजार सैनिकों को दिल्ली में स्थित कालकाजी मन्दिर तोड़ने के आदेश दिए थे. इस फरमान के बाद 12 सितम्बर 1667 को औरंगज़ेब का सेनापति उसे सूचित करता है कि जिस मन्दिर को तोड़ने का उसे आदेश मिला था, उस पर अमल हो चुका है. यही नहीं अपने जवाब में औरंगजेब का सेनापति ये भी लिखता है कि कालकाजी मन्दिर को ध्वस्त करते समय ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने विरोध किया, जिन्हें तुरंत ही बन्दी बना लिया गया.
औरंगजेब ने सबसे ज्यादा तुड़वाए मंदिर
कालकाजी मन्दिर को नष्ट करने के कुछ दिन बाद 26 सितम्बर 1667 को औरंगज़ेब की तरफ से एक और फरमान जारी होता है, जिसमें ये लिखा होता है कि अजमेर के शीतला माता मन्दिर में हजारों हिन्दू श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. इसलिए इन लोगों को मन्दिर में जाने से और वहां पूजा करने से रोका जाए.
इसके अलावा 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब बनारस, मुल्तान और थट्टा में बने मन्दिरों को तोड़ने का आदेश देता है. इसमें ये भी लिखा जाता है कि इन मन्दिरों को गिराने से भारत में इस्लामिक शासन की जड़ें और गहरी होंगी और भारत में इस्लाम धर्म का विस्तार भी होगा.
ये एक एतिहासिक दस्तावेज है, जिसे 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के एक दरबारी की तरफ से जारी किया गया था. मूल रूप से इसे फारसी में लिखा गया था लेकिन इसका हिंदी में अनुवाद करके इसे अदालत में भी जमा कराया गया है.
इसमें लिखा है कि औरंगजेब को ये खबर मिली है कि मुलतान के कुछ सूबों और बनारस में बेवकूफ ब्राह्मण अपनी रद्दी किताबें पाठशालाओं में पढ़ाते हैं. इन पाठशालाओं में हिंदू और मुसलमान विद्यार्थी और जिज्ञासु उनके बदमाशी भरे ज्ञान, विज्ञान को पढ़ने की दृष्टि से आते हैं.
मुगल शासन की ओर से जारी किए जाते थे फरमान
धर्म संचालक बादशाह ने ये सुनने के बाद सूबेदारों के नाम ये फरमान जारी किया है कि वो अपनी इच्छा से काफिरों के मंदिर और पाठशालाएं गिरा दें. उन्हें इस बात की भी सख्त ताकीद की गई है कि वो सभी तरह के मूर्ति पूजा संबंधित शास्त्रों का पठन पाठन और मूर्ति पूजन भी बंद करा दें . इसके बाद औरंगजेब को ये जानकारी दी जाती है कि उनके आदेश के बाद 2 सितंबर 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया है.
यानी एक एतिहासिक दस्तावेज खुद इस बात की पुष्टि करता है कि औरंगजेब के आदेश पर ही काशी विश्वनाथ मंदिर को नुकसान पहुंचाया गया था. इसी तरह साल 1670 में भी औरंगजेब द्वारा एक फरमान जारी हुआ था, जिसमें मथुरा के केशव राय मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया गया था. इस फरमान में लिखा है कि 1670 में रमजान के महीने में मुगल शासक औरंगज़ेब ने मथुरा के प्रसिद्ध केशव राय मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था. इसे ओरछा के राजा बीर सिंह बुंदेला ने उस ज़माने में 33 लाख रुपये में बनवाया था.
कटरा केशवदेव के इस इलाके में ही भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है, जो लगभग 13 एकड़ ज़मीन में फैली है और इसका मालिकाना हक़ श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के पास है. इसी जमीन के लगभग 2 दशमलव 5 एकड़ हिस्से में औरंगजेब के आदेश पर बनाई गई शाही ईदगाह भी मौजूद है. जिसे हटाने की लगातार मांग की जाती है. हिन्दू पक्ष की दलील है कि ये ईदगाह श्रीकृष्ण के गर्भगृह के ऊपर बनी हुई है.
राजस्थान में ढूंढ-ढूंढकर किया गया मंदिरों का ध्वंस
इसी तरह साल 1671 में औरंगेब उदयपुर के जगन्नाथ राय मन्दिर को तोड़ने का फरमान देता है और 29 जनवरी 1680 को उदयपुर के 172 मंदिरों को तोड़ने वाले अपने सेनापति Hasan Ali Khan को Bahadur ‘Alamgir-shahi की उपाधि से सम्मानित करता है. इसके अलावा 22 फरवरी 1680 के औरंगजेब के फरमान में चित्तौड़ के 63 मन्दिरो को तोड़ने का जिक्र है. 1 जून 1681 को औरंगज़ेब जगन्नाथ पूरी के मंदिर को तोड़ने का आदेश देता है.
इस्लामिक कालखण्ड में हिंदुओं पर इतने जुल्म किये जा रहे थे कि वो मन्दिरो का पुनर्निर्माण तो छोड़िए, उसे बचा तक नही पा रहे थे और मन्दिरों के विध्वंस के अलावा हिन्दुओं से जजिया कर वसूला जा रहा था. आतिशबाजी और संगीत पर रोक लगाई जा रही थी. ऐसे में हिन्दुओ के लिए इस समय तो पुनर्निर्माण करवाने के बारे में सोचना भी गुनाह था और ब्रिटिश सत्ता भारत में स्थापित होने के बाद हिंदुओं के लिए और मुश्किले खड़ी हो गई थीं.
इन तमाम दस्तावेजों के बारे में हमने इसलिए बताया ताकि आप ये समझ सकें कि कैसे दिल्ली सल्तनत और मुगलों के शासनकाल में हिन्दू मन्दिरों को निशाना बनाया गया. ये बातें ऐतिहासिक दस्तावेजों से भी साबित होती है लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए हमारे देश में जो Places of Worship Act बना, उसने हिन्दू मन्दिरों की पुनर्स्थापना के सामने चुनौती पैदा कर दी. यानी इस्लामिक शासन में तोड़ गए मन्दिर आज भी अपने मूलरूप में नहीं लौट सकते. इससे दुखद कुछ नहीं हो सकता.
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