सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में देश में अंधविश्वास और टोने-टोटके की घटनाओं को रोकने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को समुचित उचित कदम उठाने को कहा गया है. याचिका में हाल में उत्तर प्रदेश के हाथरस के भगदड़ में 121 लोगों के मारे जाने और दिल्ली के 2018 के बुराड़ी कांड में एक घर के 11 सदस्यों की मौत को ऐसे ही मामले बताया गया है.


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केरल में भी दो महिलाओं की मानव बलि से पूरा देश स्तब्ध रह गया था. इस जनहित याचिका को दायर करने वाले अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे ने जनता में वैज्ञानिक रुख, मानवतावाद, जांच-परख और सुधार की भावना विकसित करने के साथ ही नागरिकों में संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत मूलभूत अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए भी दिशा-निर्देश जारी करने को कहा है.


तत्काल कानून बनाने की आवश्यकता: याचिकाकर्ता
उन्होंने कहा कि एक सख्त अंधविश्वास विरोधी और टोना विरोधी कानून तत्काल बनाने की आवश्यकता है, ताकि समाज में सक्रिय अवैज्ञानिक गतिविधियों की रोकथाम की जा सके। चूंकि इससे फर्जी बाबा और पीर-फकीर मासूम लोगों का फायदा उठाते हैं, उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। इन अंधविश्वासों और काले-जादू से संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत मिलने वाले अधिकार प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा कि आठ राज्यों में 'विच-हंटिंग' संबंधी कानून हैं, लेकिन इसके तहत अंधविश्वास और काले-जादू जैसे चीजें नहीं आती हैं।


याचिका में कहा गया है कि अंधविश्वास से भरी कुछ प्रथाएं क्रूर, अमानवीय और शोषण करने वाली हैं तथा इन पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाने की सख्त जरूरत है. इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि कई लोग और संगठन अंधविश्वास और जादू-टोने का सहारा लेकर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करा रहे हैं.